बलरामपुर: जिले में जंगली हाथियों का आतंक रुकने का नाम नहीं ले रहा है. लगातार इससे नुकसान ही हो रहा है. सरकार हर साल हाथियों पर नियंत्रण के लिए लाखों रुपए खर्च कर रही हैं, लेकिन कहीं फायदा होता हुआ नहीं दिख रहा है. जंगली हाथियों पर काबू पाने के लिए लाखों रुपए खर्च कर कुमकी हाथी बाहर से लाए गए, पर इसका भी कोई फायदा नहीं हुआ.
देहरादून से लाए गए 3 कुमकी हाथी
जिले के राजपुर रेंज में हाथियों का पूरे 12 महीने आवागमन रहता है और हर साल इससे सिर्फ नुकसान ही हो रहा है. हाथियों पर नियंत्रण के लिए विभाग ने कुमकी हाथियों का सहारा लिया और देहरादून से 2 मादा और 1 नर कुल 3 कुमकी हाथियों को लाया गया. पिछले साल इन कुमकी हाथियों को लाया गया था और इससे जंगली हाथियों पर नियंत्रण करने का उद्देश्य था, लेकिन राजपुर पहुंचते ही दोनों मादा कुमकी हाथियों ने बच्चों को जन्म दिया और अब वो अपने बच्चों की सेवा में लग गई हैं.
कुमकी हाथियों को लाने में 15 लाख हुआ खर्च
राजपुर के वन परिक्षेत्राधिकारी ने बताया की कुमकी हाथी अगर बच्चों को जन्म देती हैं तो 2 साल तक वो बच्चो को नहीं छोड़ती, जिससे इस समय उनसे कोई भी काम नहीं लिया जा सकता है. एक कुमकी हाथी को देहरादून या अन्य बाहरी प्रदेशों से लाने में तकरीबन 5 लाख रुपये का खर्च आता है और इन हाथियों को भी लाने में लगभग 15 लाख रुपए का खर्च हुआ है.
वन परिक्षेत्राधिकारी ने कुमकी हाथियों के उपयोग में एक महत्वपूर्ण बात बताई की कुमकी हाथी की मदद से सिर्फ एक या दो ही जंगली हाथियों पर काबू पाया जा सकता है, जंगली हाथी अगर दल में होते हैं तो उसे कुमकी से नियंत्रण करना काफी मुश्किल होता है. उन्होंने कहा की अगर जंगली हाथी दल में हैं और अकेला कुमकी महावत के साथ उन्हें नियंत्रण करने जाता है, तो न सिर्फ कुमकी की जान को खतरा है बल्कि महावत की भी जान जा सकती है. तीर्थराज कुमकी हाथी के बारे में उन्होंने बताया कि उसकी मदद से जंगली हाथी को गांव के बाहर खदेड़ने में काफी मदद मिली, जिसके बाद जंगली हाथी में कॉलर आईडी लगाकर उस पर निगरानी रखी जा रही हैं.
रेंजर ने कहा की तीर्थराज, राजलक्ष्मी और गंगा नाम की तीनों कुमकी हाथियों से अब दो साल बाद ही काम लिया जा सकता है.