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'रोका-छेका' अभियान में बजरंगी हैं रोड़ा !

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Published : May 29, 2022, 10:20 PM IST

रायपुर नगर निगम की नेता प्रतिपक्ष मीनल चौबे ने रोका छेका अभियान को फेल बताया है. उनका कहना है कि रोका छेका सिर्फ कागजों पर चल रहा है. जबकि MIC सदस्य श्रीकुमार मेनन का कहना है कि बजरंगियों के कारण ही रोका छेका अभियान में परेशानी आ रही है.

what is roka cheka
रोका छेका अभियान पर मीनल चौबे का बयान

रायपुर: छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार ने परंपरागत 'रोका-छेका' अभियान की शुरुआत जोर-शोर के साथ की थी. लेकिन अब यह अभियान ठंडे बस्ते में जाता नजर आ रहा है. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की बात की जाए तो यहां भी इस अभियान की पोल खुलती नजर आ रही है. सड़कों पर आए दिन पशुओं का जमावड़ा लगा रहता है. जिन्हें हटाने निगम अमला नाकाम रहा है. सड़क हादसों की एक प्रमुख वजह आवारा पशुओं के सड़कों पर घूमने और जमावड़े को भी माना गया है. इन दुर्घटनाओं में जन-धन की हानि होती है. बावजूद इसके इन मवेशियों को हटाने शासन प्रशासन अब तक नाकाम रहा है.

क्या है रोका छेका: इस खबर में आगे बढ़ने से पहले ये जान लीजिए कि रोका छेका क्या है. रोका छेका पुराने समय से ग्रामीण जिंदगी का अभिन्न हिस्सा रहा है. खरीफ फसल की बोआई के बाद फसल की सुरक्षा के लिए पशुधन को गोशालाओं में रखने की प्रथा रही है. ताकि मवेशी खेतों में न जा पाए और फसल सुरक्षित रहे. मवेशियों को संरक्षित करना, फसलों को मवेशियों से बचाना और गोबर से कुदरती खाद बनाना इसका मुख्य उद्देश्य है.

छत्तीसगढ़ में दम तोड़ता 'रोका-छेका अभियान'


सिर्फ कागजों में ही दिखता है अभियान: रोका छेका जानने के बाद वापस हम अपने मुद्दे पर आते हैं. दरअसल रायपुर नगर निगम की नेता प्रतिपक्ष मीनल चौबे का कहना है कि " न रोका - न छेका. ये सिर्फ कागजों में दिखता है. 'रोक-छेका' का अभियान लगातार जारी रहना था. लेकिन ये अभियान बंद पड़ा हुआ है. किसी भी अभियान की शुरुआत करने पर उसके लिए व्यवस्था देखी जाती है, मैन पावर देखा जाता है. उसके बाद अभियान की शुरुआत की जाती है. अभी वर्तमान में जो मेन पावर हैं उनको जो काम दिया गया है वो उसी काम को नहीं कर पा रहे हैं तो अतिरिक्त काम वे कैसे करेंगे".

स्मार्ट-सिटी' की जगह बना दिया 'कचरा-सिटी': मीनल चौबे का आरोप है कि रायपुर को 'स्मार्ट-सिटी' की जगह इसे कचरा-सिटी' कर दिया गया है. सिर्फ पैसे को बहाया जा रहा है. अधिकारी-कर्मचारियों की मिलीभगत चल रही है. ठेकेदार को प्रॉफिट हो रहा है. जनता को कुछ नसीब नहीं हो रहा है.

गौठानों के प्रबंधन के लिए 24.41 करोड़ रुपए की सहायता, CM बघेल ने किया रोका-छेका अभियान का शुभारंभ

लगातार जारी है 'रोका-छेका' अभियान: नगर निगम के एमआईसी सदस्य श्रीकुमार मेनन का कहना है कि "रोका-छेका अभियान लगातार जारी है. जहां से भी मवेशियों के खुले में होने या सड़कों पर होने की जानकारी मिलती है. वहां निगम अमला जाकर उन मवेशियों को वहां से हटाता है. सिर्फ रविवार को अभियान नहीं चलाया जाता है. बाकी पूरे दिन लगातार ये अभीयान जारी रहता है".

गोठानो में पशुओं की संख्या ज्यादा होने से थोड़ी परेशानी: कर्मचारियों की कमी को श्रीकुमार मेनन ने सिरे से नकार दिया है. उनका कहना है कि "निगम के पास 'रोका-छेका' अभियान के लिए कर्मचारियों की कमी नहीं है. यह जरूर है कि गौठानों में मवेशियों की ज्यादा संख्या होने के कारण दिक्कत जरूर आ रही है. मवेशियों के मालिकों को भी बोला गया है कि वे अपने पशुओं को रखने की उचित व्यवस्था करें".

छत्तीसगढ़ में गोबर से 'सोना' बना रहीं महिलाएं?

