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SPECIAL: खूबियों से भरा है छत्तीसगढ़ का ये 105 साल पुराना सरकारी स्कूल

इस स्कूल को करीब से देखने के बाद आपका भ्रम टूट जाएगा कि शासकीय स्कूल बेकार होते हैं या फिर वहां किसी प्राइवेट स्कूल से भी बेहतर पढ़ाई हो सकती है. यहां की खूबसूरत तस्वीरें आपको एक पॉजीटिव बदलाव महसूस करने पर मजबूर कर देंगी.

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Published : Jul 6, 2019, 8:37 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST

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सरगुजा: छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूल नए आयाम गढ़ रहे हैं. आपके जेहन में सरकारी स्कूल की जो नकारात्मक तस्वीर उभरती है, यहां के विद्यालय उसे काफी हद तक बदलने में सफल साबित हो रहे हैं. ऐसा ही एक है अंबिकापुर का मल्टीपर्पज स्कूल.

छत्तीसगढ़ का ये 105 साल पुराना सरकारी स्कूल

अंबिकापुर का मल्टीपर्पज स्कूल यानी कि शासकीय एडवर्ड बहुउद्देश्यीय हायर सेकडरी विद्यालय इस स्कूल को करीब से देखने के बाद आपका भ्रम टूट जाएगा कि शासकीय स्कूल बेकार होते हैं या फिर वहां किसी प्राइवेट स्कूल से भी बेहतर पढ़ाई हो सकती है. यहां की खूबसूरत तस्वीरें आपको एक पॉजीटीव बदलाव महसूस करने पर मजबूर कर देंगी.

शताब्दी वर्ष मना चुका है स्कूल
अंबिकापुर का ये स्कूल अपने आप में कई बड़ी उपलब्धियों को समेटा हुआ है. ETV भारत की टीम जब यहां पहुंची, तो उपलब्धियां जानकर न सिर्फ हैरानी हुई बल्कि उम्मीद की नई किरण ने भी जन्म लिया. सबसे पहले तो आपको हम ये बता दें कि यह स्कूल अपना शताब्दी वर्ष मना चुका है.

क्या है स्कूल की खासियत-

  • इस स्कूल को पूरे 105 वर्ष हो चुके हैं, देश की आजादी से पहले से वर्ष 1914 से यह स्कूल यहां संचालित है. इस स्कूल की स्थापना सरगुजा के तत्कालीन महराज स्वर्गीय रघुनाथ शरण सिंह जूदेव ने की थी और तब इसे एडवर्ड स्कूल के नाम से जाना जाता था, बाद में नाम बदला गया लेकिन आज भी एडवर्ड शब्द स्कूल के नाम के पहले जोड़ा जाता है.
  • इसके आलवा इस स्कूल की खासियत यह है कि यहां सीजीबोर्ड से हिंदी मीडियम और सीबीएसई अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई कराई जा रही है, लिहाजा पढ़ाई का स्तर किसी प्राइवेट स्कूल से बेहतर है.
  • जब स्कूल शुरू किया गया तो यहां पहले वर्ष में मात्र 24 विद्द्यार्थी ही पढ़ते थे और मान्यता प्राप्त करने की कठिनाइयों की वजह से इस वर्ष महज 2 छात्र ही परीक्षा में शामिल हो सके थे. इस स्कूल के पहले प्रधान पाठक परमेश्वर दयाल थे. ये स्कूल 1914 से 1955 तक एडवर्ड हाई स्कूल के नाम से जाना जाता रहा है और तब ये इलाहाबाद फिर बाद में नागपुर बोर्ड से संबद्ध रहा.
  • यहां के विद्द्यार्थियों को रायपुर परीक्षा केंद्र में सम्मिलित होना पड़ता था. विद्यालय का दो मंजिला भवन तब नगर निगम स्कूल के प्रांगण में स्थित था. तभी इस भवन के भूकंप से क्षतिग्रस्त होने के कारण और विद्यार्थियों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर तत्कालीन महाराजा स्व. रामानुज शरण सिंह देव ने अपने इंजीनियर सीपी वर्मा से इस स्कूल के भवन का निर्माण कराया, जिसका डिजाइन अंग्रेजी के E के अक्षर की तरह थी.
  • भवन निर्माण के बाद 11 नवंबर 1946 को सरगुजा रियासत के तत्कालीन युवराज स्वर्गीय अम्बिकेश्वर शरण सिंह देव ने इसका उद्घाटन किया और देश की आजादी के बाद यह विद्यालय मध्य प्रदेश गठन के साथ ही पहले महाकौशल बोर्ड जबलपुर और फिर भोपाल बोर्ड से सबद्ध हुआ. साल 1955 में शासन ने मल्टीपर्पज स्कीम लागू की और तब से इसका नाम शासकीय एडवर्ड बहुउद्देश्यीय उच्चतर माध्यमिक स्कूल हो गया.

