बालोद: बालोद के गुंडरदेही नगर पर स्थित मंदिर के शांति में कहीं न कहीं खलल पड़ता नजर आया. कुछ दिन पहले विश्व हिंदू परिषद और राज परिवार के सदस्य राजेंद्र राय एवं मुस्लिम समाज की मौजूदगी में यह फैसला हुआ कि मंदिर के झंडे को निकाला जाएगा. जिसके बाद शुक्रवार से झंडे को उतार के मुस्लिम समाज को दिया है.
"ठाकुर रहते तो नहीं उतरता ध्वज": मुस्लिम समाज के अध्यक्ष सलीम खान ने पूरे मामले पर कहा कि" झंडे को उतारने पर कोई समस्या नहीं. दिक्कत उनको हो रहा, जिन लोगों ने ऐसा किया. इसमें राजनीति रहे, वो गलत है. ठाकुर जीवित होते तो ऐसा कभी नहीं होता." मुस्लिम समाज ने कहा कि" हम तो केवल यही अपील करते हैं कि बाहर जो भी हो रहा हो, बाहरी ताकतें जितनी भी कोशिश कर ले, हमारे गुंडरदेही में जो चल रहा है. वह सदैव चलता रहे. एकता अखंडता बनी रहे. कोई भी युवा, कोई भी समाज, किसी भी सांप्रदायिकता के बहकावे में ना आएं. हमेशा हिंदू मुस्लिम एक दूसरे का साथ देते रहें, बस हम यही चाहते हैं."
तालाब से निकली थी मूर्ति: स्थानीय लोगों ने बताया कि" चंडी माता की मूर्ति स्थानीय रामसागर तालाब से निकली थी. उसके साथ ही मुस्लिम समुदाय का पवित्र चांद भी निकला था." राजेंद्र कुमार राय ने बताया कि" उनके दादाजी ठाकुर निहाल सिंह, जो क्षेत्र के अंतिम जमींदार हुए, उन्होंने इस मंदिर की स्थापना की थी. इसके साथ ही हरे रंग का पवित्र सैयद बाबा साहब का चादर भी यहां लगाया गया. यह मंदिर वसुधैव कुटुंबकम का उदाहरण रहा. लेकिन शुक्रवार को इस पताके को मेंदिर से हटाया गया है."
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पूजा के बाद निकाली गई पताका: मंदिर के गर्भगृह से पताके को उतारते समय राज परिवार के सदस्यों ने विशेष पूजा की. वहां हरे झंडे को उतार कर मुस्लिम समाज को दे किया गया. ध्वज के साथ मंदिर में कुछ और के होने की बातें कही जा रही थी. झंडे को उतारते समय मंदिर में किसी को जाने की अनुमति नहीं थी. मंदिर के सदस्यों ने ही ध्वज को उतारा और मुस्लिम समाज को सौंप दिया."
चप्पे चप्पे पर तैनात रही पुलिस: क्योंकि मामला हिंदू और मुस्लिम समाज से जुड़ा हुआ था. इसलिए गुंडरदेही नगर में पुलिस तैनात थी. पल- पल की मॉनिटरिंग भी की जा रही थी, ताकि किसी तरह की कोई भी अव्यवस्था ना मंदिर में ना हो. ना ही शहर में और ना ही जिले में. क्योंकि जब पिछले दिनों ट्विटर पर यह तस्वीर पोस्ट की गई थी, तो तरह तरह की टिप्पणी अलग अलग विचारधारा के तरफ से की गई थी. प्रशासन को इस बात की चिंता थी कि कोई भी सांप्रदायिक विवाद यहां निर्मित ना हो.
100 साल से चली आ रही थी परंपरा: आपको बता दें कि, चंडी मां की पूजा के साथ मुस्लिम समाज के झंडे का इतिहास 100 साल पुराना है. वह क्षेत्र के जमींदार निहाल सिंह ने इसकी स्थापना की थी. राजपरिवार ही उसका देखरेख कर रहा है. शुक्रवार को राज परिवार के सदस्य राजेंद्र राय ने सबकी सहमति से यह फैसला लिया है.