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66 की उम्र तक 56 रिकॉर्ड, 37 हजार थैले बांट पर्यावरण संरक्षण का पाठ पढ़ा रहीं शुभांगी - 56 records

भारतीय नारी डेहरी में कैद रह कर घर-परिवार की देखभाल करते हुए जिंदगी गुजार देती है. जीवन में कुछ नया करने और आगे बढ़ने के बारे में बहुत कम नारियां ही पहल कर पाती हैं. लेकिन रायपुर में समाज और पर्यावरण सुरक्षा (environmental protection) की दिशा में महिला ने कुछ ऐसा काम किया है कि आज उनके सिर 56 रिकॉर्ड का सेहरा सज चुका है. ईटीवी भारत नवरात्रि के इस खास मौके पर आपको बताने जा रहा है उनके सामाजिक दायित्वों (social obligation) के निर्वहन में किए गए अद्भुत प्रयासों के बाबत...

Unique effort of Shubhangi Apte in Raipur
रायपुर में शुभांगी आप्टे का अनूठा प्रयास
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Published : Oct 9, 2021, 7:05 PM IST

Updated : Oct 9, 2021, 9:59 PM IST

रायपुरः भारतीय नारी डेहरी में कैद रह कर घर-परिवार की देखभाल करते हुए जिंदगी गुजार देती है. जीवन में कुछ नया करने और आगे बढ़ने के बारे में बहुत कम नारियां ही पहल कर पाती हैं. इनमें से कुछ महिलाएं ऐसी भी होती हैं, जो संघर्ष करके समाज में मिसाल बनाती हैं.
ईटीवी भारत नवरात्रि (Navratri) के इस खास मौके पर आपको एक ऐसी ही महिला से रू-ब-रू कराने जा रहा है, जिन्होंने पॉलीथिन के खिलाफ जंग की शुरुआत की और 37 हजार से अधिक थैले शहर में वितरित कर न केवल 'मोर रायपुर' की ब्रांड एम्बेसडर (brand ambassador) बनीं, बल्कि अपने नाम 56 रिकॉर्ड भी दर्ज किया. हम बात कर रहे हैं राजधानी रायपुर की डॉ. शुभांगी आप्टे के बाबत...

रायपुर में शुभांगी आप्टे का अनूठा प्रयास
सवाल: काफी लंबे समय से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम कर रही हैं, इसकी शुरुआत कैसे हुई? जवाब: मैंने 2008 में इसकी शुरूआत की थी. हर रोज हम लोग पेपर में पढ़ते हैं कि गौ माता की मृत्यु प्लास्टिल खाने से हो रही है. प्लास्टिक की वजह से ही हमारी उपजाऊ जमीन खराब हो रही है. साथ ही हमारा स्वास्थ्य भी प्लास्टिक की वजह से ही खराब हो रहा है. इन सबको देखते हुए मेरे मन में विचार आया कि क्यों न हम इस दिशा में काम करें. उसके बाद सोचा कि क्या किया जाए? फिर याद आया कि दादी-नानी के जमाने में हम कपड़े की थैलियां लेकर जाते थे. यह विचार आया कि क्यों ना यह मुहिम चलाई जाए कि कपड़े की थैली का उपयोग करें और प्लास्टिल का बहिष्कार करें. इस दिशा में पहले छोटे तौर पर काम शुरू किया. घर में जो कपड़े थे, उससे थैलियां सिलवाईं और सबको बांटना शुरू किया. मुख्यतः मैं स्कूली बच्चों (school children) को ज्यादा बांटती थी, क्योंकि मेरा मानना यह है कि बच्चे किसी भी चीज को जल्दी आत्मसात करते हैं. उसके बाद महिला दिवस पर होने वाले कार्यक्रम, सब्जी के बाजार व बैंकों में होने वाले कार्यक्रमों में थैले वितरित करती और संदेश देती थी कि प्लास्टिक का उपयोग ना करें.


