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छत्तीसगढ़ में पहली बार टिश्यू कल्चर से तैयार होंगे सागौन के पौधे, किसानों को भी दी जाएगी ट्रेनिंग

वन विभाग अब तक परंपरागत तरीके से सागौन के पौधे लगाया करता था. जिसमें पेड़ तैयार होने में 50 साल लग जाते थे, लेकिन टिशू कल्चर से तैयार होने वाले पौधे, रोपण के 12 से 15 साल के भीतर तैयार होकर कटाई के लायक हो जाएंगे. इससे समय की बचत होगी, साथ ही व्यापार में भी फायदा होगा.

Teak plants
सागौन के पौधे
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Published : Sep 22, 2021, 10:15 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ में अब टिश्यू कल्चर से सागौन के पौधे तैयार किए जाएंगे. यह पहली मर्तबा होगा, जब वन विभाग टिश्यू कल्चर से सागौन के पौधे उगाने की तैयारी कर रहा है. इससे पहले सागौन के पौधे नॉर्मल तरीके से ही तैयार किए जा रहे थे. इस संबंध में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने वन विभाग के अफसरों को हरी झंडी दे दी है. अब विभाग टिशू कल्चर से संबंधित अधिकारियों कर्मचारियों को प्रशिक्षण के लिए कोयंबटूर (तमिलनाडु) भेजने वाली है.

टिश्यू कल्चर से तैयार होंगे सागौन के पौधे

टिश्यू कल्चर से 12-15 साल में तैयार होगा पेड़

वन विभाग अब तक परंपरागत तरीके से सागौन के पौधे लगाया करता था. जिसमें पेड़ तैयार होने में 50 साल लग जाते थे, लेकिन टिशू कल्चर से तैयार होने वाले पौधे, रोपण के 12 से 15 साल के भीतर तैयार होकर कटाई के लायक हो जाएंगे. इससे समय की बचत होगी, साथ ही व्यापार में भी फायदा होगा. क्योंकि देशभर से सबसे अधिक डिमांड सागौन की लकड़ी की होती है. इससे पहले छत्तीसगढ़ में सागौन का उत्पादन परंपरागत तरीके से होता था, इसलिए सागौन के विस्तार की संभावनाएं काफी कम थी. नई तकनीक का इस्तेमाल होने से सागौन का उत्पादन कम समय में हो सकेगा.

कांकेर: वन विभाग की लापरवाही के कारण बांस और सागौन के हजारों पौधे सड़ रहे

अब तक बांस, नीलगिरी और केले का टिश्यू लैब

जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (Indira Gandhi Agricultural University) में बांस और केले के पौधों के उत्पादन के लिए टिश्यू कल्चर लैब (tissue culture lab) की व्यवस्था है. इसके अलावा वन विभाग का रायपुर के समीप ग्राम गोढ़ी में बांस और जंगल सफारी में नीलगिरी के लिए लैब है, लेकिन इसका दायरा इतना सीमित है कि इसका उपयोग ज्यादा नहीं किया जाता.

पौधरोपण प्रोत्साहन योजना के तहत रोपे जा रहे पौधे

रायपुर डीएफओ विश्वेश कुमार ने बताया कि मुख्यमंत्री पौधरोपण प्रोत्साहन योजना (Chief Minister Plantation Incentive Scheme) के तहत मुख्यमंत्री की तरफ से लोगों के खेतों में ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण करने के लिए आह्वान किया गया है. इसी तारतम्य में बहुत सारे किसानों की ओर से ग्राम पंचायतों के द्वारा रुचि ली गई है कि अलग-अलग प्रजातियों के पौधों को अपने खेतों में या अपने राजस्व क्षेत्रों में उसको लगाया जाए. इसी के तहत टिश्यू कल्चर प्लांट्स लगाने की तैयारी की जा रही है. चूंकि पहले इसे तैयार करने में काफी समय लगता था, लेकिन टिश्यू कल्चर से सागौन पौधे तैयार करने से पेड़ जल्दी कटाई के लायक हो जाएंगे. जिससे किसान खुद से कटाई कर उसे बेच सकें और उसका ज्यादा से ज्यादा लाभ ले सकें.

