बालोद: कोरोना और लॉकडाउन में जिले के पॉल्ट्री फार्म के व्यवसाय की स्थिति बेहद दयनीय हो गई है. दरअसल कोरोना काल में लोगों के बीच ये धारण आ गई कि मुर्गियों के माध्यम से कोरोना वायरस कहीं उन तक न पहुंच जाए, इस वजह से कई लोगों ने अंडों और चिकन से दूरी बना ली. जबकि सरकार ने मुर्गियों के लिए विशेष दिशा-निर्देश जारी किए थे कि मुर्गियों से कोरोनावायरस का कोई खतरा नहीं है. बावजूद इसके 10 रुपये, 20 रुपये के नग से भी ग्राहक मुर्गियां खरीदने को तैयार नहीं थे. इस दौरान पॉल्ट्री व्यवसायियों ने शराब दुकानों, बाजार में पानी के मूल्य में मुर्गियों को बेचने की कोशिश की, लेकिन वहां भी उन्हें उनकी लागत वसूल नहीं हुई. परिणाम यह रहा कि पॉल्ट्री व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हुआ. इस संकट के दौर में कंपनियों ने भी किसानों का साथ छोड़ दिया.
मुफ्त में बांटी गई मुर्गियां
कुक्कुट व्यवसायियों ने बताया कि स्थिति यहां तक आ गई थी कि मुर्गियां बिक नहीं रही थी और कंपनियों ने भी हाथ खड़े कर दिए थे.ऐसे समय में पॉल्ट्री व्यवसायियों ने मुफ्त में मुर्गियां बांटने के साथ ही कई मुर्गियों को मिट्टी में दबा दिया था. जिला पॉल्ट्री फार्म एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेंद्र देशमुख ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान कुक्कुट पालन किसानों की हालत काफी दयनीय हो गई.
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'किसानों को नहीं किया जा रहा भुगतान'
पॉल्ट्री फार्म एसोसिएशन के अध्यक्ष ने बताया कि फार्म में जो कंपनियां काम कर रही है उनके द्वारा किसानों के साथ छलावा किया जा रहा है. कई कंपनियां ऐसी है जो जनवरी के बाद से अब तक किसानों को भुगतान तक नहीं की है. जिसके कारण किसान कर्ज में डूब गए हैं. इस व्यवसाय को लेकर उनका मोहभंग हो रहा है. उन्होंने शालीमार नाम की कंपनी पर साल भर से किसानों को भुगतान नहीं करने का आरोप लगाया. अध्यक्ष ने ETV भारत से बताया कि वे इन सब समस्याओं को लेकर केंद्रीय मंत्री को पत्र लिख रहे हैं. इसके साथ ही जिला स्तर पर भी आंदोलन का रास्ता निकाला जा सकता है.