सवाल: कितने कपड़े की थैली वितरित करने का लक्ष्य है?
जवाब: थैले वितरित करने के कार्य को देखते हुए स्मार्ट सिटी रायपुर (smart city raipur) ने मुझे 2014 में "मोर रायपुर" में नो प्लास्टिक कैंपेन का ब्रांड एंबेसडर बनाया है. ग्रीन इंडिया (Green India) परिवार की ओर से ग्रीन इंडिया एम्बेसडर (Green India Ambassador) बनाया है. अभी तक 37 हजार से अधिक थैले खुद के खर्चे से बांट चुकी हूं. चूंकि, 2021 में मेरा टारगेट 50 हजार थैलियां वितरित करने का था, लेकिन कोरोना की वजह से नहीं हो पाया. जल्द ही मैं इसको पूरा करूंगी. मेरा मानना है कि तीन बातें हमें हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए. पहली प्लास्टिक की वजह से गौ माता की मौत न हो. दूसरी, प्लास्टिक (plastic) को उपजाऊ जमीन पर न फेंकें. तीसरी प्लास्टिक के डिब्बे में रखा खाना खाने से स्वास्थ्य को नुकसान होता है. हमको तीनों चीजों का ख्याल रखते हुए इस काम को करना चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्वच्छ भारत मिशन के रूप में काम कराया है. जब तक स्वच्छता नहीं रहेगी तो स्वस्थ भारत कैसे रहेगा? यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस दिशा में कार्य करें. खास कर मैं मेरी बहनों, माताओं से यह कहना चाहूंगी कि हमें इस बात का बहुत ध्यान रखना चाहिए.

सवाल: आप हजारों थैले वितरित कर चुकी हैं, इतने कपड़े लाती कहां से हैं?
जवाब: मैं शुरुआती दौर में रोजाना दो घंटे सभी टेलर के यहां घूम कर कपड़ा इकट्ठा करती थी. उस समय थोड़ी कठिनाई जरूर आई क्योंकि लोगों को लगता था कि यह कपड़ा ले जाकर क्या करेंगी? मैंने उनसे यह कहा कि मेरा जिस स्कूल में कार्यक्रम है आप आइएगा, देखिएगा, यदि आपको ऐसा लगता है कि देखने के बाद देना चाहिए तो फिर आप दीजिए. फिर बाद में धीरे-धीरे लोगों को विश्वास हुआ. कुछ लोग मेरे साथ जुड़ने लगे. फिर अखबारों में जब आने लगा तब उन्हें लगा कि यह सही में कपड़े के थैले बांट रही हैं. आज 12 साल के बाद की स्थिति यह है कि मुझे किसी के यहां भी कपड़ा लेने जाना नहीं पड़ता. जिनसे मैं एकत्रित करती थी, वह खुद घर पर कपड़ा ला कर देते हैं. कुछ महिलाएं ऐसी हैं, जो सिलाई जानती है. वह मेरे यहां से कपड़ा लेकर जाती हैं. सिलाई करके ला देती हैं और मैं जो भी थैली सिलकर लाता है, उसको 4 रुपये थैले के हिसाब से अपने खर्चे से देती हूं. मैं किसी से भी इस काम के लिए एक भी रुपए नहीं लिए. क्योंकि मेरा मानना है कि यदि हम समाज कार्य के लिए निकले हैं और दूसरे से पैसा ले कर यदि हम यह कार्य कर रहे हैं तो उसमें वह आत्मीय संतुष्टि नहीं मिलती जो मुझे मिल रही है.

सवाल: थैला वितरित करने का अचानक आपके मन में कैसे आया?
जवाब: बाजार में जो भी आता था, हाथ में प्लास्टिक की थैली लेकर आता था. तो बीच में मैं जब भी बाहर निकलती थी तो 8-10 थैले अपने साथ रखती थी. जो प्लास्टिक लेकर आता था. उनको रोकती थी. उनको बोलती थी कि आप यह कपड़े का थैला लीजिए, प्लास्टिक का मत लीजिए. शुरू में लोगों ने कहा कि आपके अकेला थैला बांटने से क्या हो जाएगा? यदि ऐसा हर कोई सोचे तो नहीं हो सकता. बीच में मैंने एक और अभियान शुरू किया कि जो भी मुझे 1 किलो प्लास्टिक की थैली ला कर देगा, उसे मैं एक कपड़े की थैली दूंगी. उसके बाद मेरे यहां बोरा भर की प्लास्टिक की थैली इकट्ठा हो गई थी. लोग मुझे बोलने लगे कि आप इसका क्या करोगी. फिर मैंने उसका इको फ्रेंडली ब्रिक्स बनाना शुरू की. आजकल इको फ्रेंडली ब्रिक्स बन रही है, जो हमारे पास प्लास्टिक की खाली बोतले रहती हैं, उस पर मैंने रंग बिरंगी प्लास्टिक की थैलियां भर कर रखी है. लोग मुझे यह भी कहते हैं कि आप इतना खर्च करती हैं, कहां से पैसा आता है? बता दूं कि 15 सालों से मैंने खुद के लिए कुछ नहीं खरीदा. महिला गोल्ड ज्यादा पसंद करती हैं, लेकिन मैंने इसका त्याग कर दिया. उसके बदले में मैंने पैसे इस काम में लगाना शुरू कर दिया. उसका जो आनंद आता है, वह शब्दों में बयां नहीं हो सकता.

