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चैत्र पूर्णिमा पर यहां लगता है मेला, ये है कहानी - baloda bazar

लोग बताते हैं कि सैकड़ों साल पहले यहां मां जेवरादाई विराजमान थीं. दूर-दूर से लोग दरबार में दर्शन के लिए आते थे. कोसम के पेड़ के नीचे मां विराजित थीं.

गांव देवसाग
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Published : Apr 18, 2019, 10:05 PM IST

बलौदाबाजार: जिले के बिलाईगढ़ ब्लॉक के गांव देवसागर में हर साल चैत्र पूर्णिमा पर मां जेवरादाई का विशाल मेला लगता है. इसका मूल स्थान जेवराडीह है. इस मेले में शामिल होने हजारों लोग दूर-दूर से आते हैं. यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामना मां के दर्शन से पूरी होती है.

चैत्र पूर्णिमा पर यहां लगता है मेला, ये है कहानी

कहा जाता है कि जिन महिलाओं की गोद सूनी होती है, उसे मां के चरण कमलों के आशीर्वाद से और बैगा के हल्दी के छींटा लेने पर मातृत्व का सुख मिलता है. जहां मां जेवरादाई विराजमान है, वह स्थान आज देवसागर है. इस स्थान को लेकर कहानियां प्रचलित हैं.

लोग बताते हैं कि सैकड़ों साल पहले यहां मां जेवरादाई विराजमान थीं. दूर-दूर से लोग दरबार में दर्शन के लिए आते थे. कोसम के पेड़ के नीचे मां विराजित थीं. एक दिन मेला समाप्त होने के बाद बैगा पूजा-पाठ के बाद चला गया फिर खड़ग लेने वापस आया. कहते हैं कि वहां बैगा को देवी जेवरादाई अपनी बहनों के साथ खेलती नजर आईं. उसी दिन से उन्होंने कहा कि चैत्र पूर्णिमा की रात यहां कोई नहीं रुकेगा. जिसके बाद इसी दिन मां जेवरादाई के नाम से मेला लगने लगा.

बलौदाबाजार: जिले के बिलाईगढ़ ब्लॉक के गांव देवसागर में हर साल चैत्र पूर्णिमा पर मां जेवरादाई का विशाल मेला लगता है. इसका मूल स्थान जेवराडीह है. इस मेले में शामिल होने हजारों लोग दूर-दूर से आते हैं. यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामना मां के दर्शन से पूरी होती है.

चैत्र पूर्णिमा पर यहां लगता है मेला, ये है कहानी

कहा जाता है कि जिन महिलाओं की गोद सूनी होती है, उसे मां के चरण कमलों के आशीर्वाद से और बैगा के हल्दी के छींटा लेने पर मातृत्व का सुख मिलता है. जहां मां जेवरादाई विराजमान है, वह स्थान आज देवसागर है. इस स्थान को लेकर कहानियां प्रचलित हैं.

लोग बताते हैं कि सैकड़ों साल पहले यहां मां जेवरादाई विराजमान थीं. दूर-दूर से लोग दरबार में दर्शन के लिए आते थे. कोसम के पेड़ के नीचे मां विराजित थीं. एक दिन मेला समाप्त होने के बाद बैगा पूजा-पाठ के बाद चला गया फिर खड़ग लेने वापस आया. कहते हैं कि वहां बैगा को देवी जेवरादाई अपनी बहनों के साथ खेलती नजर आईं. उसी दिन से उन्होंने कहा कि चैत्र पूर्णिमा की रात यहां कोई नहीं रुकेगा. जिसके बाद इसी दिन मां जेवरादाई के नाम से मेला लगने लगा.

Intro:17/04/2018

लोकेशन - बिलाईगढ़

रिपोर्टर - करन साहू

स्लग - देवसागर में चैत्र पूर्णिमा पर साल में एक दिन लगता है मेला, माँ हिंगलाज को देखने उमड़पड़ती है लोगो की भीड़..


नोट - स्टोरी पैकेज..


एंकर :- छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार भाटापारा जिले के बिलाईगढ़ ब्लाक के अंतर्गत एक छोटा सा गांव है देवसागर. जिसका मूल स्थान है जेवराडीह है, जहा प्रति वर्ष चैत्र पूर्णिमा में मा जेवरादाई का विशाल मेला लगता है । इस अवसर पर देश विदेश से लाखो भक्त मा जेवरा दाई के दर्शन के लिए पहुचते है। मा जेवरादाई जगजननी, दुःखहर्ती, सुखकर्ती एवं फलदायिनी देवी है । जो अपने भक्तो के मनोरत को पूर्ण करने का आशीर्वाद देते हुए भक्तो को मनोवांछित फल देती है. जिन स्त्रियों को मातृत्व शुख की प्राप्ति नही होती है, उसे मां के चरण कमलो के आशीर्वाद से एवं बैगा के हल्दी के छीटा लेने पर मातृत्व का सुख मिलता है.

बाईट :- सुदर्शन मानिकपुरी - श्रद्धालु


विओ :- पौराणिक केव्दन्ती अनुसार सैकडो वर्ष पुर मा जेवरादाई का ठिकाना सुदूर वनांचल के खूबसूरत वादियों में स्थित पहाड़ी क्षेत्र ग्राम जेवराडीह में था. जिसकी खीयती चारो ओर फैली हुई थी, माता के दर्शन, पूजन, हवन के लिए दूर दराज से भक्तगण एवं राजा महाराजा मा जेवरादाई के दरबार में आते थे। जिनमे भटगांव एवं सारंगढ़ के जमींदार प्रमुख भक्तो में थे. मा जेवरादाई कोशम वृक्ष के नीचे विराजित थी. जहा भैरव बाबा एवं अन्य देवी देवता वीजारीत थे. जिस पर सारंगढ़ के राजा ने माता को अपने राज्य में विराजमान करने का विचार किया.


