सरगुजा : जितनी तेजी से मोबाइल का उपयोग बढ़ रहा है. उतनी ही तेजी से ईयरफोन का भी उपयोग बढ़ा है. लोग घंटों ईयरफोन कान में लगाकर गाने सुनते हैं .लेकिन क्या आपको पता है कि ईयरफोन के अधिक उपयोग से आप मुसीबत में पड़ सकते हैं. इस सम्बंध में हमने अम्बिकापुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल के ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर शैलेन्द्र गुप्ता से बात की.
कर्ण रोग के बढ़ रहे हैं मरीज : डॉक्टर शैलेंद्र गुप्ता कहते हैं " ईयरफोन अभी हाल के दिनों में और कोविड के समय में उपयोग बढ़ा है. इसके उपयोग के कारण जो दुष्प्रभाव हैं. जो पहले एक दो दिखते थे. अब हमारी ओपीडी में इन मरीजों संख्या बढ़ी है. जो श्रवण बाधा के रूप के आती है. लोग अनिद्रा के शिकार हो रहे हैं. बच्चों में चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है. इसका कहीं ना कहीं कारण ज्यादा देर तक हेड फोन का उपयोग करना हम लोग पाते हैं"
60 बाई 60 का है रूल : डॉ. गुप्ता बताते है "सामान्य रूप से देखा जाए तो अगर आपको कान को सुरक्षित रखना है और यदि हेड फोन के उपयोग आपको जरूरी है तो इसका रूल जो है 60 बाई 60 का रहता है. अर्थात उसका वेल्युम 60 डेसिबल का हम 60 मिनट तक उपयोग कर सकते हैं. ऐसे में कान आपके सुरक्षित रहते हैं. परंतु आप इससे कहीं ज्यादा लाउड साउंड में, जिसमें जो हमरे साउंड की जो मानक इकाई होती है डेसिबल से हम लोग साउंड को मापते हैं. यदि 85 डेसिबल से ज्यादा साउंड आप हेडफोन के मध्यम से कानों को देते हैं तो वैसी स्थिति में कानों को डेमेज हो सकता है. यदि समय पर ध्यान नहीं दिया गया तो स्थायी रूप से बधिरता भी हो सकती है"
ऑडियोमेट्री टेस्ट जरूरी : डॉ. शैलेन्द्र गुप्ता आगे बताते हैं "यदि किसी को ऐसा लग रहा है कि हेड फोन के उपयोग से कोई प्रभावित हो रहा है. उसके कानों में कोई शब्द समझ नहीं आ रहा है तो निश्चित रूप से उसे ऑडियोमेट्री टेस्ट करा लेना चाहिये. ये टेस्ट में किसी प्रकार का इंजेक्शन या सुई नही लगती है. इसमें अलग अलग प्रकार की ध्वनि आपके कान को दी जाती है. उसको पहचानने के लिए आपसे आग्रह किया जाता है. ये आधे घंटे का टेस्ट है. इससे यह पता चल जाता है कि आपने सुनने के क्षमता अभी कितनी है. वो नार्मल है या क्षमताओं में कुछ कमी आई है. सभी जिला चिकित्सालय में यह सुविधा निशुल्क रहती है"
ये भी पढ़ें- यदि आप भी अनिद्रा से हैं परेशान, तो जानिए उपाय
समय पर इलाज सम्भव : डॉक्टर शैलेन्द्र बताते है "अगर लगातार हेड फोन सुनने के कारण सुनाई देने की क्षमता में अगर कमी आई है और हमको ये पता चल जाए तो इसका आरंभिक चरण में इलाज संभव है. यदि हम 15 दिन या एक महीने के अंदर में ही पकड़ ले की नॉइस के कारण इंज्युरी है तो वैसी स्थिति में हम कुछ मेडिसिन देकर उसको रिकवर कर सकते हैं. लेकिन ज्यादा देर होने पर यह स्थायी बधिरता का रूप ले सकती है"
Earphones Increased Risk of Deafness ईयरफोन छीन सकता है सुनने की शक्ति, जानिए बचने के उपाय - Ambikapur Medical College
आजकल डिजिटल जमाने में हर काम कम्प्यूटर से संबंधित हो गया है. कम्प्यूटर में या फिर मोबाइल में काम करते वक्त एक चीज बहुत कॉमन रूप से देखे जाने लगी है. वो है हेडफोन या ईयरफोन. लोग घंटों अपने काम के दौरान कानों में हेडफोन का इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन जितनी तेजी से इसका इस्तेमाल बढ़ा है उतनी ही तेजी से कानों से जुड़ी समस्याएं सामने आ रही है.