सवाल: 20 लिम्का बुक समेत कई रिकॉर्ड आपके नाम से दर्ज हैं. कौन-कौन से रिकॉर्ड हैं?
जवाब: जब मेरे बेटा-बेटी दोनों अपना एजुकेशन पूरा करके अपने-अपने काम में लग गए. बिटिया की शादी हो गई. बेटा जॉब में चला गया तो खुद को बिजी रखने की सोची. उस समय टीवी में एक दिव्यांग का इंटरव्यू देखी. दिव्यांग बच्चा पेंसिल का कलेक्शन कर रिकॉर्ड बनाया है. उसके बाद से भी कलेक्शन का काम शुरू कर दी. हम बाहर जाते थे तो कीरिंग इकट्ठा करने लगे. इसी तरह 3,500 की रिंग इकट्ठा हो गई. फिर उसे लिम्का बुक के लिए भेजी. उसके बाद 2007 में मेरा नाम पहली बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ. फिर रिकॉर्ड का सिलसिला शुरू हो गया. एक के बाद एक 56 रिकॉर्ड मेरे नाम से दर्ज हैं. इसमें से 20 लिम्का में दर्ज हैं. जिसमें की रिंग कलेक्शन, विजिटिंग कार्ड, होटल मैन्यू, रुमाल, ब्लाइंड बच्चों की किताबें, पॉकेट भगवत गीता, सिल्वर बर्थडे, इनविटेशन कार्ड, पॉकेट रंगोली बुक शामिल है.

सवाल: आपने बच्चों को 900 रंगोली किट वितरित किए, मन में कैसे आया?
जवाब: हर साल कुछ न कुछ नया करने का सोचती हूं. उसी तरह नवंबर नवरात्रि में हमारे यहां रंगोली का महत्व है. फिर मैंने सोचा क्यों ना कन्याओं को रंगोली किट दी जाए? तो एक-एक रंगोली की जाली उसके साथ एक एक रंगोली का पैकेट और वह भी मैंने अपने कपड़े के थैलों में डाल कर दिया. हिंदू संस्कृति और पर्यावरण सुरक्षा के एकसाथ प्रयास पर बहुत अच्छे कार्यक्रम हुए. कई स्कूलों में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया. नवरात्रि के समय यह दीया और बत्ती भी वितरित किए गए. नवरात्रि के पहले दिन जितने लोग हैं, उन सभी को हमने वितरित किया.

सवाल: आप महिलाओं को क्या संदेश देना चाहती हैं?
जवाब: हर महिला में कुछ ना कुछ गुण होता है. वह छिपा रहता है. खुद को कहीं भी कम नहीं समझना चाहिए. यह बात तो पक्की है कि हम महिलाएं किसी भी चीज को ठान लेते हैं तो उसको जरूर करते हैं. लेकिन केवल उसको दिशा मिलनी चाहिए. पूरा दिन तो हम घर और परिवार के लिए करते हैं. मेरा मानना है कि दिन में कम से कम 1 घंटा अपने लिए निकालिए. पढ़ने के शौकीन हैं तो पढ़िए. कविता करती हैं तो कविता करिए. लेख लिखती हैं तो लेख लिखिए. कुछ भी तो करिए. खुद को निष्क्रिय मत समझिए. हम किसी से भी कम नहीं है. महिला शक्ति को आगे आना चाहिए है. जिनको मुझसे मदद की आवश्यकता है, या मेरे से मिलना चाहती हैं उनको भी बताऊंगी और जब हम काम करने लगते हैं तो अपने आप दरवाजे खुलते हैं. हम यदि कुछ करेंगे ही नहीं तो कौन हमको आकर बताएगा?



