सरगुजा: अम्बिकापुर इस नगर निगम में तबादले से लोग परेशान हैं. प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद से महज 3 वर्ष में ही 6 निगम आयुक्त बदले जा चुके (Commissioners transferred in Ambikapur Municipal Corporation) हैं. हालांकि विजय दयाराम के. बलरामपुर के कलेक्टर बनाये गये. विजय दयाराम के ट्रांसफर के बाद नई कमिश्नर आने वाली हैं. लोगों का आरोप है कि बार-बार ट्रांसफर से शहर का विकास प्रभावित हो रहा है. स्वच्छता के क्षेत्र में अम्बिकापुर देश का मॉडल शहर है. जल्दी-जल्दी अधिकारियों के तबादले से स्वच्छता सर्वेक्षण भी प्रभवित हो सकता है.
कब कौन रहा आयुक्त: जब प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ था, तब अम्बिकापुर नगर निगम में सूर्य किरण तिवारी आयुक्त थीं. जनवरी 2019 में इनका ट्रांसफर किया गया और मनोज सिंह आयुक्त बनाये गये. मनोज सिंह जनवरी 2019 से अगस्त 2019 तक ही आयुक्त रहे, अगस्त में मनोज सिंह को भी हटा दिया गया और हरेश मंडावी अम्बिकापुर नगर निगम के आयुक्त बनाये गये. कोरोना काल में ट्रांसफर नहीं किया गया. इसलिए हरेश मंडावी 1 साल 7 महीने यहां आयुक्त बने रहे. मार्च 2021 में हरेश मंडावी को बदलकर प्रभाकर पांडेय को अम्बिकापुर नगर निगम का आयुक्त बनाया गया. प्रभाकर पांडेय 9 महीने आयुक्त रहे और जनवरी 2022 में प्रभाकर पांडेय की जगह रमेश सिंह अम्बिकापुर नगर निगम आयुक्त बनाये गये, महज 9 दिन में इनका भी तबादला हो गया. जनवरी 2022 में आईएएस अधिकारी विजय दयाराम के. को अम्बिकापुर नगर निगम की कमान सौंपी गई. विजय दयाराम को 6 महीने ही हुये थे कि अम्बिकापुर नगर निगम की व्यवस्था को समझते ही उनको कलेक्टर बलरामपुर बना दिया गया और अब अम्बिकापुर नगर निगम की नई आयुक्त प्रतिष्ठा ममगाई होंगी.
पूर्व आयुक्त से खुश थे लोग: लगातार निगम आयुक्तों के ट्रांसफर से शहर का विकास प्रभावित हो रहा है. लोग आरोप लगा रहे हैं कि जब तक अधिकारी शहर व निगम के काम काजों को समझ पाता है तब तक उसका ट्रांसफर हो जाता है. नगर निगम में सीधे जनता के लिए काम होता है. इसलिए यहां अधिकारी का लंबे समय तक रहना जरूरी होता है. हालांकि आयुक्त रहे विजय दयाराम के. नगर निगम के क्रिया-कलापों को समझ कर बेहतर काम कर रहे थे. कई महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान उन्होंने खोज लिया था. अब विजय दयाराम के. कलेक्टर बन कर बलरामपुर जा चुके हैं. नई आयुक्त आयेंगी और वो अपने अनुसार काम करेंगी, लेकिन नगर निगम में यह प्रयोग अब भी रुकेगा या नहीं... इस पर संशय है.
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शहर के विकास की विरोधी सरकार: इस मामले में शहर वासियों को खासकर विपक्ष को आपत्ति है. मेयर भी मानते हैं कि जल्दी-जल्दी ट्रांसफर होने से काम काज प्रभावित होता है. इस विषय में वेदांत तिवारी कहते हैं, "अभी-अभी एक आईएएस अधिकारी निगर निगम के आयुक्त बनाये गये. उनको आये 4-5 महीने का ही समय हुआ था कि उनको बलरामपुर का कलेक्टर बना दिया गया. राज्य सरकार का ऐसा आदेश ये समझ में नही आता है कि वो शहर में विकास के विरोधी हैं या उस अधिकारी की कार्यप्रणाली से संतुष्ट नही हैं? आपने नगर निगम में फिर नया आयुक्त बिठा दिया, अब वो ज्वाइन करेंगी. 1 महीने तो उनको काम काज समझने में लग जाएगा. निगर निगम में भी आपकी ही सत्ता है. आयुक्त को अगर स्थायी रखेंगे तो वो अपना काम दिखा सकेंगे. इस पर राज्य सरकार को विचार करना चाहिये."
निगम बनी प्रयोगशाला: अम्बिकापुर के पूर्व मेयर और नेता प्रतिपक्ष प्रबोध मिंज कहते हैं कि "ये दुर्भाग्य है कि अम्बिकापुर का कि इनकी सरकार निगम में भी है और प्रदेश में भी है. 3 साल में 6 आयुक्त आये और गये. इसका मतलब ये की ये प्रयोगशाला हो गया है. किसी भी काम को करने के लिए काम को समझने के लिये 2-3 महीने 4 महीने लगते हैं, उसके बाद ही काम गति पकड़ता है. यहां तो हर 6 महीने में ट्रांसफर हो जा रहे हैं तो यहां का काम निश्चित रूप से प्रभावित है. मैं ये इसलिए कह रहा हूं कि अम्बिकापुर को एक प्रयोगशाला बना दिये हैं. विशेष रूप से जो ये नये आईएएस आ रहे हैं. ये सीखने आते हैं जिनको जनता के काम से मतलब नहीं होता. ये सीखने आते हैं और सीखकर चले जाते हैं."
मेयर का दुखदाई पहलू: विपक्ष ही नही खुद मेयर भी मानते हैं कि जल्दी-जल्दी आयुक्त बदलने से काम प्रभावित होता है. मेयर अजय तिर्की कहते हैं कि "नुकसान का क्या कहें, क्योंकि एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस वाले आयुक्त बनकर आ रहे हैं. जब तक वो समझ पाते हैं निगम के सिस्टम को तब तक उनका तबादला हो जाता है. एडमिनिस्ट्रेटिव साइड नियम से चलता है. सबसे दुखदाई पहलू ये होता है कि नये कमिश्नर जब भी आते हैं तो पुराने काम को लेकर कहा जाता है कि पुराना वाला पुराना जाने... हम क्या जानें. लेकिन ये राज्य शासन से किया जाता है, तो हम लोगों का इसमें कोई वश भी नहीं है. शासन के नियम कायदों से चीजें होती हैं. उम्मीद करते हैं कि आने वाले कमिश्नर भी अच्छे हों."