सरगुजा : हसदेव अरण्य बचाओ आंदोलन कर रहे ग्रामीण किसी भी सूरत में पीछे हटने को तैयार नही हैं. उन्होंने भाजपा कांग्रेस सभी को हसदेव के मामले में सियासी खेल करने वाला बताया है. प्रदर्शन में शामिल लोगों की शिकायत है कि पार्टियों के नेता यहां आते हैं फोटो खिचाते हैं और चले जाते हैं. सियासी पार्टियों के लगातार आंदोलन में पहुंचने से उनको कोई मदद नहीं मिल पा रही है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सियासी पार्टियों के आने से उनका आंदोलन कमजोर पड़ सकता है.
"टी एस सिंहदेव भी राजनीतिक बातें करते हैं. वर्तमान विधायक राजेश अग्रवाल से तो मुलाकात तक नहीं हुई है. लेकिन हम सब ग्रामीण एक जुट हैं. अडानी कुछ 12-13 लोगों को अपना एजेंट बनाकर ये दिखाना चाहता है कि ग्रामीण खदान के पक्ष में है - आंदोलनकारी
पार्टी के लोग कर रहे सियासत: जब आंदोलनकारियों से ईटीवी भारत ने पूछा कि पूर्व डिप्टी सीएम ने ग्राम सभा के कानून पर एक होने की सलाह दी थी. तो उन्होने कहा था कि अगर आप एकजुट रहेंगे तो सफलता मिलेगी. इस सवाल पर आन्दोलनकारियों ने कहा कि सब सियासी खेल कर रहे हैं. अब तक एक भी नेता यहां झांकने तक नहीं आए. महज सियासत हो रही है. हालांकि हम जंगल कटने नहीं देंगे."
"किसी भी ग्राम सभा के प्रस्ताव पर हमने हस्ताक्षर नहीं किए हैं. प्रशासन और अडानी के एजेंट मिलकर ग्राम सभा का फर्जी प्रस्ताव बनाये थे. अब हमारे आंदोलन को देश भर में संगठनों का साथ मिल रहा है. आगे आंदोलन का और विस्तार होगा. आज आंदोलन को समर्थन करने छत्तीसगढ़ के बालोद जिले से 11 महिला समाजसेवियों की टीम हरिहरपुर पहुंची थी. जंगल से ऑक्सीजन सभी वर्ग को मिलता है. इसे बचाने की जिम्मेदारी भी सभी की है. सिर्फ आदिवासी वर्ग ही क्यों लड़ाई लड़ रहे हैं." - आंदोलनकारी
दिसंबर में पेंड्रा मार की पूरे जंगल की हुई थी कटाई: दरअसल, 21 दिसंबर को छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य का वो हिस्सा जो कोरबा जिले की सीमा पर सरगुजा जिले के उदयपुर तहसील में स्थित है. यहां के गांव घाट बर्रा के पेंड्रा मार जंगल को पूरी तरह काट दिया गया. जंगल बचाने वाले ग्रामीणों को या तो हिरासत में ले लिया गया या उनके घर में ही पुलिस ने उन्हें नजर बंद कर दिया.दिन में प्रशासन ने यहां प्रस्तावित कोल परियोजना परसा ईस्ट केते बासेन के लिए सारे पेड़ काट दिए. इससे पहले सितम्बर 2022 में यहां पेड़ काटे गए थे 43 हेक्टेयर के 8000 पेड़ काटे गए थे.
साल 2010 में खादान खोलने पर हुई थी चर्चा: हसदेव क्षेत्र में खदान खोलने का सिलसिला वर्ष 2010 में शरू हुआ. केंद्र की कांग्रेस सरकार ने इसकी स्वीकृति दी और सूबे में बैठी भाजपा ने इसका प्रस्ताव भेजा था. 2010 में स्वयं केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन को प्रतिबंधित रखते हुए नो गो एरिया घोषित किया था. फिर इसी मंत्रालय के वन सलाहकार समिति FAC ने खनन की अनुमति नहीं देने के निर्णय से विपरीत जाकर परसा ईस्ट और केते बासन कोयला खनन परियोजना को वन स्वीकृति दी थी, जिसे वर्ष 2014 में माननीय ग्रीन ट्रिब्यूनल NGT ने निरस्त भी कर दिया था.
इस क्षेत्र में प्रस्तावित कोल परियोजनाओं को शुरू कराने शासन और प्रशासन पूरी जद्दोजहद कर रहा है. प्रशासन जंगल काटने में सफल भी हो गया, लेकिन इन ग्रामीणों के हौसले बुलंद हैं.ये किसी भी सूरत पर पीछे नही हटने वाले हैं. अब देखना यह होगा की जंगल बचाने और उजाड़ने की इस जंग में जीत किसकी होती है.