रायपुर: देशभर में नवरात्रि का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. आज नवरात्रि का पहला दिन है. इस नवरात्रि में ETV भारत ऐसी महिलाओं से आपको रू-ब-रू करा रहा है, जिन्होंने कोरोना वॉरियर के तौर पर काम किया. आज हम बात कर रहे हैं समाज सेविका मनजीत कौर बल से, जिन्होंने बखूबी अपनी जिम्मेदारी निभाई. जिस समय राजधानी के लोग घरों में बंद थे, मजदूर दूसरे राज्यों से पैदल ही अपने घर जाने के लिए निकल पड़े थे, उस समय मनजीत ने आगे आकर ऐसे मजदूरों की मदद के लिए हाथ बढ़ाया और उन्हें शेल्टर होम की सुविधा दी.
पढ़ें-एक ऑफिसर हमेशा ऑफिसर होता है चाहे वह महिला हो या पुरुष: IPS अंकिता शर्मा
जशपुर जिले के छोटे से गांव कुमार बहार में पैदा हुई मनजीत ने अपनी पढ़ाई अलग-अलग जगहों पर की. बिलासपुर के गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी से MBA करने के बाद उन्होंने किसी बड़ी कंपनी में नौकरी न करते हुए समाजसेवा की तरफ कदम बढ़ाया और पिछले 13 साल से रायपुर में सोशल वर्क कर रही हैं. मनजीत कौर को लोगों के साथ काम करना पसंद था. उनके पिता इंजीनियरिंग कॉलेज में वॉर्डन रहे और वो उन्हें हॉस्टल के बच्चों की केयर करते हुए देखती थीं. उन्होंने कहा कि उस दौरान उनका इंटरैक्शन नेशनल लेवल के बहुत सारे लोगों से हुआ और धीरे-धीरे उनमें व्यक्तियों की समझ बननी शुरू हुई. उनका मन था कि वो ऐसा कुछ करें, जिससे उनका जीवन किसी के काम आ सके.
सवाल: कोरोना काल में कैसे किया काम?
मनजीत कहती हैं कि कोविड-19 के शुरुआती दौर में लॉकडाउन के पहले स्टेज के दौरान लगा कि लोगों में जागरूकता की कमी है. भयावह स्थिति थी और लोग डर गए थे. इस दौरान कोरोना को लेकर अध्ययन किया और डॉक्टरों से चर्चा हुई और अपनी टीम के साथ बात कर हमारी यह रणनीति बनी कि कैसे लोगों को जागरूक किया जाए. इसके बाद अवेयरनेस के लिए प्रचार सामग्री बनाई. जिला प्रशासन से समन्वय बनाकर कार्य की शुरुआत हुई. जिला प्रशासन ने रायपुर में सबसे बड़ा शेल्टर होम बनाया, जिसके संचालन में सहयोग किया और जहां राशन की जरूरत होती थी, वहां हम राशन पहुंचाया करते थे. इसके अलावा हर काम से हम जुड़ते चले गए.
मनजीत से जब पूछा गया कि उन्हें कोरोना संक्रमण से डर नहीं लग रहा था, तो उन्होंने कहा कि बहुत ज्यादा संख्या में एक वर्ग परेशान दिख रहा था. ऐसा लग रहा था कि अगर हम अपने घर में अपनी मौत बचाने के लिए रुक गए, तो कई मौतों को देखते रह जाएंगे और उस दौरान लोगों का दुख-दर्द दिखाई दिया. उस समय लगा कि अगर हम अभी नहीं उतरे, तो कब काम के लिए उतरेंगे. हम समाज सेवा करते हैं, अगर आपदा के दौरान यह काम नहीं किया, तो आखिर कब करते.
सवाल: मजदूरों के लिए जब बसों की व्यवस्था नहीं हो रही थी, उस दौरान आप धरने पर बैठी थीं क्या वजह थी?
राजधानी में लॉकडाउन के शुरुआती दौर में मनजीत मजदूरों के लिए बस की व्यवस्था की मांग को लेकर सड़क पर बैठ गई थीं. उनसे जब इस विषय में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि जब लॉकडाउन शुरू हुआ, उस दौरान भयावह स्थिति पूरे देश में हुई. खासतौर पर गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना जैसी जगहों पर काम कर रहे मजदूर अपने घरों के लिए पैदल ही निकल गए, उन्हें ऐसा लग रहा था कि यहां भूखे मर जाने से बेहतर है अपनी जमीन पर जाकर कुछ कर लें.
