सरगुजा: 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान लागू किया गया था. इस संविधान को बनाने में संविधान निर्माता समिति के अध्यक्ष बाबा साहब भीमराव अंबेडकर सहित कई महान विभूतियों ने अपना योगदान दिया. छत्तीसगढ़ से भी कुछ ऐसी शख्सियत रही हैं, जिनके हस्ताक्षर भारतीय संविधान की मूल प्रतियों में मिलते हैं. उनमें से एक हैं सरगुजा रियासत के दीवान रारुताब रघुराज सिंह.
रघुराज सिंह सरगुजा रियासत के अंतिम दीवान थे, जिन्हें स्टेट मर्जर के बाद शासकीय सेवा में जाना पड़ा था. 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ और फिर शुरू हुई संविधान बनाने की कवायद. इस कवायद में ही भारत में स्थापित राजाओं के अलग-अलग साम्राज्य को भारतीय गणतंत्र में शामिल किया गया. प्रीवी पर्सेस की सुविधा के साथ रियासतों को भारतीय गणतंत्र में शामिल किया गया, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने यह जिम्मेदारी सरदार बल्लभ भाई पटेल को सौंपी. सरदार पटेल ने देश की अलग-अलग रियासतों के साथ बातचीत कर उन्हें भारतीय गणतंत्र में शामिल किया. तब दीवान ही रियासतों का शासकीय कार्य देखते थे, प्रीवी पर्सेस के तहत ही बहुत से शासकीय सेवक रियासतों से शासकीय सेवा में आये.
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सरगुजा के आधुनिक विकास में बड़ा योगदान
सरगुजा के दीवान रघुराज सिंह के विषय में सरगुजा रियासत के ऑडिटर रहे स्व. राजेन्द्र प्रसाद श्रीवास्तव के बेटे डॉ. वीरेंद्र कुमार वर्मा बताते हैं की रघुराज सिंह सरगुजा रियासत के दीवान थे और स्टेट मर्जर के समय उन्हें नागपुर भेज दिया गया था. लेकिन सरगुजा के आधुनिक विकास में दीवान साहब का बड़ा योगदान था. वो बेहद जानकर थे और उनके अनुभव का लाभ सरगुजा के महाराज लेते थे. स्टेट मर्जर के समय उन्हें नागपुर भेजा गया और वहां से वो बिलासपुर कमिश्नर बनकर आये. वीरेंद्र वर्मा अपने पिता राजेन्द्र श्रीवास्तव से दीवान रघुराज सिंह के किस्से सुनते थे, जो उन्हें आज तक याद हैं. उन्होंने बताया कि बिलासपुर में रघुराज सिंह के नाम पर स्टेडियम बनाया गया है. जो उनकी हमेशा याद दिलाता रहता है.