सरगुजा : भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव सम्पूर्ण भारत में हर वर्ष भादो मास की अष्टमी तिथि को बड़े ही हर्सोल्लास के साथ मनाया जाता है. अंबिकापुर के रघुनाथ पैलेस में स्थित राधा बल्लभ मंदिर में भी कृष्ण जन्माष्टमी के दिन सम्पूर्ण सरगुज़ा से श्रद्धालु आते थे और भगवान का जन्मोत्सव मनाते थे, लेकिन इस वर्ष कोरोना महामारी की वजह से इस मंदिर में आम लोगों का प्रवेश निषेध है. सिर्फ राजपरिवार के पुरोहित और मंदिर में नियमित पूजा पाठ करने वाले पंडितों के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाएगा.
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जन्माष्टमी पर क्या है शुभ मुहूर्त
इस साल जन्माष्टमी 11, 12 और 13 अगस्त को मनाया जा रहा है. 11 अगस्त को भरणी नक्षत्र और 12 अगस्त को कृतिका नक्षत्र है. इसलिए इस साल दोनों ही दिन जन्माष्टमी मनायी जा रही है. जनमाष्टमी की पूजा रात 12 बजे के बाद ही की जाती है. इस साल जन्माष्टमी की पूजा का शुभ समय रात 12.05 से 12.47 तक का है. पूजा की अवधि 43 मिनट की है.
पूजा की विधि
जन्माष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, इसलिए इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल्य रूप की पूजा की जाती है. सबसे पहले भगवान को दूध, दही, शहद और जल से स्नान कराया जाता है. भगवान को पीतांबर रंग पसंद है, इसलिए उन्हें पीतांबर वस्त्र धारण कराया जाता है. इसके बाद भगवान का श्रृंगार कर उन्हें झूले में बैठाया जाता है. जिसके बाद गोपाल पर चंदन-फूल चढ़ाकर पूजा की जाती है.
मथुरा में 12 अगस्त को मनाई जाएगी जन्माष्टमी
इस साल जगन्नाथ पुरी, बनारस और उज्जैन में जन्माष्टमी 11 अगस्त को मनाई जाएगी, जबकि मथुरा और द्वारका में 12 अगस्त को भगवान का जन्मोत्सव मनाया जाएगा.
जन्माष्टमी व्रत का महत्व
शास्त्रों में जन्माष्टमी को व्रतराज कहा गया है. इसे सभी व्रत से सर्वश्रेष्ठ माना गया है. इस दिन व्रत कर नियम से पूजा-पाठ करने पर संतान, मोक्ष और भगवान की प्राप्ति होती है. माना जाता है कि जन्माष्टमी का व्रत करने से सुख-समृद्धि और दीर्घायु का वरदान मिलता है. इस व्रत को करने से अनेकों व्रत के फल मिलते हैं.