सरगुजा : जितनी तेजी से मोबाइल का उपयोग बढ़ रहा है. उतनी ही तेजी से ईयरफोन का भी उपयोग बढ़ा है. लोग घंटों ईयरफोन कान में लगाकर गाने सुनते हैं .लेकिन क्या आपको पता है कि ईयरफोन के अधिक उपयोग से आप मुसीबत में पड़ सकते हैं. इस सम्बंध में हमने अम्बिकापुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल के ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर शैलेन्द्र गुप्ता से बात की.
कर्ण रोग के बढ़ रहे हैं मरीज : डॉक्टर शैलेंद्र गुप्ता कहते हैं " ईयरफोन अभी हाल के दिनों में और कोविड के समय में उपयोग बढ़ा है. इसके उपयोग के कारण जो दुष्प्रभाव हैं. जो पहले एक दो दिखते थे. अब हमारी ओपीडी में इन मरीजों संख्या बढ़ी है. जो श्रवण बाधा के रूप के आती है. लोग अनिद्रा के शिकार हो रहे हैं. बच्चों में चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है. इसका कहीं ना कहीं कारण ज्यादा देर तक हेड फोन का उपयोग करना हम लोग पाते हैं"
60 बाई 60 का है रूल : डॉ. गुप्ता बताते है "सामान्य रूप से देखा जाए तो अगर आपको कान को सुरक्षित रखना है और यदि हेड फोन के उपयोग आपको जरूरी है तो इसका रूल जो है 60 बाई 60 का रहता है. अर्थात उसका वेल्युम 60 डेसिबल का हम 60 मिनट तक उपयोग कर सकते हैं. ऐसे में कान आपके सुरक्षित रहते हैं. परंतु आप इससे कहीं ज्यादा लाउड साउंड में, जिसमें जो हमरे साउंड की जो मानक इकाई होती है डेसिबल से हम लोग साउंड को मापते हैं. यदि 85 डेसिबल से ज्यादा साउंड आप हेडफोन के मध्यम से कानों को देते हैं तो वैसी स्थिति में कानों को डेमेज हो सकता है. यदि समय पर ध्यान नहीं दिया गया तो स्थायी रूप से बधिरता भी हो सकती है"
ऑडियोमेट्री टेस्ट जरूरी : डॉ. शैलेन्द्र गुप्ता आगे बताते हैं "यदि किसी को ऐसा लग रहा है कि हेड फोन के उपयोग से कोई प्रभावित हो रहा है. उसके कानों में कोई शब्द समझ नहीं आ रहा है तो निश्चित रूप से उसे ऑडियोमेट्री टेस्ट करा लेना चाहिये. ये टेस्ट में किसी प्रकार का इंजेक्शन या सुई नही लगती है. इसमें अलग अलग प्रकार की ध्वनि आपके कान को दी जाती है. उसको पहचानने के लिए आपसे आग्रह किया जाता है. ये आधे घंटे का टेस्ट है. इससे यह पता चल जाता है कि आपने सुनने के क्षमता अभी कितनी है. वो नार्मल है या क्षमताओं में कुछ कमी आई है. सभी जिला चिकित्सालय में यह सुविधा निशुल्क रहती है"
ये भी पढ़ें- यदि आप भी अनिद्रा से हैं परेशान, तो जानिए उपाय
समय पर इलाज सम्भव : डॉक्टर शैलेन्द्र बताते है "अगर लगातार हेड फोन सुनने के कारण सुनाई देने की क्षमता में अगर कमी आई है और हमको ये पता चल जाए तो इसका आरंभिक चरण में इलाज संभव है. यदि हम 15 दिन या एक महीने के अंदर में ही पकड़ ले की नॉइस के कारण इंज्युरी है तो वैसी स्थिति में हम कुछ मेडिसिन देकर उसको रिकवर कर सकते हैं. लेकिन ज्यादा देर होने पर यह स्थायी बधिरता का रूप ले सकती है"