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World Tourism Day: ये है छत्तीसगढ़ का शिमला, कुदरत का सुंदर उपहार

मैनपाट को छत्तीसगढ़ का शिमला भी कहा जाता है. यहां के प्राकृतिक नजारे हर किसी का मन मोह लेते हैं.

कल मनाया जाएगा विश्व पर्यटन दिवस
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Published : Sep 26, 2019, 8:41 AM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST

सरगुजा : किसी ने कहा है कि यदि धरती पर कहीं स्वर्ग है तो वो यहीं है... यहीं है... यहीं है... जी हां हम बात कर रहे है छत्तीसगढ़ के उस पर्यटन स्थल की जहां जरा सी बारिश में धुंध छा जाती है, ऐसा लगता है जैसे मानो बादल शरीर को सहलाकर निकल गए हो. झरनों में अचानक पानी का तेजी से बहना, छत्तीसगढ़ की शोभा को खूब बढ़ाता है. इसी पल को ETV भारत ने अपने कैमरे में कैद किया है.

मैनपाट को छत्तीसगढ़ का शिमला कहा जाता है

छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में विंध्य पर्वतमाला पर समुद्रतल से तकरीबन साढ़े तीन हजार फीट की ऊंचाई पर बसे मैनपाट को छत्तीसगढ़ का शिमला कहा जाता है, यहां का प्राकृतिक सौंदर्य, समुद्र तल से ऊंचाई, रमणीय स्थल और ठंड के दिनों में बर्फबारी शिमला में होने का एहसास कराती है. मैनपाट की खूबसूरती अगर देखनी हो तो ठंड और बारिश के दिनों में यहां आएं. इन दिनों यहां का सौंदर्य अपने चरम पर होता है. गर्मी के दिनों में यहां का तापमान काफी ठंडा रहता है. इसलिए हर मौसम में सैलानी यहां खींचे चले आते हैं.

कल-कल करते नीचे गिरता झरने का पानी
कल-कल करते नीचे गिरता झरने का पानी

नदियां व झरने लोगों को खूब आकर्षित करते हैं

यहां ऊंची-ऊंची पहाड़ियों और वनमंडलीय 13 किलोमीटर के इस इलाके में नदियां और झरने लोगों को खूब आकर्षित करते हैं. यहां चारों ओर मौजूद हरी घास दिल को सुकून देती है. ठंडी के दिनों में सुबह-सुबह बर्फ की सफेद चादर पूरी धरती को ढंक लेती है, जबकि बारिश में चारों ओर हरियाली ही हरियाली बिखरी रहती है. इस दौरान यहां के झरने पूरे शबाब में होते हैं. झरनों का कल-कल कर गिरना यह लोगों को अपनी ओर खींच लेता है.

मैनपाट की खूबसूरती
मैनपाट की खूबसूरती

नवानगर की तराई से मैनपाट तक बनाई गई है सड़कें

जिला मुख्यालय अंबिकापुर से मैनपाट तक पहुंचने के दो रास्ते हैं. दरिमा हवाई पट्टी से मैनपाट का सफर 50 किलोमीटर का है, जबकि रायगढ़-काराबेल के रास्ते जाने पर 83 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. दोनों ही रास्तों पर मनोरम नजारे देखने को मिलते हैं, लेकिन असली रोमांच दरिमा हवाई पट्टी से मैनपाट जाने में आता है. नवानगर की तराई से मैनपाट तक अच्छी सड़क बनाई गई है. इस सड़क पर मैनपाट पहाड़ी का सफर बेहद रोमांचक है. पहाड़ के सीने को चिरते हुए टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता ऊंचाई की ओर ले जाता है. अलग-अलग ऊंचाई से नीचे वादियों का दृश्य देखने लायक होता है. वैसे तो यहां अनेक झरने, नदियां व मनोरम स्थल है, लेकिन यहां पहुंचने पर टाइगर प्वाइंट, फिश प्वाइंट व मेहता प्वाइंट का नजारा नहीं देखा तो समझो कुछ भी नहीं देखा.

प्राकृतिक सौंदर्य
प्राकृतिक सौंदर्य

छोटा तिब्बत के नाम से जाना जाता है मैनपाट

मैनपाट की एक यह भी है कि 1962 में यहां तिब्बतियों को शरणार्थी के रूप में बसाया गया था. इसलिए यह छोटा तिब्बत के नाम से भी जाना जाता है. यहां तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा दो बार आ चुके हैं. यहां तिब्बती कैंप व बौद्ध मंदिर पहुंचकर मन को शांति मिलती है.

