सरगुजा : आम तौर पर महिलाओं का नाम सुनते जहन में चूल्हे पर खाना बनाती. पनघट से पानी भरती और सहमी महिलाओं की तस्वीर सामने आती है. लेकिन अब ऐसा नहीं है. पहनावा भले ही सरगुजा की ग्रामीण महिलाओं का साधारण है, लेकिन इनके कारनामे साधारण नही हैं. यहां गांव की महिलाएं डिजिटल पेमेंट कर रही हैं. घर-घर जाकर लोगों को बैंक की सुविधाएं प्रदान करा रही हैं. अपने लिए इंसेंटिव कमाने के साथ ही वृद्ध लोगों तक घर बैठे पेंशन ये महिलाएं पहुंचा रही हैं. आलम यह है कि सरगुजा में बैंक सखी योजना से जुड़ी 106 महिलाएं लैपटॉप, इंटरनेट व फिंगरप्रिंट डिवाइस अपने बैग में लेकर चलती हैं. कहीं भी ऑनलाइन बैंकिंग सहित अन्य ऑनलाइन सुविधाओं की जरूरत पर ये तत्काल यह सेवा उपलब्ध कराती हैं. बीते 4 वर्ष में इन महिलाओं ने करीब 96 करोड़ रुपये का लेन-देन किया है.
पढ़े-लिखे लोगों को भी नहीं है ऑनलाइन ट्रांजैक्शन की सही जानकारी...
शहर में भी बहुत से लोग ऐसे हैं, जो पढ़े-लिखे हैं. उनमें कइयों को ऑनलाइन ट्रांजेक्शन की सही जानकारी नहीं होती. लेकिन सरगुजा के ग्रामीण इलाके की महिलाओं ने मिसाल पेश की है. बीते 4 वर्षों में जिले में बैंक सखी (Surguja women working as bank sakhi) के माध्यम से 96 करोड़ रुपये का ट्रांजेक्शन किया गया है. इसमें से 27 करोड़ का ट्रांजेक्शन सिर्फ लॉकडाउन अवधि का है. मतलब जब लोग लॉकडाउन से परेशान थे. बैंक आम लोगों के लिए बंद थे, तब भी इन महिलाओं ने लोगों के खाते के पैसे उन्हें निकालकर दिए हैं. जिले में 106 बैंक सखी 439 ग्राम पंचायतों को कवर करती हैं. 21 मई 2020 से मनरेगा मजदूरी का भुगतान भी मजदूरी स्थल पर शुरू किया गया. यह मजदूरी भुगतान भी बैंक सखी ही करती हैं. अब तक साढ़े 4 करोड़ रुपये मनरेगा की मजदूरी भुगतान बैंक सखी के माध्यम से हुआ है.
सरगुजा में हैं 106 बैंक सखी...
इस काम में लगी 106 बैंक सखियों में से 40 का काम ऐसा है कि वो हर महीने 6 हजार से अधिक आमदनी कमा रही हैं. जबकि 60 बैंक सखी ऐसी हैं, जो 3 से 6 हजार के बीच का इंसेंटिव कमा रही हैं. बड़ी बात यह है कि इन 106 बैंक सखियों में से 93 बैंक सखी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकिंग फाइनेंस की परीक्षा पास कर चुकी हैं. मतलब अब इन्हें अकुशल भी नहीं कहा जा सकता. कम शिक्षित होने बावजूद बैंक सखी लैपटॉप चलाती हैं. ऑनलाइन ट्रांजैक्शन करती हैं. अब बैंकिंग परीक्षा पास कर इन्होंने यह भी साबित किया है कि वो अपने कार्य में कुशल हैं. बैंक की तमाम सुविधाओं के साथ बैंक सखी अब आयुष्मान कार्ड और ई-श्रम कार्ड भी बना रही हैं. इतना ही नहीं 30 करोड़ रुपये पेंशन की राशि बैंक सखी लोगों तक पहुंचा चुकी हैं. मतलब अब वृद्ध जनों को बैंक की लंबी लाइन से मुक्ति मिली है और उन्हें घर बैठे पेंशन पहुंच रही है.
लैपटॉप चला बैंकिंग के सारे काम कर रहीं कम पढ़ी-लिखी गांव की महिलाएं,
जितने काम बैंक या करते हैं ई-सेवा केंद्र, 10वीं पास सुधा भी कर लेती हैं...
जब हमने बैंक सखियों और महिलाओं से बातचीत की तो वो काफी उत्साहित दिखीं. वो इस काम से बेहद खुश हैं. हमने बैंक सखी सुधा देवी से बात की. सुधा सिर्फ 10वीं तक पढ़ी हैं. वह बताती हैं कि वो लैपटॉप चलाती हैं. लोगों का खाता खोलती हैं. पेंशन सहित अन्य भुगतान करती हैं. आधार भी लिंक करती हैं. ऐसे तमाम काम सुधा करती हैं, जो बैंक या ई-सेवा केंद्र करते हैं. बैंक में इसी काम को करने के लिए बेहद एक्सपर्ट और कठिन परीक्षा पास किये कर्मचारी होते हैं. लेकिन 10वीं पास सुधा अपने गांव के लिए हर वो सुविधा दे रही हैं, जिनकी वजह से महिलाओं को बैंक जाना पड़ता था.
पहले पेंशन के लिए बैंक में लाइन लगना पड़ता था...
सुधा के पास बैंकिंग के काम से आई महिलाओं से भी हमने बात की. वो इस योजना से बेहद खुश हैं. एक ने बताया कि पेंशन के लिए पहले बैंक जाना पड़ता था. अब घर में ही पेंशन पहुंच जाती है. इससे वृद्ध लोगों को या जो चल-फिर नहीं पाते उनको बड़ी राहत मिली है. एक अन्य महिला ने बताया कि महिलाओं को घर के बहुत से काम होते हैं. पहले अगर वो बैंक चली जाती थी तो घंटो इंतजार करना पड़ता था. उनका काम प्रभावित होता था. लेकिन बैंक सखी के आने से उनके जीवन में बदलाव हुआ है.
ग्रामीण महिलाओं की बचत बैंक सखी की देन : सुनीता
वहीं एक अन्य महिला ने बताया कि दुर्घटना में घायल लोगों को भी बैंक सखी से बड़ी राहत मिली है. दुर्घटना जैसी विपत्ति में वो बैंक तक नहीं जा सकते और उन्हें पैसों की जरूरत होती है. ऐसे में बैंक सखी घर आकर पैसा निकाल देती हैं. गांव की ही सुनीता बघेल ने बड़ी अच्छी बात बताई. सुनीता ने बताया कि बैंक सखी के आने से ग्रामीण महिलाएं भी अब बचत कर पा रही हैं. क्योंकि उनको आसानी से पता चलता है कि उनके खाते में कितना पैसा है. बैंक सखी उन्हें डिपॉजिट करने के लिए जागरूक करती हैं, जिससे महिलाओं के पास भी अब बचत के पैसे होते हैं.