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SPECIAL : मुश्किलों से हार मानने वालों को आशीष से सीखना चाहिए, जिंदगी जीने का सलीका

18 साल के आशीष सोनी की, जो 12वीं क्लास में पढ़ाई कर रहा है. आशीष जन्म से दिव्यांग है और उनके हाथ और पैर नहीं हैं. बावजूद इसके आशीष जिले के शंकरगढ़ जनपद कार्यालय की मनरेगा शाखा में कम्प्यूटर ऑपरेटर का काम करता है.

WORLD HANDICAPPED DAY_BALRAMPUR_SARGUJA_विश्व दिव्यांग दिवस
मुश्किलों से हार मानने वालों को आशीष से सीखना चाहिए, जिंदगी जीने का सलीका
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Published : Dec 3, 2019, 3:29 PM IST

बलरामपुर: ये हौसलों की उड़ान है. जी हां ये उड़ान सिर्फ हौसलों की है क्योंकि जिस उड़ान की कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं जिसे सुनकर आप भी उत्साह से भर जाएंगे. बलरामपुर जिले में एक ऐसा युवक है जो बिना हाथ और बिन पैर के अपनी जिंदगी की उड़ान भर रहा है.

मुश्किलों से हार मानने वालों को आशीष से सीखना चाहिए, जिंदगी जीने का सलीका

हम बात कर रहे हैं 18 साल के आशीष सोनी की, जो 12वीं क्लास में पढ़ाई कर रहा है. आशीष के पिता बताते हैं कि, आशीष जन्म से दिव्यांग है और उनके हाथ और पैर नहीं हैं. बावजूद इसके आशीष जिले के शंकरगढ़ जनपद कार्यालय की मनरेगा शाखा में कंप्यूटर ऑपरेटर का काम करता है.

पढ़ें- संकट में सरोवर: कहीं मिट न जाए कलचुरी काल का गौरवशाली इतिहास

आशीष की लगन और मेहनत को देखकर उसे जनपद कार्यालय में कलेक्टर दर के हिसाब से काम पर रखा गया है. बता दें कि आशीष के काम करने का अंदाज और फूर्ती किसी भी स्वस्थ इंसान को चुनौती दे सकती है. आप कभी बिना उंगलियों के कंप्यूटर के की-बोर्ड चलाने की कल्पना भी नहीं कर सकते, लेकिन आशीष कम्प्यूटर ऑपरेट करता है, स्मार्ट फोन चलाता है.

पढ़ें- रायपुर दौरे पर कांग्रेस प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया, चुनाव समिति बैठक में होंगे शामिल

ETV भारत की टीम आशीष के दफ्तर पहुंची जहां वो रोज की तरह अपनी टेबल पर बैठ कर कम्प्यूटर चला रहा था. देख कर हैरत हुआ, लेकिन इस सच्चाई को आप भी देख सकते हैं कि, इस युवा का जज्बा प्रेरणादायक है. वहीं आशीष ने ईटीवी भारत के संवाददाता का मोबाइल नंबर लिया और उसे अपने मोबाइल से सेव करके महज कुछ ही सेकेंड में वाट्सएप पर मैसेज कर दिया. इतना ही नहीं उसका घर दफ्तर से 17 किलोमिटर दूर है. वह मनोहरपुर गांव में रहता है, जहां से हर दिन चार चक्के वाली स्कूटी से ऑफिस पहुंचता है.

पढ़ें- बलौदाबाजार : फर्जीवाड़ा कर 2 साल से खाली पड़े पद का वेतन डकारते रहे अधिकारी

आशीष के पिता जगन्नाथ सोनी बताते हैं, कि उनकी आर्थिक हालात ठीक नहीं है वो घर-घर जाकर बर्तन बेचने का काम करते थे और बड़ी कठिनाइयों से उन्होंने अपने दोनों बेटों को पढ़ाया लिखाया है. वे अपना ज्यादातर समय आशीष की देखभाल में ही बिताते हैं. अब जब आशीष कलेक्टर दर पर नौकरी कर रहा है तो उसके पिता अंगरक्षक की तरह उसके साथ यहां रहते हैं और उसकी मदद करते हैं. बहरहाल आशीष के इस मनोबल के साथ उनके पिता का त्याग भी बड़ा अहम है, जिस वजह से वह अपनी जिंदगी की उड़ान भरने की दिशा में निकल पड़ा है.

बलरामपुर: ये हौसलों की उड़ान है. जी हां ये उड़ान सिर्फ हौसलों की है क्योंकि जिस उड़ान की कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं जिसे सुनकर आप भी उत्साह से भर जाएंगे. बलरामपुर जिले में एक ऐसा युवक है जो बिना हाथ और बिन पैर के अपनी जिंदगी की उड़ान भर रहा है.

मुश्किलों से हार मानने वालों को आशीष से सीखना चाहिए, जिंदगी जीने का सलीका

हम बात कर रहे हैं 18 साल के आशीष सोनी की, जो 12वीं क्लास में पढ़ाई कर रहा है. आशीष के पिता बताते हैं कि, आशीष जन्म से दिव्यांग है और उनके हाथ और पैर नहीं हैं. बावजूद इसके आशीष जिले के शंकरगढ़ जनपद कार्यालय की मनरेगा शाखा में कंप्यूटर ऑपरेटर का काम करता है.