बाईट :- रेलदास - श्रद्धालु


वीओ :- जहा मा जेवरादाई विराजमान है वह स्थान आज देवसागर है, यहा प्रतिवर्ष चैत्र पूर्णिमा के अवसर पर मात्र एक दिन के लिए मेला लगता है. एक दिन मेला लगने के पीछे यह वजह रही की एक बार मेला समाप्त होने के बाद बैगा माता के स्थान पूजा पाठ कर के घर चला गया. घर पहुचते ही बैगा को पता चला की अपना खड्ग वही भूल आया है. खड्ग लाने के लिए बैगा पुनः माता के स्थान पर पहुचा तो वहा उसने जो देखा वह आश्चर्य जनक था. उसने देखा की माता की 21 बहने उनके साथ खेल रही है और माता के सेवक बाघ, शेर कटे हुए बकरे के खून का रसपान कर रहे है.माता को ज्ञात हुआ की बैगा वापस आ गया है तो उसने बैगा को बुला कर कहा के आज के बाद यहा चैत्र पूर्णिमा की रात्रि को इस स्थान पर कोई नही रुकेगा. जाओ तुम्हे जीवन दान देती हू. ऐसा कह कर बैगा को अपने घर भेज दिया. जिसके बाद उसी दिन चैत्र पूर्णिमा के पावन अवसर पर और कुमार नवरात्रि पर माता के इस पावन मंदिर में भटगांव के जमींदार द्वारा चैत्र पूर्णिमा को प्रतिवर्ष एक दिन का विशाल मेला का आयोजन किया जाता है.

पीटीसी - करन साहू - संवाददाताBody:17/04/2018

लोकेशन - बिलाईगढ़

रिपोर्टर - करन साहू

स्लग - देवसागर में चैत्र पूर्णिमा पर साल में एक दिन लगता है मेला, माँ हिंगलाज को देखने उमड़पड़ती है लोगो की भीड़..


नोट - स्टोरी पैकेज..


एंकर :- छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार भाटापारा जिले के बिलाईगढ़ ब्लाक के अंतर्गत एक छोटा सा गांव है देवसागर. जिसका मूल स्थान है जेवराडीह है, जहा प्रति वर्ष चैत्र पूर्णिमा में मा जेवरादाई का विशाल मेला लगता है । इस अवसर पर देश विदेश से लाखो भक्त मा जेवरा दाई के दर्शन के लिए पहुचते है। मा जेवरादाई जगजननी, दुःखहर्ती, सुखकर्ती एवं फलदायिनी देवी है । जो अपने भक्तो के मनोरत को पूर्ण करने का आशीर्वाद देते हुए भक्तो को मनोवांछित फल देती है. जिन स्त्रियों को मातृत्व शुख की प्राप्ति नही होती है, उसे मां के चरण कमलो के आशीर्वाद से एवं बैगा के हल्दी के छीटा लेने पर मातृत्व का सुख मिलता है.

बाईट :- सुदर्शन मानिकपुरी - श्रद्धालु


विओ :- पौराणिक केव्दन्ती अनुसार सैकडो वर्ष पुर मा जेवरादाई का ठिकाना सुदूर वनांचल के खूबसूरत वादियों में स्थित पहाड़ी क्षेत्र ग्राम जेवराडीह में था. जिसकी खीयती चारो ओर फैली हुई थी, माता के दर्शन, पूजन, हवन के लिए दूर दराज से भक्तगण एवं राजा महाराजा मा जेवरादाई के दरबार में आते थे। जिनमे भटगांव एवं सारंगढ़ के जमींदार प्रमुख भक्तो में थे. मा जेवरादाई कोशम वृक्ष के नीचे विराजित थी. जहा भैरव बाबा एवं अन्य देवी देवता वीजारीत थे. जिस पर सारंगढ़ के राजा ने माता को अपने राज्य में विराजमान करने का विचार किया.


बाईट :- रेलदास - श्रद्धालु


वीओ :- जहा मा जेवरादाई विराजमान है वह स्थान आज देवसागर है, यहा प्रतिवर्ष चैत्र पूर्णिमा के अवसर पर मात्र एक दिन के लिए मेला लगता है. एक दिन मेला लगने के पीछे यह वजह रही की एक बार मेला समाप्त होने के बाद बैगा माता के स्थान पूजा पाठ कर के घर चला गया. घर पहुचते ही बैगा को पता चला की अपना खड्ग वही भूल आया है. खड्ग लाने के लिए बैगा पुनः माता के स्थान पर पहुचा तो वहा उसने जो देखा वह आश्चर्य जनक था. उसने देखा की माता की 21 बहने उनके साथ खेल रही है और माता के सेवक बाघ, शेर कटे हुए बकरे के खून का रसपान कर रहे है.माता को ज्ञात हुआ की बैगा वापस आ गया है तो उसने बैगा को बुला कर कहा के आज के बाद यहा चैत्र पूर्णिमा की रात्रि को इस स्थान पर कोई नही रुकेगा. जाओ तुम्हे जीवन दान देती हू. ऐसा कह कर बैगा को अपने घर भेज दिया. जिसके बाद उसी दिन चैत्र पूर्णिमा के पावन अवसर पर और कुमार नवरात्रि पर माता के इस पावन मंदिर में भटगांव के जमींदार द्वारा चैत्र पूर्णिमा को प्रतिवर्ष एक दिन का विशाल मेला का आयोजन किया जाता है.

पीटीसी - करन साहू - संवाददाताConclusion:

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