छात्रों के बारे में भी जानिए-

  • इस विद्द्यालय में सबसे पहले द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण होने वाले छात्र अवध बिहारी शरण वर्मा थे, जिन्होंने 1930 में हाई स्कूल में सेकेंड डिवीजन लाकर रिकॉर्ड बनाया था. लिहाज सरगुजा स्टेट द्वारा उन्हें हाथी पर बैठाकर नगर भ्रमण कराया गया था, साथ ही उच्च शिक्षा के लिए स्टेट में खर्च पर मेक्सिको भेजा गया था.
  • 1939 में फिर हाई स्कूल की परीक्षा में सेकेंड आने वाली छात्रा शकुंतला वर्मा थीं.
  • 1942 में मो. फहीमुद्दीन अंसारी भी सेकेंड डिवीजन पास हुए.
  • इन सबको पछाड़ते हुए 1950 में पहली बार गिरिजा शंकर पटेल ने हाई स्कूल परीक्षा में प्रथम श्रेणी प्राप्त किया.

छात्रों ने नाम रोशन किया-
यहां पढ़कर निकलने वाले विद्द्यर्थियों ने भी स्कूल का नाम रोशन किया है. यहां के नाम जिन्होंने अपने बल पर मुकाम हासिल किया है.

  • शिवदास अग्रवाल रीजेंट, बोस्टन विश्वविद्यालय अमेरिका में सेटल.
  • मो फहीमुद्दीन, मगध विश्वविद्यालय बोध गया, बिहार के कुलपति हुए.
  • अंतराष्ट्रीय कवि शैल चतुर्वेदी.
  • पूर्व सांसद कमलभान सिंह.
  • पीजी कालेज में प्राचार्य एस के त्रिपाठी.
  • एच आर वर्मा एडिशमल एसपी.
  • अशोक अम्बष्ट वैज्ञानिक.
  • सुनील सिन्हा न्यायाधीश हाईकोर्ट बिलासपुर, तहसीलदार.
  • छत्तीसगढ़ के ऐसे सरकार स्कूल, जो उज्जवल भविष्य की उम्मीद की किरण हैं, उन्हें हमारा सलाम.

सरगुजा: छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूल नए आयाम गढ़ रहे हैं. आपके जेहन में सरकारी स्कूल की जो नकारात्मक तस्वीर उभरती है, यहां के विद्यालय उसे काफी हद तक बदलने में सफल साबित हो रहे हैं. ऐसा ही एक है अंबिकापुर का मल्टीपर्पज स्कूल.

छत्तीसगढ़ का ये 105 साल पुराना सरकारी स्कूल

अंबिकापुर का मल्टीपर्पज स्कूल यानी कि शासकीय एडवर्ड बहुउद्देश्यीय हायर सेकडरी विद्यालय इस स्कूल को करीब से देखने के बाद आपका भ्रम टूट जाएगा कि शासकीय स्कूल बेकार होते हैं या फिर वहां किसी प्राइवेट स्कूल से भी बेहतर पढ़ाई हो सकती है. यहां की खूबसूरत तस्वीरें आपको एक पॉजीटीव बदलाव महसूस करने पर मजबूर कर देंगी.