शुभांगी के नाम 56 रिकॉर्ड, जिसमें 20 लिम्का बुक

  • 2007 में 3500 की रिंग कलेक्शन के लिए लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड
  • 2010 में विजिटिंग कार्ड कलेक्शन के लिए लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड
  • 2011 में छोटे साइज की भागवत गीता की कलेक्शन के लिए चैंपियन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड
  • 2019 में पर्यावरण संरक्षण के लिए कपड़े के 35 हजार थैले खुद सिलकर निःशुल्क बांटने के लिए चैंपियन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड
  • 2016 में ब्लाइंड बच्चों को ब्रेल लिपि गेम बुक बनाकर निःशुल्क बांटने के लिए इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड
  • 2018 में 900 बच्चों को रंगोली किट बाटने के लिए इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड

रायपुरः भारतीय नारी डेहरी में कैद रह कर घर-परिवार की देखभाल करते हुए जिंदगी गुजार देती है. जीवन में कुछ नया करने और आगे बढ़ने के बारे में बहुत कम नारियां ही पहल कर पाती हैं. इनमें से कुछ महिलाएं ऐसी भी होती हैं, जो संघर्ष करके समाज में मिसाल बनाती हैं.
ईटीवी भारत नवरात्रि (Navratri) के इस खास मौके पर आपको एक ऐसी ही महिला से रू-ब-रू कराने जा रहा है, जिन्होंने पॉलीथिन के खिलाफ जंग की शुरुआत की और 37 हजार से अधिक थैले शहर में वितरित कर न केवल 'मोर रायपुर' की ब्रांड एम्बेसडर (brand ambassador) बनीं, बल्कि अपने नाम 56 रिकॉर्ड भी दर्ज किया. हम बात कर रहे हैं राजधानी रायपुर की डॉ. शुभांगी आप्टे के बाबत...

रायपुर में शुभांगी आप्टे का अनूठा प्रयास
सवाल: काफी लंबे समय से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम कर रही हैं, इसकी शुरुआत कैसे हुई? जवाब: मैंने 2008 में इसकी शुरूआत की थी. हर रोज हम लोग पेपर में पढ़ते हैं कि गौ माता की मृत्यु प्लास्टिल खाने से हो रही है. प्लास्टिक की वजह से ही हमारी उपजाऊ जमीन खराब हो रही है. साथ ही हमारा स्वास्थ्य भी प्लास्टिक की वजह से ही खराब हो रहा है. इन सबको देखते हुए मेरे मन में विचार आया कि क्यों न हम इस दिशा में काम करें. उसके बाद सोचा कि क्या किया जाए? फिर याद आया कि दादी-नानी के जमाने में हम कपड़े की थैलियां लेकर जाते थे. यह विचार आया कि क्यों ना यह मुहिम चलाई जाए कि कपड़े की थैली का उपयोग करें और प्लास्टिल का बहिष्कार करें. इस दिशा में पहले छोटे तौर पर काम शुरू किया. घर में जो कपड़े थे, उससे थैलियां सिलवाईं और सबको बांटना शुरू किया. मुख्यतः मैं स्कूली बच्चों (school children) को ज्यादा बांटती थी, क्योंकि मेरा मानना यह है कि बच्चे किसी भी चीज को जल्दी आत्मसात करते हैं. उसके बाद महिला दिवस पर होने वाले कार्यक्रम, सब्जी के बाजार व बैंकों में होने वाले कार्यक्रमों में थैले वितरित करती और संदेश देती थी कि प्लास्टिक का उपयोग ना करें.


सवाल: कितने कपड़े की थैली वितरित करने का लक्ष्य है?
जवाब: थैले वितरित करने के कार्य को देखते हुए स्मार्ट सिटी रायपुर (smart city raipur) ने मुझे 2014 में "मोर रायपुर" में नो प्लास्टिक कैंपेन का ब्रांड एंबेसडर बनाया है. ग्रीन इंडिया (Green India) परिवार की ओर से ग्रीन इंडिया एम्बेसडर (Green India Ambassador) बनाया है. अभी तक 37 हजार से अधिक थैले खुद के खर्चे से बांट चुकी हूं. चूंकि, 2021 में मेरा टारगेट 50 हजार थैलियां वितरित करने का था, लेकिन कोरोना की वजह से नहीं हो पाया. जल्द ही मैं इसको पूरा करूंगी. मेरा मानना है कि तीन बातें हमें हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए. पहली प्लास्टिक की वजह से गौ माता की मौत न हो. दूसरी, प्लास्टिक (plastic) को उपजाऊ जमीन पर न फेंकें. तीसरी प्लास्टिक के डिब्बे में रखा खाना खाने से स्वास्थ्य को नुकसान होता है. हमको तीनों चीजों का ख्याल रखते हुए इस काम को करना चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्वच्छ भारत मिशन के रूप में काम कराया है. जब तक स्वच्छता नहीं रहेगी तो स्वस्थ भारत कैसे रहेगा? यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस दिशा में कार्य करें. खास कर मैं मेरी बहनों, माताओं से यह कहना चाहूंगी कि हमें इस बात का बहुत ध्यान रखना चाहिए.

