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जिसने शहर को नाम दिया, आज उसके नाम के अस्तित्व पर खतरा

बलौदा बाजर शहर का नाम यहां लगने वाले बैल बाजार के नाम पर रखा गया था. बाद में इसी शहर के नाम पर जिले का नाम भी बलौदा बाजार रखा गया. कहते हैं उस दौर में महाराष्ट्र, ओडिशा, गुजरात, हरियाणा, बिहार राज्य से लोग यहां बैल और भैंसा (बोदा) खरीदने-बेचने आते थे.

बैल बाजार
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Published : Jul 5, 2019, 10:24 AM IST

बलौदा बाजार: हर शहर की एक अलग पहचान होती है. शहरों के नामकरण को लेकर भी कई कहानियां होती हैं. कई शहरों के नाम में स्थानीय परंपरा या वहां के किसी मशहूर चीजों की झलक होती है. जिला मुख्यालय बलौदा बाजार के नामकरण के पीछे भी कुछ ऐसी रोचक कहानी है.

बैल बाजार की जमीन पर कब्जा

बताते हैं बलौदा बाजर शहर का नाम यहां लगने वाले बैल बाजार के नाम पर रखा गया था. बाद में इसी शहर के नाम पर जिले का नाम भी बलौदा बाजार रखा गया. कहते हैं उस दौर में महाराष्ट्र, ओडिशा, गुजरात, हरियाणा, बिहार राज्य से लोग यहां बैल और भैंसा (बोदा) खरीदने-बेचने आते थे. भैंसा को यहां की स्थानीय भाषा में बोदा कहा जाता है. बैल और बोदा को मिलाकर इस शहर का नाम पहले बैलबोदा बाजार रखा गया. जो बाद में बलौदा बाजार के नाम से प्रसिद्ध हो गया.

दिनों दिन सिकुड़ता जा रहा है बैल बाजार
शहर के साथ जिले का नाम तो बलौदा बाजार हो गया, लेकिन जिसके नाम पर जिले का नाम पड़ा आज वो ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. अधुनिकता और ट्रैक्टर-पावरटीलर के दौर में बैल बाजार लगभग बंद हो गए. हालांकि बैल का बाजार तो अब भी लगता है, लेकिन शहर में जो स्थान बैल बाजार के लिए सुरक्षित था, उसपर अब माफिया का कब्जा होते जा रहा है. दिनों दिन सिकुड़ता बैल बाजार आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है.

सरकार ने भी किया अतिक्रमण
बैल बाजार की जमीन पर न सिर्फ भू-माफिया बल्कि सरकार ने भी कब्जा करना शुरू कर दिया है. बाजार के आस-पास जहां भू-माफिया ने अतिक्रमण शुरू कर दिया है, वहीं बिजली विभाग ने भी उसी बैल बाजार में सब स्टेशन बना दिया है. जिसके कारण बैल बाजार और सिकुड़ता जा रहा है.

पहले हजारों की संख्या में आते थे मवेशी
मामाले में नगर पालिका की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं. पालिका पर आरोप है कि पालिका के अधिकारी मवेशी बाजार के लिए हर साल टेंडर निकाल देते हैं, लेकिन टेंडर लेने वाले ठेकेदार बाजार में बिकने आने वाले मवेशियों के लिए न तो पानी का व्यवस्था करते हैं न ही छांव के लिए शेड लगाया जाता है. जिसके कारण अब मवेशी बेचने वाले व्यापारी बलौदा बाजार से किनारा करने लगे हैं. पहले जब बाजार लगता था, तब अन्य प्रदेश के लोग भी यहां खरीद बिक्री करने पहुंचते थे, लेकिन अब मुश्किल से 50 से 100 मवेशी ही बिक्री के लिए आते हैं.

बलौदा बाजार: हर शहर की एक अलग पहचान होती है. शहरों के नामकरण को लेकर भी कई कहानियां होती हैं. कई शहरों के नाम में स्थानीय परंपरा या वहां के किसी मशहूर चीजों की झलक होती है. जिला मुख्यालय बलौदा बाजार के नामकरण के पीछे भी कुछ ऐसी रोचक कहानी है.

बैल बाजार की जमीन पर कब्जा

बताते हैं बलौदा बाजर शहर का नाम यहां लगने वाले बैल बाजार के नाम पर रखा गया था. बाद में इसी शहर के नाम पर जिले का नाम भी बलौदा बाजार रखा गया. कहते हैं उस दौर में महाराष्ट्र, ओडिशा, गुजरात, हरियाणा, बिहार राज्य से लोग यहां बैल और भैंसा (बोदा) खरीदने-बेचने आते थे. भैंसा को यहां की स्थानीय भाषा में बोदा कहा जाता है. बैल और बोदा को मिलाकर इस शहर का नाम पहले बैलबोदा बाजार रखा गया. जो बाद में बलौदा बाजार के नाम से प्रसिद्ध हो गया.