शताब्दी वर्ष मना चुका है स्कूल
अंबिकापुर का ये स्कूल अपने आप में कई बड़ी उपलब्धियों को समेटा हुआ है. ETV भारत की टीम जब यहां पहुंची, तो उपलब्धियां जानकर न सिर्फ हैरानी हुई बल्कि उम्मीद की नई किरण ने भी जन्म लिया. सबसे पहले तो आपको हम ये बता दें कि यह स्कूल अपना शताब्दी वर्ष मना चुका है.

क्या है स्कूल की खासियत-

  • इस स्कूल को पूरे 105 वर्ष हो चुके हैं, देश की आजादी से पहले से वर्ष 1914 से यह स्कूल यहां संचालित है. इस स्कूल की स्थापना सरगुजा के तत्कालीन महराज स्वर्गीय रघुनाथ शरण सिंह जूदेव ने की थी और तब इसे एडवर्ड स्कूल के नाम से जाना जाता था, बाद में नाम बदला गया लेकिन आज भी एडवर्ड शब्द स्कूल के नाम के पहले जोड़ा जाता है.
  • इसके आलवा इस स्कूल की खासियत यह है कि यहां सीजीबोर्ड से हिंदी मीडियम और सीबीएसई अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई कराई जा रही है, लिहाजा पढ़ाई का स्तर किसी प्राइवेट स्कूल से बेहतर है.
  • जब स्कूल शुरू किया गया तो यहां पहले वर्ष में मात्र 24 विद्द्यार्थी ही पढ़ते थे और मान्यता प्राप्त करने की कठिनाइयों की वजह से इस वर्ष महज 2 छात्र ही परीक्षा में शामिल हो सके थे. इस स्कूल के पहले प्रधान पाठक परमेश्वर दयाल थे. ये स्कूल 1914 से 1955 तक एडवर्ड हाई स्कूल के नाम से जाना जाता रहा है और तब ये इलाहाबाद फिर बाद में नागपुर बोर्ड से संबद्ध रहा.
  • यहां के विद्द्यार्थियों को रायपुर परीक्षा केंद्र में सम्मिलित होना पड़ता था. विद्यालय का दो मंजिला भवन तब नगर निगम स्कूल के प्रांगण में स्थित था. तभी इस भवन के भूकंप से क्षतिग्रस्त होने के कारण और विद्यार्थियों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर तत्कालीन महाराजा स्व. रामानुज शरण सिंह देव ने अपने इंजीनियर सीपी वर्मा से इस स्कूल के भवन का निर्माण कराया, जिसका डिजाइन अंग्रेजी के E के अक्षर की तरह थी.
  • भवन निर्माण के बाद 11 नवंबर 1946 को सरगुजा रियासत के तत्कालीन युवराज स्वर्गीय अम्बिकेश्वर शरण सिंह देव ने इसका उद्घाटन किया और देश की आजादी के बाद यह विद्यालय मध्य प्रदेश गठन के साथ ही पहले महाकौशल बोर्ड जबलपुर और फिर भोपाल बोर्ड से सबद्ध हुआ. साल 1955 में शासन ने मल्टीपर्पज स्कीम लागू की और तब से इसका नाम शासकीय एडवर्ड बहुउद्देश्यीय उच्चतर माध्यमिक स्कूल हो गया.

छात्रों के बारे में भी जानिए-

  • इस विद्द्यालय में सबसे पहले द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण होने वाले छात्र अवध बिहारी शरण वर्मा थे, जिन्होंने 1930 में हाई स्कूल में सेकेंड डिवीजन लाकर रिकॉर्ड बनाया था. लिहाज सरगुजा स्टेट द्वारा उन्हें हाथी पर बैठाकर नगर भ्रमण कराया गया था, साथ ही उच्च शिक्षा के लिए स्टेट में खर्च पर मेक्सिको भेजा गया था.
  • 1939 में फिर हाई स्कूल की परीक्षा में सेकेंड आने वाली छात्रा शकुंतला वर्मा थीं.
  • 1942 में मो. फहीमुद्दीन अंसारी भी सेकेंड डिवीजन पास हुए.
  • इन सबको पछाड़ते हुए 1950 में पहली बार गिरिजा शंकर पटेल ने हाई स्कूल परीक्षा में प्रथम श्रेणी प्राप्त किया.