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आशीष की लगन और मेहनत को देखकर उसे जनपद कार्यालय में कलेक्टर दर के हिसाब से काम पर रखा गया है. बता दें कि आशीष के काम करने का अंदाज और फूर्ती किसी भी स्वस्थ इंसान को चुनौती दे सकती है. आप कभी बिना उंगलियों के कंप्यूटर के की-बोर्ड चलाने की कल्पना भी नहीं कर सकते, लेकिन आशीष कम्प्यूटर ऑपरेट करता है, स्मार्ट फोन चलाता है.

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ETV भारत की टीम आशीष के दफ्तर पहुंची जहां वो रोज की तरह अपनी टेबल पर बैठ कर कम्प्यूटर चला रहा था. देख कर हैरत हुआ, लेकिन इस सच्चाई को आप भी देख सकते हैं कि, इस युवा का जज्बा प्रेरणादायक है. वहीं आशीष ने ईटीवी भारत के संवाददाता का मोबाइल नंबर लिया और उसे अपने मोबाइल से सेव करके महज कुछ ही सेकेंड में वाट्सएप पर मैसेज कर दिया. इतना ही नहीं उसका घर दफ्तर से 17 किलोमिटर दूर है. वह मनोहरपुर गांव में रहता है, जहां से हर दिन चार चक्के वाली स्कूटी से ऑफिस पहुंचता है.

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आशीष के पिता जगन्नाथ सोनी बताते हैं, कि उनकी आर्थिक हालात ठीक नहीं है वो घर-घर जाकर बर्तन बेचने का काम करते थे और बड़ी कठिनाइयों से उन्होंने अपने दोनों बेटों को पढ़ाया लिखाया है. वे अपना ज्यादातर समय आशीष की देखभाल में ही बिताते हैं. अब जब आशीष कलेक्टर दर पर नौकरी कर रहा है तो उसके पिता अंगरक्षक की तरह उसके साथ यहां रहते हैं और उसकी मदद करते हैं. बहरहाल आशीष के इस मनोबल के साथ उनके पिता का त्याग भी बड़ा अहम है, जिस वजह से वह अपनी जिंदगी की उड़ान भरने की दिशा में निकल पड़ा है.

Intro:बलरामपुर : ये हौसलों की उड़ान है... जी हां ये उड़ान सिर्फ हौसलों की है क्योंकी जिस उड़ान की कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं उसे सुनकर आप भी उत्साह से भर जाएंगे अपने लक्ष्य को पाने की आपकी उम्मीदें नई ताजगी से भर जाएंगी, क्योंकी छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले में एक ऐसा युवक है जो बिना हाथ और बिन पैर के अपनी जिंदगी की उड़ान भर रहा है।

हम बात कर रहे हैं 18 वर्षीय आशीष सोनी की जो अभी कक्षा 12 वीं की पढ़ाई ही कर रहे हैं पर इनके जज्बे की जितनी तारीफ की जाए कम है, आशीष जन्म से दिव्यांग है आशीष के दोनों पैर और दोनों हाथ नही हैं। बावजूद इसके आशीष जिले के शंकरगढ़ जनपद कार्यालय की मनरेगा शाखा में कम्प्यूटर ऑपरेटर का काम करता है, आशीष की लगन और मेहनत देखकर उसे जनपद कार्यालय में कलेक्टर दर पर रखा गया है, लेकिन आशीष के काम करने का अंदाज और फूर्ती किसी भी स्वस्थ इंसान को चुनौती दे सकती हैं, आप कभी बिना उंगलियों के कम्प्यूटर के की बोर्ड चलाने की कल्पना भी नही कर सकते और आशीष अपने आधे हाथ से की बोर्ड ऑपरेट करता है, स्मार्ट फोन चलाता है, आशीष ने ईटीवी संवाददाता का मोबाइल नंबर लिया और उसे अपने मोबाइल से सेव् करके महज कुछ ही सेकेंड में वाट्सएप पर मैसेज कर दिया, आशीष इसे जज्बा मानते हैं पर देखने पर यह साधारण बिल्कुल भी नही लगता, लेकिन ये सब कुछ सच है।

ईटीवी भारत आशीष के दफ्तर पहुंचा जहां वो रोज की तरह अपनी टेबल पर बैठ कर कम्प्यूटर चला रहा था, देख कर हैरत हुआ, लेकिन इस सच्चाई को आप भी देख सकतें हैं की इस युवा का जज्बा प्रेरणादायक है। इतना ही नही आशीष का घर उसके दफ्तर से 17 किंज4 दूर है वह मनोहरपुर गांव में रहता है, जहां से प्रतिदिन वो चार चके वाली स्कूटी चलाकर आता है।


Body:आशीष के पिता जगन्नाथ सोनी बताते हैं, की उनकी मलीय हालात ठीक नही है वो घर घर जाकर बर्तन बेचने का काम करते थे और बड़ी कठिनाइयों से उन्होंने अपने दोनों बेटों को पढ़ाया और ज्यादातर समय आषीश की देखभाल में ही बीत गया अब जब आशीष कलेक्टर दर पर नौकरी कर रहा है तो उसके पिता अंगरक्षक की तरह उसके साथ यहां रहते हैं। और उन्हे मदद की दरकार है।

बहरहाल आशीष के इस मनोबल के साथ उनके पिता का त्याग भी बड़ा अहम है, जिस वजह से वह अपनी जिंदगी की उड़ान भरने की दिशा में निकल पड़ा है।


Conclusion:121_आशीष सोनी (दिव्यांग युवा)

बाईट01_जगन्नाथ सोनी (आशीष के पिता)

देश दीपक सरगुज़ा
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