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SPECIAL: जानें छठ पूजा की कहानी ETV भारत की 'जुबानी'

छठ कड़े नियम और अनुशासन के साथ मनाया जाता है. छठ व्रत कठिन तपस्या और समर्पण का बड़ा उदाहरण है.

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Published : Nov 2, 2019, 6:45 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST

छठ पूजा करती महिलाएं

सरगुज़ा : नगर में सूर्यदेव की आराधना का महापर्व छठ मनाया जा रहा है. ETV भारत ने इसे खासतौर पर कवर किया. छठ व्रती महिलाओं द्वारा व्रत की शुरुआत से हर विधि को ऑन द कैमरा रिकॉर्ड किया.

छठ पूजा की कहानी

आप भी देख सकते हैं कि कितनी कठिनाई से यह व्रत किया जाता है. शायद ही हिन्दू धर्म में कोई व्रत या पर्व इतने कड़े नियम और अनुशासन के साथ मनाया जाता हो ? जहां साफ- सफाई और नियमों का अनुशासन है, तो वहीं कलयुग में कठिन तपस्या का एक बड़ा उदाहरण है. हम आपको दिखा रहे हैं छठ व्रत को करने की हर प्रक्रिया को. प्रसाद के गेंहू को हाथ वाली चक्की से खुद पीसना, बिना आवाज सुने खरना प्रसाद ग्रहण करना कितना कठिन है ये सब, इस व्रत में एक और खास बात यह है की व्रती इस व्रत को करते समय सिलाई किया हुआ वस्त्र भी धारण नहीं करती. लिहाजा 3 दिनों तक एक कपड़े को शरीर में लपेट कर ही रहना होता है.

छठ पर्व में छठ मैया की पूजा
छठ पर्व में छठ मैया की पूजा की जाती है. इन्हें भगवान सूर्यदेव की बहन माना जाता है. छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है. छठी मैया का ध्यान करते हुए लोग नदी या तालाब के किनारे इस पूजा को मनाते हैं. पर्व में पहले दिन घर की साफ सफाई की जाती है. छठ के चार दिनों तक शुद्ध शाकाहारी भोजन किया जाता है. पूरे भक्तिभाव और विधि विधान से छठ व्रत करने वाला व्यक्ति सुखी और साधन संपन्न होता है. साथ ही संतान प्राप्ति के लिए भी ये व्रत उत्तम है. 36 घंटे तक निर्जला रखकर उपवास रखा जाता है.

जल में गन्ने खड़ाकर जलाएंगे दीपक

छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होता है, जिसके पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन व्रत रख सूर्य को संझिया अर्घ्य और चौथे दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत संपन्न किया जाता है. व्रती घर पर बनाए गए पकवानों और पूजन सामग्री लेकर आस पास के घाट पर पहुंचते हैं. घाट के जल में गन्ने खड़ाकर दीपक जलाया जाता है. व्रती घाट में स्नान करते हैं और पानी में रहकर ही ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं फिर घर जाकर सूर्य देवता का ध्यान करते हुए जागरण किया जाता है. जिसमें छठी माता के गीत गाये जाते हैं. सप्तमी के दिन यानी व्रत के चौथे और आखिरी दिन सूर्योदय से पहले घाट पर पहुंचते हैं. उगते हुए सूर्य को दूध और जल से अर्घ्य देते हैं. आखिर में व्रती प्रसाद ग्रहण कर अपना व्रत खोलती हैं.

सरगुज़ा : नगर में सूर्यदेव की आराधना का महापर्व छठ मनाया जा रहा है. ETV भारत ने इसे खासतौर पर कवर किया. छठ व्रती महिलाओं द्वारा व्रत की शुरुआत से हर विधि को ऑन द कैमरा रिकॉर्ड किया.

छठ पूजा की कहानी

आप भी देख सकते हैं कि कितनी कठिनाई से यह व्रत किया जाता है. शायद ही हिन्दू धर्म में कोई व्रत या पर्व इतने कड़े नियम और अनुशासन के साथ मनाया जाता हो ? जहां साफ- सफाई और नियमों का अनुशासन है, तो वहीं कलयुग में कठिन तपस्या का एक बड़ा उदाहरण है. हम आपको दिखा रहे हैं छठ व्रत को करने की हर प्रक्रिया को. प्रसाद के गेंहू को हाथ वाली चक्की से खुद पीसना, बिना आवाज सुने खरना प्रसाद ग्रहण करना कितना कठिन है ये सब, इस व्रत में एक और खास बात यह है की व्रती इस व्रत को करते समय सिलाई किया हुआ वस्त्र भी धारण नहीं करती. लिहाजा 3 दिनों तक एक कपड़े को शरीर में लपेट कर ही रहना होता है.

छठ पर्व में छठ मैया की पूजा
छठ पर्व में छठ मैया की पूजा की जाती है. इन्हें भगवान सूर्यदेव की बहन माना जाता है. छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है. छठी मैया का ध्यान करते हुए लोग नदी या तालाब के किनारे इस पूजा को मनाते हैं. पर्व में पहले दिन घर की साफ सफाई की जाती है. छठ के चार दिनों तक शुद्ध शाकाहारी भोजन किया जाता है. पूरे भक्तिभाव और विधि विधान से छठ व्रत करने वाला व्यक्ति सुखी और साधन संपन्न होता है. साथ ही संतान प्राप्ति के लिए भी ये व्रत उत्तम है. 36 घंटे तक निर्जला रखकर उपवास रखा जाता है.