छात्रों ने नाम रोशन किया-
यहां पढ़कर निकलने वाले विद्द्यर्थियों ने भी स्कूल का नाम रोशन किया है. यहां के नाम जिन्होंने अपने बल पर मुकाम हासिल किया है.

  • शिवदास अग्रवाल रीजेंट, बोस्टन विश्वविद्यालय अमेरिका में सेटल.
  • मो फहीमुद्दीन, मगध विश्वविद्यालय बोध गया, बिहार के कुलपति हुए.
  • अंतराष्ट्रीय कवि शैल चतुर्वेदी.
  • पूर्व सांसद कमलभान सिंह.
  • पीजी कालेज में प्राचार्य एस के त्रिपाठी.
  • एच आर वर्मा एडिशमल एसपी.
  • अशोक अम्बष्ट वैज्ञानिक.
  • सुनील सिन्हा न्यायाधीश हाईकोर्ट बिलासपुर, तहसीलदार.
  • छत्तीसगढ़ के ऐसे सरकार स्कूल, जो उज्जवल भविष्य की उम्मीद की किरण हैं, उन्हें हमारा सलाम.
Intro:सरगुज़ा : सरकारी स्कूल का नाम सुनते ही आम तौर पर लोगो का नजरिया हमेशा नकारात्मक ही होता है.. आधुनिक समाज मे यही माना जाता है की गरीब तपके के लोग अपने बच्चों को मज़बूरी में यहां पढ़ाते हैं, यह आम राय बन चुकी है की सरकारी है तो खराब ही होगा.. लेकिन ऐसा नही है, इस बात को साबित करता है अम्बिकापुर का मल्टीपर्पज स्कूल यानी की शासकीय एडवर्ड बहुउद्देश्यीय हायर सेकेंड्री विद्द्यालय.. इस स्कूल को करीब से देखने के बाद आपका भ्रम टूट जाएगा की शासकीय स्कूल बेकार होते हैं या फिर वहां किसी प्राइवेट स्कूल से भी बेहतर पढ़ाई हो सकती है।

अम्बिकापुर का यह स्कूल अपने आप मे कई बड़ी उपलब्धियों को समेटे हुए है, ईटीव्ही भारत की टीम ने इस स्कूल का जायजा लिया, करीब से जानने के बाद जो तथ्य सामने आए वो चौकाने वाले थे, क्योकी एक सरकारी स्कूल से इतनी उपलब्धियों की उम्मीद हमे भी नही थी..

सबसे पहले तो आपको बता दें की यह स्कूल अपना शताब्दी वर्ष मना चुका है, मतलब इस स्कूल को पूरे 105 वर्ष हो चुके हैं, देश की आजादी से पहले से वर्ष 1914 से यह स्कूल यहां संचालित है, इस स्कूल की स्थापना सरगुज़ा के तत्कालीन महराज स्व. रघुनाथ शरण सिंह जू देव ने की थी और तब इसे एडवर्ड स्कूल के नाम से जाना जाता था, बाद में नाम बदला गया लेकिन आज भी एडवर्ड शब्द स्कूल के नाम के पहले जोड़ा जाता है। जब स्कूल शुरू किया गया तो यहां पहले वर्ष में मात्र 24 विद्द्यार्थी ही अध्यन रत थे, और मान्यता प्राप्त करने की कठिनाइयों की वजह से इस वर्ष महज 2 छात्र ही परीक्षा में शामिल हो सके थे इस स्कूल के पहले प्रधान पाठक परमेश्वर दयाल थे, यह स्कूल 1914 से 1955 तक एडवर्ड हाई स्कूल के नाम से जाना जाता रहा है, और तब ये इलाहाबाद तदनन्तर नागपुर बोर्ड से संबंद्ध रहा, यहां के विद्द्यार्थीयों को रायपुर परीक्षा केंद्र में सम्मिलित होना पड़ता था, विद्यालय का दो मंजिला भवन वर्तमान में नगर निगम स्कूल के प्रांगण में अव्यवस्थित था, तभी इस भवन के भूकंप से क्षतिग्रस्त होने के कारण और विद्यार्थियों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर तत्कालीन माहाराजा स्व. रामानुज शरण सिंह देव ने अपने इंजीनियर सी पी वर्मा से इस स्कूल ले भवन का निर्माण कराया जिसका निर्माण अंग्रेजी के E अक्षर के जैसा डिजाइन किया गया, भवन निर्माण के बाद 11 नवम्बर 1946 को सरगुज़ा रियासत के तत्कालीन युवराज स्व.अम्बिकेश्वर शरण सिंह देव ने इसका उद्घाटन किया, और देश की आजादी के बाद यह विद्द्यालय मध्यप्रदेश गठन के साथ ही पहले महाकौशल बोर्ड जबलपुर और फिर भोपाल बोर्ड से सबद्ध हुआ। सन 1955 में शासन ने मल्टीपर्पज स्कीम लागू की और तब से इसका नाम शासकीय एडवर्ड बहुउद्देश्यीय उच्चतर माध्यमिक विद्द्यालय हो गया।

