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इस 'सूर' के भजन सुन झूम उठते हैं लोग, बिना तालीम के ही अच्छे-अच्छों को कर सकते हैं फेल

निर्दिया बताते हैं कि उनके घर में बचपन से चूड़ी बेचने का काम होता था, लिहाजा वो भी बचपन से घूम-घूम कर चूड़ी बेचते थे. परिवार में गरीबी थी, जिस वजह से पढ़ नहीं पाये, लेकिन संगीत के प्रति उनकी लगन ने गरीबी को आड़े आने नहीं दिया. बिना किसी तालीम के ही निर्दिया गाना गाते हैं, मंदिरों के बाहर बैठकर माता के भजन करते हैं.

सरगुजा के झेराडीह में रहने वाले निर्दिया गिरी
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Published : Apr 8, 2019, 10:59 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST

सरगुजा: शेरावाली की भक्ति में मशगूल ये शख्स खास हैं, भजन गायक निर्दिया गिरी के भजन के बोल 'जागो-जागो शेरावाली..." लोगों को मंत्र मुग्ध कर देता है. इस भजन को सुनने वाला हर शख्स एक पल के लिए वहां रुक जाता है और वहीं खड़े होकर इनके भजन सुनता है.

वीडियो.


भजन सुनने वाले भी निर्दिया की मधुर आवाज, सधे हुए सुर-ताल की तारीफ करते थकते नहीं हैं. सुरों की इतनी अच्छी समझ होना, ताल भी खुद बजाना इतना आसान नहीं है, वो भी तब जब इसकी तालीम न ली गई हो.


लोग सूरदास कहकर बुलाते हैं
हम बात कर रहे हैं सरगुजा के झेराडीह में रहने वाले निर्दिया गिरी की, जिन्हें माता-पिता ने तो निर्दिया नाम दिया, लेकिन वो गायकी और अंधेपन की वजह से सूरदास के नाम से जाने जाते हैं.


निर्दिया बताते हैं कि उनके घर में बचपन से चूड़ी बेचने का काम होता था, लिहाजा वो भी बचपन से घूम-घूम कर चूड़ी बेचते थे. परिवार में गरीबी थी, जिस वजह से पढ़ नहीं पाये, लेकिन संगीत के प्रति उनकी लगन ने गरीबी को आड़े आने नहीं दिया. बिना किसी तालीम के ही निर्दिया गाना गाते हैं, मंदिरों के बाहर बैठकर माता के भजन करते हैं.


आकाशवाणी अंबिकापुर को बताया अपना गुरु
निर्दिया अपना गुरु रेडियो और आकाशवाणी अंबिकापुर को मानते हैं, क्योंकि रेडियो में आकाशवाणी के गाने सुन-सुनकर ही उन्होंने भजन सीखा है. इनके गायन से प्रभावित होकर तत्कालीन कलेक्टर एसके राजू ने इन्हें रेडियो भेंट किया था और उसे ही सुनकर वो गीत सीखते चले गये.

सरगुजा: शेरावाली की भक्ति में मशगूल ये शख्स खास हैं, भजन गायक निर्दिया गिरी के भजन के बोल 'जागो-जागो शेरावाली..." लोगों को मंत्र मुग्ध कर देता है. इस भजन को सुनने वाला हर शख्स एक पल के लिए वहां रुक जाता है और वहीं खड़े होकर इनके भजन सुनता है.

वीडियो.


भजन सुनने वाले भी निर्दिया की मधुर आवाज, सधे हुए सुर-ताल की तारीफ करते थकते नहीं हैं. सुरों की इतनी अच्छी समझ होना, ताल भी खुद बजाना इतना आसान नहीं है, वो भी तब जब इसकी तालीम न ली गई हो.


लोग सूरदास कहकर बुलाते हैं
हम बात कर रहे हैं सरगुजा के झेराडीह में रहने वाले निर्दिया गिरी की, जिन्हें माता-पिता ने तो निर्दिया नाम दिया, लेकिन वो गायकी और अंधेपन की वजह से सूरदास के नाम से जाने जाते हैं.