पहाड़ के बीचोंबीच बना रास्ता
पहाड़ के बीचोंबीच बना रास्ता

खाने-पीने व ठहरने की नहीं है उत्तम व्यवस्था

इतनी खूबसूरती के बावजूद मैनपाट में सैलानियों की जितनी भीड़ होनी चाहिए, उतनी दिखती नहीं है, कारण है सरकार की उपेक्षा. सरकार ने यहां मोटल बनवाये, लेकिन वह महंगा होने के साथ एकलौता और नाकाफी है. इसके अलावा जितने प्वॉइंट यहां मशहूर हैं उन जगहों पर ना तो सुरक्षा के इंतजाम हैं और ना ही खाने-पीने और ठहरने की उत्तम व्यवस्था है, लिहाजा सुविधाओं का टोटा सैलानियों को सताता है.

पहाड़ के बीच से निकलता पानी
पहाड़ के बीच से निकलता पानी

मैनपाट कार्निवाल का रंग पड़ा फीका

यहां से 50 किलोमीटर दूर अम्बिकापुर ही एक ऐसी जगह है जहां सब कुछ उपलब्ध है. प्रशासन ने यहां मैनपाट कार्निवाल शुरू किया जो फरवरी के महीने में मैनपाट में आयोजित किया जाता है. शुरुआत में इस कार्निवाल में आयोजनों का स्तर ऊंचा था. कार्निवाल के दौरान बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती थी, लेकिन धीरे-धीरे महोत्सव का रंग भी फीका पड़ने लगा.

सरगुजा : किसी ने कहा है कि यदि धरती पर कहीं स्वर्ग है तो वो यहीं है... यहीं है... यहीं है... जी हां हम बात कर रहे है छत्तीसगढ़ के उस पर्यटन स्थल की जहां जरा सी बारिश में धुंध छा जाती है, ऐसा लगता है जैसे मानो बादल शरीर को सहलाकर निकल गए हो. झरनों में अचानक पानी का तेजी से बहना, छत्तीसगढ़ की शोभा को खूब बढ़ाता है. इसी पल को ETV भारत ने अपने कैमरे में कैद किया है.

मैनपाट को छत्तीसगढ़ का शिमला कहा जाता है

छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में विंध्य पर्वतमाला पर समुद्रतल से तकरीबन साढ़े तीन हजार फीट की ऊंचाई पर बसे मैनपाट को छत्तीसगढ़ का शिमला कहा जाता है, यहां का प्राकृतिक सौंदर्य, समुद्र तल से ऊंचाई, रमणीय स्थल और ठंड के दिनों में बर्फबारी शिमला में होने का एहसास कराती है. मैनपाट की खूबसूरती अगर देखनी हो तो ठंड और बारिश के दिनों में यहां आएं. इन दिनों यहां का सौंदर्य अपने चरम पर होता है. गर्मी के दिनों में यहां का तापमान काफी ठंडा रहता है. इसलिए हर मौसम में सैलानी यहां खींचे चले आते हैं.

कल-कल करते नीचे गिरता झरने का पानी
कल-कल करते नीचे गिरता झरने का पानी

नदियां व झरने लोगों को खूब आकर्षित करते हैं

यहां ऊंची-ऊंची पहाड़ियों और वनमंडलीय 13 किलोमीटर के इस इलाके में नदियां और झरने लोगों को खूब आकर्षित करते हैं. यहां चारों ओर मौजूद हरी घास दिल को सुकून देती है. ठंडी के दिनों में सुबह-सुबह बर्फ की सफेद चादर पूरी धरती को ढंक लेती है, जबकि बारिश में चारों ओर हरियाली ही हरियाली बिखरी रहती है. इस दौरान यहां के झरने पूरे शबाब में होते हैं. झरनों का कल-कल कर गिरना यह लोगों को अपनी ओर खींच लेता है.

मैनपाट की खूबसूरती
मैनपाट की खूबसूरती

नवानगर की तराई से मैनपाट तक बनाई गई है सड़कें

जिला मुख्यालय अंबिकापुर से मैनपाट तक पहुंचने के दो रास्ते हैं. दरिमा हवाई पट्टी से मैनपाट का सफर 50 किलोमीटर का है, जबकि रायगढ़-काराबेल के रास्ते जाने पर 83 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. दोनों ही रास्तों पर मनोरम नजारे देखने को मिलते हैं, लेकिन असली रोमांच दरिमा हवाई पट्टी से मैनपाट जाने में आता है. नवानगर की तराई से मैनपाट तक अच्छी सड़क बनाई गई है. इस सड़क पर मैनपाट पहाड़ी का सफर बेहद रोमांचक है. पहाड़ के सीने को चिरते हुए टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता ऊंचाई की ओर ले जाता है. अलग-अलग ऊंचाई से नीचे वादियों का दृश्य देखने लायक होता है. वैसे तो यहां अनेक झरने, नदियां व मनोरम स्थल है, लेकिन यहां पहुंचने पर टाइगर प्वाइंट, फिश प्वाइंट व मेहता प्वाइंट का नजारा नहीं देखा तो समझो कुछ भी नहीं देखा.