जल में गन्ने खड़ाकर जलाएंगे दीपक

छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होता है, जिसके पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन व्रत रख सूर्य को संझिया अर्घ्य और चौथे दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत संपन्न किया जाता है. व्रती घर पर बनाए गए पकवानों और पूजन सामग्री लेकर आस पास के घाट पर पहुंचते हैं. घाट के जल में गन्ने खड़ाकर दीपक जलाया जाता है. व्रती घाट में स्नान करते हैं और पानी में रहकर ही ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं फिर घर जाकर सूर्य देवता का ध्यान करते हुए जागरण किया जाता है. जिसमें छठी माता के गीत गाये जाते हैं. सप्तमी के दिन यानी व्रत के चौथे और आखिरी दिन सूर्योदय से पहले घाट पर पहुंचते हैं. उगते हुए सूर्य को दूध और जल से अर्घ्य देते हैं. आखिर में व्रती प्रसाद ग्रहण कर अपना व्रत खोलती हैं.

Intro:सरगुज़ा : सूर्य देव की आधारना का महापर्व सूर्य छठी पर देखें ये विशेष रिपोर्ट ईटीवी भारत ने छठ व्रती महिलाओ द्वारा व्रत की शुरुआत से की जाने वाली हर विधि को रिकार्ड किया आप भी देख सकते हैं की किस कठिनाई से छठ व्रत किया जाता है, शायद ही हिन्दू धर्म मे कोई व्रत या पर्व इतने कड़े नियम व अनुशासन के साथ मनाया जाता हो.? जहां साफ- सफाई व नियमो का गजब का अनुशासन यह व्रत सिखाता है तो वहीं कलयुग में कठिन तपश्या का एक बड़ा उदाहरण है, हम आपको दिखा रहे हैं छठ व्रत को करने की हर प्रक्रिया को प्रसाद के गेंहूँ को हाथ वाली चक्की से खुद पीसना, बिना आवाज सुने खरना प्रसाद ग्रहण करना कितना कठिन है ये सब, इस व्रत में एक और खास बात यह है की व्रती इस व्रत को करते समय सिलाई किया हुआ वस्त्र भी धारण नही करता, लिहाजा 3 दिनों तक एक कपड़े को शरीर मे लपेट कर ही रहना होता है।


छठ पर्व में छठ मैया की पूजा की जाती है। इन्हें भगवान सूर्यदेव की बहन माना जाता है। छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है। छठी मैया का ध्यान करते हुए लोग नदी या तालाब या के किनारे इस पूजा को मनाते हैं। जिसमें सूर्य की पूजा अनिवार्य है साथ ही किसी नदी में स्नान करना भी। इस पर्व में पहले दिन घर की साफ सफाई की जाती है। छठ के चार दिनों तक शुद्ध शाकाहारी भोजन किया जाता है। पूरे भक्तिभाव और विधि विधान से छठ व्रत करने वाला व्यक्ति सुखी और साधनसंपन्न होता है। साथ ही संतान प्राप्ति के लिए भी ये व्रत उत्तम माना गया है। इस व्रत को 36 घंटों तक निर्जला रखा जाता है।


छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होता है जिसके पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन व्रत रख सूर्य को संझिया अर्घ्य और चौथे दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत संपन्न किया जाता है। ये व्रत इस तरह से 36 घंटे तक निर्जला रखा जाता है और इस व्रत में छठ मैया और सूर्य देव की अराधना की जाती है।


कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी को पूरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। इस दिन व्रती घर पर बनाए गए पकवानों और पूजन सामग्री लेकर आस पास के घाट पर पहुंचते हैं। घाट पर गन्ने का घर बनाकर बड़ा दीपक जलाया जाता है। व्रती घाट में स्नान करते हैं और पानी में रहकर ही ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। फिर घर जाकर सूर्य देवता का ध्यान करते हुए रात्रि भर जागरण किया जाता है। जिसमें छठी माता के गीत गाये जाते हैं। सप्तमी के दिन यानी व्रत के चौथे और आखिरी दिन सूर्योदय से पहले घाट पर पहुंचें। इस दौरान अपने साथ पकवानों की टोकरियां, नारियल और फल भी रखते हैं फिर उगते हुए सूर्य को जल से अर्घ देते हैं।और फिर आखिर में व्रती प्रसाद ग्रहण कर अपना व्रत खोलते हैं।

प्रसाद रखने के लिए बांस की दो तीन बड़ी टोकरी, बांस या पीतल के बने 3 सूप, लोटा, थाली, दूध और जल के लिए ग्लास, नए वस्त्र साड़ी-कुर्ता पजामा, चावल, लाल सिंदूर, धूप और बड़ा दीपक, पानी वाला नारियल, गन्ना जिसमें पत्ता लगा हो, सुथनी और शकरकंदी, हल्दी और अदरक का पौधा, नाशपाती और बड़ा वाला मीठा नींबू, शहद की डिब्बी, पान और साबुत सुपारी, कैराव, कपूर, कुमकुम, चन्दन, मिठाई चढ़ाई जाती है।

वहीं ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पूड़ी, खजूर, सूजी का हलवा, चावल का बना लड्डू आदि प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाएगा। टोकरी में नई फल सब्जियां भी रखी जाती हैं जैसे कि केला, अनानास, सेब, सिंघाड़ा, मूली, अदरक पत्ते, गन्ना, कच्ची हल्दी, नारियल का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

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Last Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST
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