मजदूरों के लिए बैठी सड़क पर
अप्रैल के अंतिम दौर में यह शुरुआत हुई थी और उस दौरान गर्मी बढ़ती जा रही थी. मजदूर दिवस के दिन उनका दर्द जानने के लिए मनजीत अपनी टीम के साथ उतरीं और पैदल ही उन्हें देखने निकल पड़ी. 'उन्हें चलता देखकर मेरी इच्छा नहीं हुई कि उनके साथ चला जाए. मुझे लगा कि अगर मजदूरों को परिवहन और भोजन ठीक से मिल जाएगा, तो शायद घर पहुंचने की खुशी आक्रोश की जगह राहत में बदलेगी. मजदूरों को शहर के टाटीबंध से भेजने की व्यवस्था की जा रही थी, लेकिन एक दिन मैंने देखा कि एक गर्भवती महिला को पुलिस-प्रशासन ने लोहे की सलाखों पर खींचकर बैठा दिया. वह ऐसा दर्दनाक दृश्य था, जिसे रोकने का मैंने बहुत प्रयास किया. स्थानीय स्तर पर पुलिसकर्मी उसे नहीं मान पा रहे थे, लेकिन मेरे लिए वह दृश्य देखना सही नहीं था. मैंने प्रतीकात्मक उन्हीं के खिलाफ कहा था कि ऐसी महिलाओं के प्रति संवेदनशील हों और आगे से किसी भी महिला और बच्चों को ऐसे नहीं चढ़ाया जाए. मैं बस का इंतजाम खुद करने के लिए तैयार हूं और उस दौरान मैं सड़क पर बैठी थी. मैंने सरकार और प्रशासन का विरोध नहीं किया था, वहां काम कर रही टीम का विरोध किया था.
मनजीत ने कहा कि यह बहुत बड़ी बात है कि यह सूचना जैसे ही प्रशासन और सरकार तक पहुंची, तो दूसरे दिन से जमीन पर व्यवस्था की गई. दूसरे दिन से अंतिम दौर तक कोई भी मजदूर ट्रक से नहीं घर पहुंचा था.
सवाल: महिला सशक्तिकरण को लेकर समाज और सरकार को इस दिशा में कैसा काम करना चाहिए?
महिलाओं में ही एक बच्चे को जन्म देने की क्षमता होती है. वहीं पुरुषों की क्षमताएं अलग होती हैं, धीरे-धीरे उन्हें लड़के और लड़की के रूप में बढ़ाया जाता है, पालन किया जाता है. यहीं पर गलती हो जाती हैं. उन्हें एक व्यक्ति के रूप में बड़ा करने के बदले स्त्री और पुरुष के रूप में बड़ा किया जाता है और दोनों के बीच भेदभाव किया जाता है. लड़की को एक शरीर के रूप में पाला जाता है. लड़की को सुंदर होना चाहिए, कोमल होना चाहिए, ताकि वह पुरुषों के लिए एक अच्छी उपभोग की वस्तु बने. अगर समाज उसे एक लड़की की तरह बड़ा न करके एक व्यक्ति के रूप में बड़ा करे, तो और किसी चीज की जरूरत नहीं होगी. मेरे परिवार में भी मैं लड़की नहीं एक व्यक्ति के रूप में बड़ी हुई हूं. सरकार लड़कियों को सुरक्षा और भय देने के बजाय उन्हें यह सुनिश्चित करे कि आपको सुरक्षित रहने की जरूरत नहीं है. आप एक व्यक्ति हैं और आप वह सारे काम कर सकती हैं, जो एक लड़का कर सकता है. इस जेंडर डिस्क्रिमिनेशन में पूरा समाज और परिवार फंसा हुआ है, उससे बाहर लाने की जरूरत है और यह प्रयास बहुत कम हो रहा है.
सवाल: महिलाओं को क्या संदेश देना चाहेंगी
एक महिला अगर मां है और अपने बेटे और बेटियों के साथ व्यवहार करते समय यह ध्यान दे कि वह कैसा व्यवहार कर रही है, तो समस्या हल हो जाएगी. सबसे बड़ा संदेश यह है कि एक लड़की का व्यक्ति के रूप में विकास करें, साथ-साथ निर्णय की क्षमता लेने के लिए प्रेरित करें और अवसर दें. वही अवसर दें जो सबके लिए होता है. अवसर और निर्णय क्षमता अगर दो चीजें महिलाओं को मिले और यह जन्म से लेकर विवाह तक तय करने में हो तो, ये समाज के लिए एक बड़ा योगदान होगा.