इस विद्द्यालय में सबसे पहले द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण होने वाले छात्र अवध बिहारी शरण वर्मा थे जिन्होंने 1930 में हाई स्कूल में सेकेंड डिवीजन लाकर रिकार्ड बनाया था, लिहाज सरगुज़ा स्टेट द्वारा उन्हें हाथी पर बैठाकर नगर भ्रमण कराया गया था साथ ही उच्च शिक्षा के लिए स्टेट में खर्च पर मेक्सिको भेजा गया था। 1939 में फिर हाई स्कूल की परीक्षा में सेकेंड आने वाली छात्रा शकुंतला वर्मा थीं और 1942 में मो.फहीमुद्दीन अंसारी ने भी सेकेंड डिवीजन लाया था, लेकिन इन सबको पछाड़ते हुए 1950 में पहली बार गिरिजा शंकर पटेल ने हाई स्कूल परीक्षा में प्रथम श्रेणी प्राप्त किया।

यहां पढ़कर निकलने वाले विद्द्यर्थियों ने भी स्कूल का नाम रोशन किया है, यहां पढ़ने वाले बाद में बड़ी हस्तियां हुई है, देखिए इस स्कूल में पढ़ने वाले ऐसे लोगो ने नाम जिन्होंने आज कीर्तिमान रचा है, शिवदास अग्रवाल रीजेंट, बोस्टन विश्वविद्यालय अमेरिका में सेटल, मो फहीमुद्दीन जो मगध विश्वविद्यालय बोध गया, बिहार के कुलपति हुए, अंतराष्ट्रीय कवि शैल चतुर्वेदी, पूर्व सांसद कमलभान सिंह, पीजी कालेज में प्राचार्य एस के त्रिपाठी, एच आर वर्मा एडिशमल एसपी, अशोक अम्बष्ट वैज्ञानिक सुनील।सिंन्हा न्यायाधीश हाईकोर्ट बिलासपुर, तहसीलदार, कई विधायक कई सांसद और निजी सेवा के क्षेत्र में बड़े आयाम हासिल करने वाले संभाग के सबसे बड़े निजी अस्पताल के संचालक डॉ जे के सिंह जैसी हस्तियाँ इस स्कूल से पढ़कर निकली है।




Body:इसके आलवा इस स्कूल की खासियत यह है की यहां सीजीबोर्ड से हिंदी मीडियम से और सीबीएसई अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई कराई जा रही है, लिहाजा पढ़ाई का स्तर किसी प्राइवेट स्कूल से।कम नही,


Conclusion:बहरहाल इतनी उपलब्धियों के बीच यहां के भवन अभी तक इतने मजबूत थे की 105 वर्ष पुराने भवन की इमारत सब तक मजबूती के साथ खड़ी जसि।

बाईट01_डॉ जेके सिंह, ( हसनैन खान,)

121_कृष्ण कुमार राय के साथ

नोट - अगर कुछ कमी हो खबर में तो सुबह मुझे सूचित करें , तुरंत
Last Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST
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