सरगुजा: अंबिकापुर के एक युवा वैज्ञानिक ने देश भर में ना सिर्फ शहर बल्कि पूरे प्रदेश का नाम रोशन किया है. वैज्ञानिक को डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन) ने उनके शोध के लिए सम्मानित किया है.
दोस्ती के नाम कर दिया आवार्ड
योगेश प्रताप सिंह ने इस अवार्ड को अपने बचपन के दोस्त दिवंगत आसिफ अंसारी और उनकी मां सायरा बानो को समर्पित किया है. आसिफ और योगेश दोनों में गहरी दोस्ती थी. लेकिन युवा इंजीनियर आसिफ की मौत एक साल पहले एक कार एक्सीडेंट में हो गई थी. इस सम्मान को हासिल करने के साथ ही युवा शोधकर्ता ने दोस्ती और कौमी एकता की मिसाल पेश की है.
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महज 24 वर्ष की उम्र में योगेश ने इतनी बड़ी सफलता हासिल कर सरगुजा का नाम तो देश भर में रोशन किया ही है इसके साथ ही उसने दोस्ती के अटूट रिश्ते का भी मान बढ़ाया है. योगेश ने अपना यह पुरस्कार अपने दिवंगत दोस्त आसिफ अंसारी को समर्पित किया है. योगेश ने इसकी जानकारी अपने सोशल अकॉउंट के माध्यम से दी है जिसमें उनसे इस बात का जिक्र किया है कि इस अवार्ड को लेते समय उसके जेहन में सिर्फ अपने मित्र आसिफ का नाम आ रहा था.
पूर्व इसरो डायरेक्टर ने किया सम्मानित
योगेश प्रताप सिंह को बैंगलोर में आयोजित DRDO के अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में बेस्ट रिसर्च पेपर के लिए सम्मानित किया गया है. इस कॉन्फ्रेंस में देश भर के युवा वैज्ञानिक और शोधकर्ता शामिल हुए थे. योगेश को यह अवार्ड इसरो के पूर्व डायरेक्टर और पद्मश्री सम्मानित बीएन सुरेश ने प्रदान किया है.
क्यों मिला सम्मान
योगेश ने बताया कि 'बैंगलोर में रहकर उसने इसरो के साथ मिलकर भारतीय रॉकेट जीएसएलवी में 500 किलोग्राम का वजन कम करने का फार्मूला पेश किया था. जिसे इसरो और डीआरडीओ दोनों ने स्वीकार किया है. योगेश के इस शोध से JSLV रॉकेट के निर्माण की लागत में 38 करोड़ रुपए तक की कमी आएगी. जिससे देश पर पड़ने वालs आर्थिक भार में काफी राहत मिलेगी. इसके साथ ही वर्तमान में योगेश आईआईएससी बैंगलोर में रहकर स्पेस रोबोटिक्स पर शोध कर रहा है'.
होनहार रहा योगेश
अंबिकापुर के केदारपुर पानी टंकी के पास रहने वाले योगेश प्रताप सिंह के पिता सोमेंद्र प्रताप सिंह कन्या महाविद्यालय में लैब टेक्नीशियन के रूप में कार्यरत है. योगेश ने आसिफ अंसारी के साथ अपनी 12 वीं कक्षा तक की पढ़ाई होलीक्रॉस स्कूल से की थी और एनआईटी रायपुर से बीटेक की डिग्री लेने के बाद उसने वर्ष 2018 में ही प्रधानमंत्री रिसर्च फेलोशिप जीतकर आईआईएससी बैंगलोर में पीएचडी के लिए अपनी पढ़ाई शुरू की थी. उसके इस प्रोजेक्ट को डीआरडीओ ने पहली बार में चयनित कर लिया था.