प्राकृतिक सौंदर्य
प्राकृतिक सौंदर्य

छोटा तिब्बत के नाम से जाना जाता है मैनपाट

मैनपाट की एक यह भी है कि 1962 में यहां तिब्बतियों को शरणार्थी के रूप में बसाया गया था. इसलिए यह छोटा तिब्बत के नाम से भी जाना जाता है. यहां तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा दो बार आ चुके हैं. यहां तिब्बती कैंप व बौद्ध मंदिर पहुंचकर मन को शांति मिलती है.

पहाड़ के बीचोंबीच बना रास्ता
पहाड़ के बीचोंबीच बना रास्ता

खाने-पीने व ठहरने की नहीं है उत्तम व्यवस्था

इतनी खूबसूरती के बावजूद मैनपाट में सैलानियों की जितनी भीड़ होनी चाहिए, उतनी दिखती नहीं है, कारण है सरकार की उपेक्षा. सरकार ने यहां मोटल बनवाये, लेकिन वह महंगा होने के साथ एकलौता और नाकाफी है. इसके अलावा जितने प्वॉइंट यहां मशहूर हैं उन जगहों पर ना तो सुरक्षा के इंतजाम हैं और ना ही खाने-पीने और ठहरने की उत्तम व्यवस्था है, लिहाजा सुविधाओं का टोटा सैलानियों को सताता है.

पहाड़ के बीच से निकलता पानी
पहाड़ के बीच से निकलता पानी

मैनपाट कार्निवाल का रंग पड़ा फीका

यहां से 50 किलोमीटर दूर अम्बिकापुर ही एक ऐसी जगह है जहां सब कुछ उपलब्ध है. प्रशासन ने यहां मैनपाट कार्निवाल शुरू किया जो फरवरी के महीने में मैनपाट में आयोजित किया जाता है. शुरुआत में इस कार्निवाल में आयोजनों का स्तर ऊंचा था. कार्निवाल के दौरान बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती थी, लेकिन धीरे-धीरे महोत्सव का रंग भी फीका पड़ने लगा.

Intro:सरगुजा : किसी ने सच ही कहा है की "ऐसी फ़िज़ा मिलेगी ना सारे जहान में, जन्नत अगर कहीं है तो हिन्दोस्तान में" वाकई में पृथ्वी के जिस टुकड़े को हिन्दोस्तान कहा गया है वो भारत देश है और देश के इस छोटे से पहाड़ की छटा निराली है.. यहां आने के बाद जो नज़ारे दिखते हैं वो ऐसी कल्पना कराते हैं की जन्नत अगर होगी तो ऐसी ही होगी, जरा सी बारिश में छाया धुंध, बादलों का शरीर को सहलाकर निकल जाना, झरनों में अचानक पानी का वेग विहंगम रूप ले लेना ये विरले ही देखने को मिलता है। पर्यटन दिवस पर छत्तीसगढ़ के सबसे महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल पर पहुंचा ईटीवी भारत और कैमरे में रिकार्ड किये ऐसे क्षण जो आपको यहां आने पर मजबूर कर देंगे। क्योंकी इसे छत्तीसगढ़ का शिमला कहा जाता है।



दरअसल छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में विंध्य पर्वतमाला पर समुद्रतल से तकरीबन साढ़े तीन हजार फीट की ऊंचाई पर बसे मैनपाट को छत्तीसगढ़ का शिमला कहा जाता है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य, समुद्र तल से ऊंचाई, रमणीय स्थल व ठंड के दिनों में बर्फबारी शिमला में होने का अहसास कराती है। मैनपाट की खूबसूरती देखनी हो तो फिर ठंड और बारिश के दिनों में यहां आएं। इन दिनों यहां का सौंदर्य अपने चरम पर होता है। गर्मी के दिनों में भी यहां का तापमान काफी ठंडा रहता है। इसलिए हर मौसम में सैलानी यहां खींचे चले आते हैं।