कोयंबटूर जाएगी टीम

डीएफओ ने बताया कि टिशू कल्चर सागौन की तैयारी के लिए प्लान किया गया है. चूंकि सागौन जो है आईएफजीटी कोयंबटूर में तैयार किया जा रहा है. छत्तीसगढ़ में हमारे लैब्स में इस तरह की सुविधा नहीं है. गवर्नमेंट लैब्स और प्राइवेट लैब्स दोनों को मिलाकर जो हमारे साइंटिस्ट या हमारे ट्रेनर्स को प्रोत्साहित किया जा रहा है, ताकि वो यहां से कोयंबटूर जाकर ट्रेनिंग हासिल कर सके और छत्तीसगढ़ में ज्यादा से ज्यादा टिश्यू कल्चर सगौन तैयार कर सके.

बेशकीमती लकड़ियों की तस्करी का हब बन रहा रायपुर, 6 साल में 10 करोड़ की लकड़ी जब्त

छत्तीसगढ़ में टिश्यू कल्चर से पौधे तैयार करना अच्छी पहल

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की प्रो. डॉ जेनु झा ने बताया कि सागौन के पेड़ औद्योगिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. क्वालिटी फर्नीचर इंडस्ट्री की पहली पसंद ही सागौन की लकड़ियां है. छत्तीसगढ़ में भी इसकी काफी मांग है. मांग की कुछ पूर्ति जगदलपुर में उगने वाले सागौन से कुछ हद तक पूर्ति हो जाती है, लेकिन जिस गति से छत्तीसगढ़ का औद्योगिक विकास हो रहा है. आपूर्ति के लिए काफी ज्यादा सागौन की गुणवत्ता युक्त पौधों की जरूरत होगी.

काफी बड़े क्षेत्र में क्वालिटी प्लांट लगाने की जरूरत है. इसके लिए टिश्यू कल्चर से उत्पन्न पेड़ों की जरूरत होगी. छत्तीसगढ़ में यदि टिश्यू कल्चर से सागौन के पौधे तैयार किए जाएंगे तो अच्छी बात है. वैसे हमारे इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में टिश्यू कल्चर से बांस, केला के पौधे तैयार किए जाते हैं, यह वन विभाग की अच्छी पहल है.

रायपुर: छत्तीसगढ़ में अब टिश्यू कल्चर से सागौन के पौधे तैयार किए जाएंगे. यह पहली मर्तबा होगा, जब वन विभाग टिश्यू कल्चर से सागौन के पौधे उगाने की तैयारी कर रहा है. इससे पहले सागौन के पौधे नॉर्मल तरीके से ही तैयार किए जा रहे थे. इस संबंध में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने वन विभाग के अफसरों को हरी झंडी दे दी है. अब विभाग टिशू कल्चर से संबंधित अधिकारियों कर्मचारियों को प्रशिक्षण के लिए कोयंबटूर (तमिलनाडु) भेजने वाली है.

टिश्यू कल्चर से तैयार होंगे सागौन के पौधे

टिश्यू कल्चर से 12-15 साल में तैयार होगा पेड़

वन विभाग अब तक परंपरागत तरीके से सागौन के पौधे लगाया करता था. जिसमें पेड़ तैयार होने में 50 साल लग जाते थे, लेकिन टिशू कल्चर से तैयार होने वाले पौधे, रोपण के 12 से 15 साल के भीतर तैयार होकर कटाई के लायक हो जाएंगे. इससे समय की बचत होगी, साथ ही व्यापार में भी फायदा होगा. क्योंकि देशभर से सबसे अधिक डिमांड सागौन की लकड़ी की होती है. इससे पहले छत्तीसगढ़ में सागौन का उत्पादन परंपरागत तरीके से होता था, इसलिए सागौन के विस्तार की संभावनाएं काफी कम थी. नई तकनीक का इस्तेमाल होने से सागौन का उत्पादन कम समय में हो सकेगा.