सवाल: आप हजारों थैले वितरित कर चुकी हैं, इतने कपड़े लाती कहां से हैं?
जवाब: मैं शुरुआती दौर में रोजाना दो घंटे सभी टेलर के यहां घूम कर कपड़ा इकट्ठा करती थी. उस समय थोड़ी कठिनाई जरूर आई क्योंकि लोगों को लगता था कि यह कपड़ा ले जाकर क्या करेंगी? मैंने उनसे यह कहा कि मेरा जिस स्कूल में कार्यक्रम है आप आइएगा, देखिएगा, यदि आपको ऐसा लगता है कि देखने के बाद देना चाहिए तो फिर आप दीजिए. फिर बाद में धीरे-धीरे लोगों को विश्वास हुआ. कुछ लोग मेरे साथ जुड़ने लगे. फिर अखबारों में जब आने लगा तब उन्हें लगा कि यह सही में कपड़े के थैले बांट रही हैं. आज 12 साल के बाद की स्थिति यह है कि मुझे किसी के यहां भी कपड़ा लेने जाना नहीं पड़ता. जिनसे मैं एकत्रित करती थी, वह खुद घर पर कपड़ा ला कर देते हैं. कुछ महिलाएं ऐसी हैं, जो सिलाई जानती है. वह मेरे यहां से कपड़ा लेकर जाती हैं. सिलाई करके ला देती हैं और मैं जो भी थैली सिलकर लाता है, उसको 4 रुपये थैले के हिसाब से अपने खर्चे से देती हूं. मैं किसी से भी इस काम के लिए एक भी रुपए नहीं लिए. क्योंकि मेरा मानना है कि यदि हम समाज कार्य के लिए निकले हैं और दूसरे से पैसा ले कर यदि हम यह कार्य कर रहे हैं तो उसमें वह आत्मीय संतुष्टि नहीं मिलती जो मुझे मिल रही है.

सवाल: थैला वितरित करने का अचानक आपके मन में कैसे आया?
जवाब: बाजार में जो भी आता था, हाथ में प्लास्टिक की थैली लेकर आता था. तो बीच में मैं जब भी बाहर निकलती थी तो 8-10 थैले अपने साथ रखती थी. जो प्लास्टिक लेकर आता था. उनको रोकती थी. उनको बोलती थी कि आप यह कपड़े का थैला लीजिए, प्लास्टिक का मत लीजिए. शुरू में लोगों ने कहा कि आपके अकेला थैला बांटने से क्या हो जाएगा? यदि ऐसा हर कोई सोचे तो नहीं हो सकता. बीच में मैंने एक और अभियान शुरू किया कि जो भी मुझे 1 किलो प्लास्टिक की थैली ला कर देगा, उसे मैं एक कपड़े की थैली दूंगी. उसके बाद मेरे यहां बोरा भर की प्लास्टिक की थैली इकट्ठा हो गई थी. लोग मुझे बोलने लगे कि आप इसका क्या करोगी. फिर मैंने उसका इको फ्रेंडली ब्रिक्स बनाना शुरू की. आजकल इको फ्रेंडली ब्रिक्स बन रही है, जो हमारे पास प्लास्टिक की खाली बोतले रहती हैं, उस पर मैंने रंग बिरंगी प्लास्टिक की थैलियां भर कर रखी है. लोग मुझे यह भी कहते हैं कि आप इतना खर्च करती हैं, कहां से पैसा आता है? बता दूं कि 15 सालों से मैंने खुद के लिए कुछ नहीं खरीदा. महिला गोल्ड ज्यादा पसंद करती हैं, लेकिन मैंने इसका त्याग कर दिया. उसके बदले में मैंने पैसे इस काम में लगाना शुरू कर दिया. उसका जो आनंद आता है, वह शब्दों में बयां नहीं हो सकता.