बजरंग दल की वजह से रोका-छेका अभियान में परेशानी: मेनन ने कहा कि "निगम अमले को कहा गया है कि जहां से भी शिकायतें मिलती है वहां जाएं और पशुओं को पकड़कर लाए. लेकिन कुछ जगह पर बजरंग दल की वजह से निगम कर्मियों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. निगम कर्मी जब गायों को लेकर जाते हैं तो बजरंग दल और कुछ लोग मिलकर उन गायों को जबरदस्ती छुड़ाने की कोशिश करते हैं. इस वजह से कई जगहों पर कर्मचारियों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है".

रायपुर: छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार ने परंपरागत 'रोका-छेका' अभियान की शुरुआत जोर-शोर के साथ की थी. लेकिन अब यह अभियान ठंडे बस्ते में जाता नजर आ रहा है. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की बात की जाए तो यहां भी इस अभियान की पोल खुलती नजर आ रही है. सड़कों पर आए दिन पशुओं का जमावड़ा लगा रहता है. जिन्हें हटाने निगम अमला नाकाम रहा है. सड़क हादसों की एक प्रमुख वजह आवारा पशुओं के सड़कों पर घूमने और जमावड़े को भी माना गया है. इन दुर्घटनाओं में जन-धन की हानि होती है. बावजूद इसके इन मवेशियों को हटाने शासन प्रशासन अब तक नाकाम रहा है.

क्या है रोका छेका: इस खबर में आगे बढ़ने से पहले ये जान लीजिए कि रोका छेका क्या है. रोका छेका पुराने समय से ग्रामीण जिंदगी का अभिन्न हिस्सा रहा है. खरीफ फसल की बोआई के बाद फसल की सुरक्षा के लिए पशुधन को गोशालाओं में रखने की प्रथा रही है. ताकि मवेशी खेतों में न जा पाए और फसल सुरक्षित रहे. मवेशियों को संरक्षित करना, फसलों को मवेशियों से बचाना और गोबर से कुदरती खाद बनाना इसका मुख्य उद्देश्य है.

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सिर्फ कागजों में ही दिखता है अभियान: रोका छेका जानने के बाद वापस हम अपने मुद्दे पर आते हैं. दरअसल रायपुर नगर निगम की नेता प्रतिपक्ष मीनल चौबे का कहना है कि " न रोका - न छेका. ये सिर्फ कागजों में दिखता है. 'रोक-छेका' का अभियान लगातार जारी रहना था. लेकिन ये अभियान बंद पड़ा हुआ है. किसी भी अभियान की शुरुआत करने पर उसके लिए व्यवस्था देखी जाती है, मैन पावर देखा जाता है. उसके बाद अभियान की शुरुआत की जाती है. अभी वर्तमान में जो मेन पावर हैं उनको जो काम दिया गया है वो उसी काम को नहीं कर पा रहे हैं तो अतिरिक्त काम वे कैसे करेंगे".

स्मार्ट-सिटी' की जगह बना दिया 'कचरा-सिटी': मीनल चौबे का आरोप है कि रायपुर को 'स्मार्ट-सिटी' की जगह इसे कचरा-सिटी' कर दिया गया है. सिर्फ पैसे को बहाया जा रहा है. अधिकारी-कर्मचारियों की मिलीभगत चल रही है. ठेकेदार को प्रॉफिट हो रहा है. जनता को कुछ नसीब नहीं हो रहा है.

गौठानों के प्रबंधन के लिए 24.41 करोड़ रुपए की सहायता, CM बघेल ने किया रोका-छेका अभियान का शुभारंभ

लगातार जारी है 'रोका-छेका' अभियान: नगर निगम के एमआईसी सदस्य श्रीकुमार मेनन का कहना है कि "रोका-छेका अभियान लगातार जारी है. जहां से भी मवेशियों के खुले में होने या सड़कों पर होने की जानकारी मिलती है. वहां निगम अमला जाकर उन मवेशियों को वहां से हटाता है. सिर्फ रविवार को अभियान नहीं चलाया जाता है. बाकी पूरे दिन लगातार ये अभीयान जारी रहता है".

गोठानो में पशुओं की संख्या ज्यादा होने से थोड़ी परेशानी: कर्मचारियों की कमी को श्रीकुमार मेनन ने सिरे से नकार दिया है. उनका कहना है कि "निगम के पास 'रोका-छेका' अभियान के लिए कर्मचारियों की कमी नहीं है. यह जरूर है कि गौठानों में मवेशियों की ज्यादा संख्या होने के कारण दिक्कत जरूर आ रही है. मवेशियों के मालिकों को भी बोला गया है कि वे अपने पशुओं को रखने की उचित व्यवस्था करें".

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बजरंग दल की वजह से रोका-छेका अभियान में परेशानी: मेनन ने कहा कि "निगम अमले को कहा गया है कि जहां से भी शिकायतें मिलती है वहां जाएं और पशुओं को पकड़कर लाए. लेकिन कुछ जगह पर बजरंग दल की वजह से निगम कर्मियों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. निगम कर्मी जब गायों को लेकर जाते हैं तो बजरंग दल और कुछ लोग मिलकर उन गायों को जबरदस्ती छुड़ाने की कोशिश करते हैं. इस वजह से कई जगहों पर कर्मचारियों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है".

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