सरगुजा : 11 अप्रैल को कस्तूरबा गांधी के जन्म दिवस के दिन को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के रूप में घोषित किया गया है. इस दिवस को विशेष बनाने के पीछे संस्था गत प्रसव को बढ़ावा देते हुए प्रसव के दौरान माताओं की सुरक्षा का लक्ष्य रखा गया. तब से हर साल स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोग इस दिन को सुरक्षित मातृत्व दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं. ETV भारत ने ऐसी महिला से बातचीत की जिसने इस दर्द को महसूस किया है.
3 महीने बंद नहीं हुआ रक्त स्त्राव
जिले के देव टिकरा गांव की रहने वाली रोशनी ने सुरक्षित प्रसव नहीं होने से ना सिर्फ अपना बच्चा खोया बल्कि खुद भी शारीरिक रूप से काफी दिनों तक परेशान होती रहीं. रोशनी ने बताया कि 2 साल पहले उसने एक बच्चे को जन्म दिया था. जन्म से ही बच्चा कमजोर था. चार दिन बाद ही बच्चे की मौत हो गई. इसके कुछ दिन बाद जब रोशनी को माहवारी का समय आया. तो रक्त का स्त्राव 3 महीने तक नहीं रुका. पहले से अपने नवजात बच्चे की मौत के गम में दखी रोशनी के जीवन में एक और मुसीबत सामने आ गई. हालत बिगड़ने पर रोशनी अस्पताल पहुंची, जहां डॉक्टरों ने उसका चेकअप किया तो कैंसर की बीमारी निकली. जिसका इलाज अभी फिलहाल चल रहा है.
दोबारा हुईं गर्भवती
रोशनी के जीवन में आई इस भयंकर मुसीबत सुरक्षित और अस्पताल में प्रसव नहीं होने की वजह से हुई. गांव में रहने के कारण और जानकारी के अभाव में रोशनी का प्रसव घर में ही कराया गया. 9 महीने तक गर्भवती मां को पोषक आहार नहीं मिला. ना ही डॉक्टर की सलाह मिली. नतीजन बच्चा कमजोर पैदा हुआ और जन्म के चौथे दिन ही उसकी मौत हो गई. इसके बाद रोशनी भी प्रसव के दौरान हुई गलतियों से गंभीर बीमारी की चपेट में आ गईं. हालांकि अब रोशनी स्वस्थ हैं और दोबारा प्रेग्नेंट हैं. उम्मीद है कि इस बार वो एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देंगी.
आशा कार्यकर्ता बनी उम्मीद
रोशनी अपने पति के साथ अंबिकापुर में किराए के मकान में रहती हैं. यहां उनकी मुलाकात शहरी मितानिन (आशा कार्यकर्ता) शांति देवी से हुई. शांति देवी ने रोशनी को संस्थागत प्रसव की जानकारी दी. उन्हें जागरूक किया और अब जब रोशनी दोबारा से प्रेग्नेंट हैं, तो वो सावधान हैं. मितानिन नियमित जांच के लिये उन्हें अस्पताल लेकर जाती हैं. जहां डॉक्टर संवेदना सिंह उनकी जांच कर रही हैं. ETV भारत की टीम जब रोशनी से मिलने पहुंची तो वो गर्भाशय की जांच सोनोग्राफी कराने गई हुई थी. काफी देर इंतजार करने के बाद रोशनी से मुलाकात हुई. जिसके बाद रोशनी ने अपनी दस्तान बताई.
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एक बच्चा खोने के बाद हुई जागरूक
रोशनी और इनकी जैसी कई माताओं के साथ इस तरह की घटनाएं घट चुकी हैं. इसका कारण घर में प्रसव कराने की कोशिश है. जबकि सरकार ने हर गांव में सुरक्षित प्रसव के लिए प्रसव केंद्र की व्यवस्था की है. पहले की घटना से टूट चुकी रोशनी भी अब समझ चुकी है कि स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ नहीं करना है. इसलिए रोशनी खुद ही कहती है कि प्रसव अस्पताल में ही कराना है.
सरगुजा के सरकारी अस्पतालों में प्रसव
सरगुजा जिले में 100 बेड के मातृ शिशु अस्पताल, 6 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 25 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 3 में से 2 शहरी स्वास्थ्य केंद्र व 197 सब हेल्थ सेंटर में प्रसव की व्यवस्था है.
रोशनी की कहानी है सबक
माताओं की सुरक्षा के लिये मनाए जाने वाले राष्ट्रीय मातृत्व दिवस पर रोशनी की कहानी उन सभी प्रसूताओं को सबक देती हैं, जो सुरक्षित प्रसव चाहती हैं. अपने घर-मोहल्ले में आने वाली मितानिन दीदी के जरिये 9 महीने तक नियमित दवाइयां, पोषक आहार और संस्था गत प्रसव के जरिये जच्चा और बच्चा दोनों को स्वस्थ और सुरक्षित रखा जा सकता है.