निर्दिया बताते हैं कि उनके घर में बचपन से चूड़ी बेचने का काम होता था, लिहाजा वो भी बचपन से घूम-घूम कर चूड़ी बेचते थे. परिवार में गरीबी थी, जिस वजह से पढ़ नहीं पाये, लेकिन संगीत के प्रति उनकी लगन ने गरीबी को आड़े आने नहीं दिया. बिना किसी तालीम के ही निर्दिया गाना गाते हैं, मंदिरों के बाहर बैठकर माता के भजन करते हैं.


आकाशवाणी अंबिकापुर को बताया अपना गुरु
निर्दिया अपना गुरु रेडियो और आकाशवाणी अंबिकापुर को मानते हैं, क्योंकि रेडियो में आकाशवाणी के गाने सुन-सुनकर ही उन्होंने भजन सीखा है. इनके गायन से प्रभावित होकर तत्कालीन कलेक्टर एसके राजू ने इन्हें रेडियो भेंट किया था और उसे ही सुनकर वो गीत सीखते चले गये.

Intro:सरगुजा : शेरावाली की भक्ति में मशगूल यह सख्स खास है, भजन गयाक बलखबीर सिंह लख्खा का फेमश भजन "जागो जागो शेरोवाली जागो मेहरों वाली सबेरा हो गया है" भजन के बोल सुनने वालों को मंत्र मुग्ध करते हैं, इसे सुनने वाला हर शख्स आवाज सुनकर रुक जाता है, और कुछ देर खड़े होकर इनके भजन सुनता है, इतनी मधुर आवाज, सधा हुआ सुर, ताल में भी।अच्छी पकड़, ताल भी खुद बजाना यह इतना आसान नही, वो तब जब इसकी तालीम ना ली गई हो, संगीत की तालीम तो छोडिये इस सख्स ने गरीबी और आभाव में शिक्षा तक ग्रहण नही की है, और सबसे बड़ी बात जो इसे बहोत खास बनाती है वो यह है की यह दोनों आंखों से देख नही सकते। इतने आभाव और कमियों के बाद भी गले से निकलने वाले स्वर मधुर है, यह किसी चमत्कार जैसा लगता है। हम बात कर रहे हैं सरगुजा के झेरा डीह में रहने वाले निर्दिया गिरी की जिन्हें माँ बाप ने तो निर्दिया नाम दिया लेकिन वो गायकी और आंखों के अंधेपन की वजह से सूरदास के नाम से विख्यात हैं, लोग इन्हें सूरदास ही कहते हैं।


Body:निर्दिया बताते हैं की उनके घर मे बचपन से चूड़ी बेचने का काम होता था लिहाजा वो भी बचपन से घूम घूम कर चूड़ी बेचते थे, परिवार में गरीबी थी जिस वजह से पढ़ नही पाये, लेकिन संगीत ले प्रति उनकी लगन ने गरीबी को आड़े आने नही दिया, बिना किसी तालीम के ही निर्दिया गाना गाते हैं, मंदिरों के बाहर बैठ कर माता के भजन करते हैं, और लोग उनके भजन से प्रभावित होकर उन्हें पैसे देतें हैं, और इन्ही पैसों से इनका गुजारा चलता है। निर्दिया अपना गुरु रेडियो और आकाशवाणी अम्बिकापुर को मानते हैं क्योकी रेडियो में आकाशवाणी के गाने सुन सुन कर ही वो भजन गाना सीखे हैं, इनसे प्रभावित होकर तत्कालीन कलेक्टर डॉ एस के राजू ने इन्हें रेडियो भेंट किया था, और उसे ही सुनकर वो गीत सीखते चले गये।

निर्दिया के गीतों और गाने के तरीके के लिये हमने एक ऐसे सख्स से जानकारी ली जो संगीत की तालीम ले चुके हैं और खुद गायकी की समझ रखते हैं, वो भी निर्दिया की गायकी के कायल हैं उनके सुर और ताल की पकड़ की तारीफ करते हैं।


Conclusion:बहरहाल निर्दिया की गायकी सड़क किनारे गाने के लायक नही है, लेकिन अवसर की कमी और उपेक्षा की वजह से वह दर दर भटक कर गीत गाता है, अगर कोई प्रशिक्षण मिलता और कोई मंच मिलता तो निश्चित ही निर्दिया भी सरगुजा का नाम रोशन करने में कसर नही छोड़ते।

बाइट01_तीरथ अगरिया ( गायक)

121-निर्दिया गिरी ( भजन गायक)

देश दीपक सरगुजा
Last Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST
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