ऊंची-ऊंची पहाडियों व वनों से आच्छादित करीब 13 किलोमीटर के इस इलाके में नदियां व झरने लोगों को आकर्षित करते हैं। यहां चारों ओर पसरी हरी घास दिल को सुकून देती है। ठंड के दिनों में सुबह-सुबह बर्फ की सफेद चादर पूरी धरती को ढंक लेती है, जबकि बारिश में चारों तरफ हरियाली ही हरियाली बिखरी रहती है। इस दौरान यहां के झरने पूरे शबाब पर होते हैं। झरनों का कल-कल नाद लोगों को अपनी ओर खींच लेता है।


Body:जिला मुख्यालय अंबिकापुर से मैनपाट तक पहुंचने के दो रास्ते हैं। दरिमा हवाई पट्टी से मैनपाट का सफर 50 किमी का है, जबकि रायगढ़-काराबेल के रास्ते जाने पर 83 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। दोनों ही रास्ते पर मनोरम नजारे देखने को मिलते हैं लेकिन असली रोमांच दरिमा हवाई पट्टी से मैनपाट जाने में आता है। नवानगर की तराई से मैनपाट पहुंचने चकाचक सड़क बनाई गई है। इस सड़क पर मैनपाट पहाड़ी का सफर बेहद रोमांचक है। पहाड़ के सीने को चिरते हुए टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता ऊंचाई की ओर ले जाता है। अलग-अलग ऊंचाई से नीचे वादियों का दृश्य देखने लायक होता है।


वैसे तो यहां अनेक झरने, नदियां व मनोरम स्थल है लेकिन यहां पहुंचने पर टाइगर प्वाइंट, फिश प्वाइंट व मेहता प्वाइंट का नजारा नहीं देखा तो समझो कुछ भी नहीं देखा।


मैनपाट की एक खूबी और है कि 1962 में यहां तिब्बतियों को शरणार्थी के रूप में बसाया गया था इसलिए इसे छोटा तिब्बत के नाम से भी जाना जाता है। यहां तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा दो बार आ चुके हैं। यहां तिब्बती कैंप व बौद्ध मंदिर पहुंचकर मन को शांति मिलती है।

इतनी खूबसूरती के बावजूद मैनपाट में सैलानियों की जितनी भीड़ होनी चाहिये उतनी दिखती नही है, कारण है सरकार की उपेक्षा सरकार ने यहां मोट्ल बनवाये लेकिन वह महंगा होने के साथ एकलौता और नाकाफी है। इसके अलावा जितने प्वॉइंट यहां मशहूर हैं उन जगहों पर ना तो सुरक्षा के इंतजाम हैं और ना ही खाने पीने व ठहरने की उत्तम व्यवस्था है, लिहाजा सुविधाओ का टोटा सैलानियों को सताता है। हर सुविधाजनक चीज के लिये यहाँ से 50 किलोमीटर दूर अम्बिकापुर ही एक ऐसी जगह है जहां सब कुछ उपलब्ध है। प्रशासन ने यहाँ मैनपाट कार्निवाल शुरू किया जो फरवरी के महीने में मैनपाट में आयोजित किया जाता है शुरुआत में इस कार्निवाल में आयोजनों स्तर ऊंचा था कार्निवाल के दौरान बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती थी लेकिन धीरे धीरे महोत्सव का रंग भी फीका पड़ने लगा।

हालाकी 15 वर्ष तक भाजपा की सरकार थी और इस क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक अमरजीत भगत विधायक रहे हैं, और तब मैनपाट पर विशेष ध्यान नही दिया गया, लेकिन अब इसी क्षेत्र से विधायक अमरजीत भगत संस्कृति मंत्री बन चुके हैं, लिहाजा संस्कृति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अब वो अपने क्षेत्र को कितना आगे बढ़ा पाते हैं ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। फिलहाल मैनपाट का मिजाज पूरे सतरंगी शबाब पर है आप आइये और प्राक्रतिक छटा का लुत्फ उठाइये।

बाईट01_राजेश श्रीवास्तव (सैलानी)

बाईट02_मनोज देवांगन (सैलानी)

बाईट03_गुरप्रीत सिंह (सैलानी)

पीटीसी01_देश दीपक सरगुजा

पीटीसी02_देश दीपक सरगुजा

Conclusion:नोट- एक पीटीसी और एक बाईट सुबह जाएगी तेज बारिश ना रुकने की वजह से पेंडिंग रह गई है।

इस खबर में 2 छोटे पैकेज निम्न लिखित इंजेस्ट हो चुके हैं-
cg_srg_mainpat_jaljali_spl_7206271
cg,_srg_mainpat_ultapani_spl_7206271

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST
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