कांकेर: वन विभाग की लापरवाही के कारण बांस और सागौन के हजारों पौधे सड़ रहे

अब तक बांस, नीलगिरी और केले का टिश्यू लैब

जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (Indira Gandhi Agricultural University) में बांस और केले के पौधों के उत्पादन के लिए टिश्यू कल्चर लैब (tissue culture lab) की व्यवस्था है. इसके अलावा वन विभाग का रायपुर के समीप ग्राम गोढ़ी में बांस और जंगल सफारी में नीलगिरी के लिए लैब है, लेकिन इसका दायरा इतना सीमित है कि इसका उपयोग ज्यादा नहीं किया जाता.

पौधरोपण प्रोत्साहन योजना के तहत रोपे जा रहे पौधे

रायपुर डीएफओ विश्वेश कुमार ने बताया कि मुख्यमंत्री पौधरोपण प्रोत्साहन योजना (Chief Minister Plantation Incentive Scheme) के तहत मुख्यमंत्री की तरफ से लोगों के खेतों में ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण करने के लिए आह्वान किया गया है. इसी तारतम्य में बहुत सारे किसानों की ओर से ग्राम पंचायतों के द्वारा रुचि ली गई है कि अलग-अलग प्रजातियों के पौधों को अपने खेतों में या अपने राजस्व क्षेत्रों में उसको लगाया जाए. इसी के तहत टिश्यू कल्चर प्लांट्स लगाने की तैयारी की जा रही है. चूंकि पहले इसे तैयार करने में काफी समय लगता था, लेकिन टिश्यू कल्चर से सागौन पौधे तैयार करने से पेड़ जल्दी कटाई के लायक हो जाएंगे. जिससे किसान खुद से कटाई कर उसे बेच सकें और उसका ज्यादा से ज्यादा लाभ ले सकें.

कोयंबटूर जाएगी टीम

डीएफओ ने बताया कि टिशू कल्चर सागौन की तैयारी के लिए प्लान किया गया है. चूंकि सागौन जो है आईएफजीटी कोयंबटूर में तैयार किया जा रहा है. छत्तीसगढ़ में हमारे लैब्स में इस तरह की सुविधा नहीं है. गवर्नमेंट लैब्स और प्राइवेट लैब्स दोनों को मिलाकर जो हमारे साइंटिस्ट या हमारे ट्रेनर्स को प्रोत्साहित किया जा रहा है, ताकि वो यहां से कोयंबटूर जाकर ट्रेनिंग हासिल कर सके और छत्तीसगढ़ में ज्यादा से ज्यादा टिश्यू कल्चर सगौन तैयार कर सके.

बेशकीमती लकड़ियों की तस्करी का हब बन रहा रायपुर, 6 साल में 10 करोड़ की लकड़ी जब्त

छत्तीसगढ़ में टिश्यू कल्चर से पौधे तैयार करना अच्छी पहल

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की प्रो. डॉ जेनु झा ने बताया कि सागौन के पेड़ औद्योगिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. क्वालिटी फर्नीचर इंडस्ट्री की पहली पसंद ही सागौन की लकड़ियां है. छत्तीसगढ़ में भी इसकी काफी मांग है. मांग की कुछ पूर्ति जगदलपुर में उगने वाले सागौन से कुछ हद तक पूर्ति हो जाती है, लेकिन जिस गति से छत्तीसगढ़ का औद्योगिक विकास हो रहा है. आपूर्ति के लिए काफी ज्यादा सागौन की गुणवत्ता युक्त पौधों की जरूरत होगी.

काफी बड़े क्षेत्र में क्वालिटी प्लांट लगाने की जरूरत है. इसके लिए टिश्यू कल्चर से उत्पन्न पेड़ों की जरूरत होगी. छत्तीसगढ़ में यदि टिश्यू कल्चर से सागौन के पौधे तैयार किए जाएंगे तो अच्छी बात है. वैसे हमारे इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में टिश्यू कल्चर से बांस, केला के पौधे तैयार किए जाते हैं, यह वन विभाग की अच्छी पहल है.

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