बालोद: माता शक्ति की उपासना के पर्व पर नवरात्रि आज से शुरुआत हो चुकी है. बालोद जिले के सभी शक्तिपीठों में मनोकामना दीप प्रज्वलित किए गए हैं. बालोद जिला मुख्यालय से लगे गंगा मैया शक्तिपीठ में इस बार प्रबंधन द्वारा भक्त जनों के सहयोग से आस्था के 900 दीप प्रज्वलित किए गए हैं. पहले ही दिन भक्तों का तांता लगा हुआ है. विधि विधान से आज ज्योत प्रज्ज्वलित किए गए हैं.
दूर दूर से आते हैं भक्त: नवरात्र में विशेषकर स्थानीय लोगों के साथ-साथ छत्तीसगढ़ देश और विदेश से भी यहां पर भक्त आते हैं क्योंकि इसका इतिहास अंग्रेजों के काल से जुड़ा हुआ है. स्थानीय लोगों ने बताया कि मां गंगा मैया मंदिर में हर मनोकामना पूर्ण होती है और साल के दोनों नवरात्र के पावन पर्व में वे दर्शन करने के लिए आते हैं.
मुंडन प्रथा है विशेष: दूरदराज से यहां पर लोग मुंडन कराने के लिए भी पहुंचे हुए हैं. लोग गंगा मैया को अपनी सिर के बाल दान करते हैं. पूरे छत्तीसगढ़ से लोग यहां मुंडन कराने के लिए पहुंचते हैं. बता दें कि मंदिर प्रबंधन द्वारा मुंडन प्रक्रिया के लिए यहां पर विशेष नई इत्यादि की व्यवस्था की जाती है.
पुलिस प्रशासन मुस्तैद: जिला पुलिस अधीक्षक डॉ. जितेंद्र कुमार यादव के निर्देशन में मां गंगा मैया मंदिर में बालोद थाने सहित आसपास के बल तैनात हैं. सुबह से ही सब को ड्यूटी बांट दी गई है और सभी अपने अपने कार्यों में लगे हुए हैं ताकि किसी प्रकार की अव्यवस्था ना हो. दरअसल शाम होते ही भक्तों की संख्या में काफी इजाफा होता है और आज पहला दिन है दूसरे दिन से ही यहां पर भक्तों की भीड़ में इजाफा होना शुरू होता है.
दिन प्रतिदिन होती है वृद्धि: यहां पर स्थानीय मंदिर ट्रस्टी पालक ठाकुर ने बताया कि दिन-प्रतिदिन भक्तों में वृद्धि हो रही है इसका कारण यह है कि यहां पर लोग मनोकामना मांगते हैं और मनोकामना पूर्ति भी होती है. उन्होंने कहा कि प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी पूड़ी सब्जी की व्यवस्था की गई है. दाल भात केंद्र की व्यवस्था की गई है, ताकि लोगों को उचित दर में दूर से आने वाले भक्तों को भोजन मिल पाए.
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लगभग 133 साल पुरानी है झलमला में नहर किनारे अवतरण की कथा: लगभग 133 साल पहले जिले की जीवन दायिनी तांदुला नदी पर नहर का निर्माण चल रहा था. उस दौरान झलमला की आबादी मात्र 100 थी. सोमवार को वहां बड़ा साप्ताहिक बाजार लगता था. बाजार में दूर-दराज से पशुओं के झुंड के साथ बंजारे आया करते थे. उस दौरान पशुओं की संख्या अधिक होने के कारण पानी की कमी महसूस की जाती थी. पानी की कमी को दूर करने बांधा तालाब की खुदाई कराई गई. गंगा मैय्या के प्रादुर्भाव की कहानी इसी तालाब से शुरू होती है.
स्वप्न के बाद प्रतिमा को निकाला बाहर: देवी ने गांव के गोंड़ जाति के बैगा को स्वप्न में आकर कहा कि मैं जल के अंदर पड़ी हूं. मुझे जल से निकालकर मेरी प्राण-प्रतिष्ठा करवाओ। स्वप्न की सत्यता को जानने के लिए तत्कालीन मालगुजार छवि प्रसाद तिवारी, केंवट और गांव के अन्य प्रमुखों को साथ लेकर बैगा तालाब पहुंचा. केंवट द्वारा जाल फेंके जाने पर वही प्रतिमा फिर जाल में फंस गई. फिर प्रतिमा को बाहर निकाला गया, उसके बाद देवी के आदेशानुसार छवि प्रसाद ने अपने संरक्षण में प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई. जल से प्रतिमा निकली होने के कारण गंगा मैय्या के नाम से विख्यात हुई.
बार-बार जाल में फंसती रही मूर्ति: मंदिर के व्यवस्थापक सोहन लाल टावरी ने बताया कि एक दिन ग्राम सिवनी का एक केवट मछली पकडऩे के लिए इस तालाब में गया. जाल में मछली की जगह एक पत्थर की प्रतिमा फंस गई. केंवट ने अज्ञानतावश उसे साधारण पत्थर समझ कर फिर से तालाब में डाल दिया. इस प्रक्रिया के कई बार पुनरावृत्ति से परेशान होकर केंवट जाल लेकर अपने घर चला गया.
अंग्रेजों ने प्रतिमा को हटाने का बहुत प्रयास किया: बताया जाता है कि तांदुला नहर निर्माण के दौरान गंगा मैया की प्रतिमा को वहां से हटाने बहुत प्रयास किए. ऐसी मान्यता है कि इसके बाद अंग्रेज एडम स्मिथ सहित और अन्य अंग्रेज साथियों की मौत हो गई थी.