सवाल: 20 लिम्का बुक समेत कई रिकॉर्ड आपके नाम से दर्ज हैं. कौन-कौन से रिकॉर्ड हैं?
जवाब: जब मेरे बेटा-बेटी दोनों अपना एजुकेशन पूरा करके अपने-अपने काम में लग गए. बिटिया की शादी हो गई. बेटा जॉब में चला गया तो खुद को बिजी रखने की सोची. उस समय टीवी में एक दिव्यांग का इंटरव्यू देखी. दिव्यांग बच्चा पेंसिल का कलेक्शन कर रिकॉर्ड बनाया है. उसके बाद से भी कलेक्शन का काम शुरू कर दी. हम बाहर जाते थे तो कीरिंग इकट्ठा करने लगे. इसी तरह 3,500 की रिंग इकट्ठा हो गई. फिर उसे लिम्का बुक के लिए भेजी. उसके बाद 2007 में मेरा नाम पहली बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ. फिर रिकॉर्ड का सिलसिला शुरू हो गया. एक के बाद एक 56 रिकॉर्ड मेरे नाम से दर्ज हैं. इसमें से 20 लिम्का में दर्ज हैं. जिसमें की रिंग कलेक्शन, विजिटिंग कार्ड, होटल मैन्यू, रुमाल, ब्लाइंड बच्चों की किताबें, पॉकेट भगवत गीता, सिल्वर बर्थडे, इनविटेशन कार्ड, पॉकेट रंगोली बुक शामिल है.

सवाल: आपने बच्चों को 900 रंगोली किट वितरित किए, मन में कैसे आया?
जवाब: हर साल कुछ न कुछ नया करने का सोचती हूं. उसी तरह नवंबर नवरात्रि में हमारे यहां रंगोली का महत्व है. फिर मैंने सोचा क्यों ना कन्याओं को रंगोली किट दी जाए? तो एक-एक रंगोली की जाली उसके साथ एक एक रंगोली का पैकेट और वह भी मैंने अपने कपड़े के थैलों में डाल कर दिया. हिंदू संस्कृति और पर्यावरण सुरक्षा के एकसाथ प्रयास पर बहुत अच्छे कार्यक्रम हुए. कई स्कूलों में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया. नवरात्रि के समय यह दीया और बत्ती भी वितरित किए गए. नवरात्रि के पहले दिन जितने लोग हैं, उन सभी को हमने वितरित किया.

सवाल: आप महिलाओं को क्या संदेश देना चाहती हैं?
जवाब: हर महिला में कुछ ना कुछ गुण होता है. वह छिपा रहता है. खुद को कहीं भी कम नहीं समझना चाहिए. यह बात तो पक्की है कि हम महिलाएं किसी भी चीज को ठान लेते हैं तो उसको जरूर करते हैं. लेकिन केवल उसको दिशा मिलनी चाहिए. पूरा दिन तो हम घर और परिवार के लिए करते हैं. मेरा मानना है कि दिन में कम से कम 1 घंटा अपने लिए निकालिए. पढ़ने के शौकीन हैं तो पढ़िए. कविता करती हैं तो कविता करिए. लेख लिखती हैं तो लेख लिखिए. कुछ भी तो करिए. खुद को निष्क्रिय मत समझिए. हम किसी से भी कम नहीं है. महिला शक्ति को आगे आना चाहिए है. जिनको मुझसे मदद की आवश्यकता है, या मेरे से मिलना चाहती हैं उनको भी बताऊंगी और जब हम काम करने लगते हैं तो अपने आप दरवाजे खुलते हैं. हम यदि कुछ करेंगे ही नहीं तो कौन हमको आकर बताएगा?



शुभांगी के नाम 56 रिकॉर्ड, जिसमें 20 लिम्का बुक

  • 2007 में 3500 की रिंग कलेक्शन के लिए लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड
  • 2010 में विजिटिंग कार्ड कलेक्शन के लिए लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड
  • 2011 में छोटे साइज की भागवत गीता की कलेक्शन के लिए चैंपियन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड
  • 2019 में पर्यावरण संरक्षण के लिए कपड़े के 35 हजार थैले खुद सिलकर निःशुल्क बांटने के लिए चैंपियन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड
  • 2016 में ब्लाइंड बच्चों को ब्रेल लिपि गेम बुक बनाकर निःशुल्क बांटने के लिए इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड
  • 2018 में 900 बच्चों को रंगोली किट बाटने के लिए इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड
Last Updated : Oct 9, 2021, 9:59 PM IST
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