दिनों दिन सिकुड़ता जा रहा है बैल बाजार
शहर के साथ जिले का नाम तो बलौदा बाजार हो गया, लेकिन जिसके नाम पर जिले का नाम पड़ा आज वो ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. अधुनिकता और ट्रैक्टर-पावरटीलर के दौर में बैल बाजार लगभग बंद हो गए. हालांकि बैल का बाजार तो अब भी लगता है, लेकिन शहर में जो स्थान बैल बाजार के लिए सुरक्षित था, उसपर अब माफिया का कब्जा होते जा रहा है. दिनों दिन सिकुड़ता बैल बाजार आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है.

सरकार ने भी किया अतिक्रमण
बैल बाजार की जमीन पर न सिर्फ भू-माफिया बल्कि सरकार ने भी कब्जा करना शुरू कर दिया है. बाजार के आस-पास जहां भू-माफिया ने अतिक्रमण शुरू कर दिया है, वहीं बिजली विभाग ने भी उसी बैल बाजार में सब स्टेशन बना दिया है. जिसके कारण बैल बाजार और सिकुड़ता जा रहा है.

पहले हजारों की संख्या में आते थे मवेशी
मामाले में नगर पालिका की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं. पालिका पर आरोप है कि पालिका के अधिकारी मवेशी बाजार के लिए हर साल टेंडर निकाल देते हैं, लेकिन टेंडर लेने वाले ठेकेदार बाजार में बिकने आने वाले मवेशियों के लिए न तो पानी का व्यवस्था करते हैं न ही छांव के लिए शेड लगाया जाता है. जिसके कारण अब मवेशी बेचने वाले व्यापारी बलौदा बाजार से किनारा करने लगे हैं. पहले जब बाजार लगता था, तब अन्य प्रदेश के लोग भी यहां खरीद बिक्री करने पहुंचते थे, लेकिन अब मुश्किल से 50 से 100 मवेशी ही बिक्री के लिए आते हैं.

Intro:जिसके नाम से बलौदा बाजार का नाम आज उसका ही अस्तित्व खतरे पर । बालोद बाजार नामकारण के पीछे का कारण यह है कि पूर्व में यहां महाराष्ट्र, उड़ीसा ,गुजरात, हरियाणा आदि प्रदेशो से बैल ,भैसा (बोदा) मवेशियों का बहुत बड़ा बाजार लगता था , जिसमे मवेशी की खरीदी बिक्री होती थी। नगर के भैसा पसरा में मवेशियों की खरीद बिक्री के लिए एकत्र होते थे।
वही बैलबोदा बाजार के नाम से प्रचलित बाद के बलौदा बाजार वे रूप में नाम पड़ा।।




Body:छोटा होते जा रहा है बाजार

वही आज वही भैंसा पसरा मवेशियों का बाजार लगता था वह आज छोटा होते जा रहा है। बाजार के आस पास अतिक्रमण होने साथ ही वहां बिजली विभाग ने सब स्टेशन बनाया है जिसके कारण मूल स्वरूप छोटा हो गया है।

नगर पालिका साल भर में मवेशी बाज़ार का टेंडर निकाल देता है जिसके लिए उसे एक मुश्त राशि मिल जाती है लेकिन टेंडर लेने वाले ठेकेदार के द्वारा ना ही मवेशियों के लिए कोई व्यवस्था को जाती है ना ही पानी ,और नाही उनके छाव के लिए शेड लगता जाता है जिसके कारण अब मवेशी बेचने वाले बलौदा बाजार नही आकर अन्य बाजार में जाया करते है

पहले हज़ारों की संख्या में आते थे मवेशी

जब बाजार लगता था तब अन्य प्रदेश के लोग भी यह खरीदी बिक्री करने पहुचे थे लेकिन अब 50 से 100 मवेशी ही आते है।




Conclusion:वही जिस बाजार के नाम से बलौदा बाजार का नाम पड़ा आज उसकी देख रेख करने वाला नही हैं। साथ ही आज उसी बाजार का अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है।।

वहां गंदगियों का अंबार पड़ा रहता है। लोगो द्वारा भी वहां गन्दी की जाती है लेकिन इस ओर पालिका द्वारा भी ध्यान नही दिया जाता।।जिस बाजार से बलौदा बाजार की पहचान बनी आज वही विलप्त की कागार पर है




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स्थानीय

एस एम पाध्ये

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