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छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य व्यवस्था बेपटरी : रायपुर में 26% नवजात की मौत, जगदलपुर में हर माह दम तोड़ रहे 60 बच्चे

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Published : Oct 18, 2021, 4:22 PM IST

Updated : Oct 18, 2021, 10:40 PM IST

छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य व्यवस्था वेंटीलेटर पर है. सूबे के मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पतालों में हो रही नवजात की मौत के आंकड़े बड़े भयावह हैं. रायपुर के जिला अस्पताल में हर महीने करीब 26 प्रतिशत नवजात की मौत हर माह हो जाती है. वहीं जगदलपुर के डिमरापाल मेडिकल कॉलेज में औसतन हर महीने 50 से 60 बच्चों की मौत हो जाती है. वहीं सितंबर में 79 नवजात ने यहां दम तोड़ दिया था.

Disrupted health system in hospitals
अस्पतालों में बेपटरी हुई स्वास्थ्य व्यवस्था

रायपुर : प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य व्यवस्था बेपटरी हो चुकी है. इसी का नतीजा रहा कि अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज (Ambikapur Medical College) के एसएनसीयू में बीते शनिवार को हुई 7 बच्चों की मौत हो गई. इसके बाद आनन-फानन में स्वास्थ्य मंत्रालय (Ministry of Health) की ओर से प्रदेश के सभी अस्पतालों में अलर्ट जारी कर दिया गया. सूबे में जारी विभागीय अलर्ट के बावजूद प्रदेश के अलग-अलग जिलों के अस्पतालों में स्वास्थ्य व्यवस्था की आखिर हकीकत क्या है, आइये डालते हैं एक नजर ईटीवी भारत की टीम के हॉस्पिटल रियालिटी चेक पर....

रायपुर में हो रही बच्चों की मौत, चिंता का विषय

राजधानी रायपुर में बच्चों की मौत (Children Died in Raipur) एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है. ताजा आंकड़ों के अनुसार बात करें तो हर महीने रायपुर के जिला अस्पताल में भर्ती होने वाले बच्चों में 26 प्रतिशत बच्चों की मौत (26 Percent of Children Die Every Month in Raipur District Hospital) होती है. ताजा आंकड़ों पर गौर करें तो जिला अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचने वाले 100 बच्चों में कम से कम 26 बच्चों की मौत हो रही है. वहीं विभाग प्रभारी का कहना है क्रिटिकल हालत में बच्चों को रेफर करने की वजह से इतनी ज्यादा मोटिलिटी रेट (Motility Rate) देखने को मिल रही है.

गंभीर स्थिति में लाए जाते हैं बच्चे, इसलिए उन्हें बचाना मुश्किल : ओंकार

इधर, शिशु रोग विभाग के प्रभारी डॉक्टर ओंकार खंडेलवाल ने बताया कि ग्लोबल स्टैंडर्ड और इंटरनेशनल स्टैंडर्ड (Global Standard and International Standard) की बात की जाए तो हमारे यहां बच्चों की मौत ज्यादा होती है. लेकिन दूसरे मेडिकल कॉलेजेज की तुलना की जाए तो हमारे यहां बच्चों की मौत कम होती है. जब हमने यह विभाग शुरू किया था तो हर महीने 50 प्रतिशत बच्चों की मौत होती थी, लेकिन नई तकनीकों को अपनाकर और विभाग में इंप्रूवमेंट कर हमने मोटिलिटी रेट को हर साल कम किया है. अभी मौजूदा स्थिति में 26 प्रतिशत बच्चों की मौत हर महीने होती है.

जगदलपुर में बेपरवाह है जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग

बस्तर जिले के शहीद महेंद्र कर्मा डिमरापाल मेडिकल कॉलेज (Shaheed Mahendra Karma Dimrapal Medical College) की स्थिति काफी चिंताजनक है. डिमरापाल मेडिकल कॉलेज में औसतन हर माह 50 से 60 बच्चों की मौत होती है. बीते सितंबर माह में आंकड़े और भी भयानक थे, जिसमें 79 नवजात ने इलाज के अभाव और अन्य कारणों से दम तोड़ दिया. यहां के शिशु विशेषज्ञ डीएम मंडावी ने बताया कि डिमरापाल मेडिकल कॉलेज में हर महीने लगातार नवजात शिशुओं की मौत के आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं. खासकर तीन कारणों से नवजात बच्चों की मौत हो रही है, जिसमें पहली वजह इंफेक्शन है. बड़ी संख्या में नवजात इंफेक्शन का शिकार हो रहे हैं. समय से पहले प्रसव होने की वजह से भी कई बच्चों की मौत हो रही है. जबकि तीसरी वजह डिलीवरी के दौरान सही समय पर अस्पताल नहीं पहुंचने की वजह से बच्चों की मौत होती है.

बिलासपुर में अस्पतालों में एक माह में 14 गर्भवती, 42 बच्चों की मौत

बिलासपुर में स्वास्थ्य व्यवस्था दयनीय हो गई है. अस्पतालों में कहीं डॉक्टर नहीं हैं तो कहीं सभी सुविधाएं होने के बावजूद जच्चा-बच्चा को बचा पाने में स्वास्थ्य विभाग नाकाम है. जिला अस्पताल और सिम्स मेडिकल कॉलेज (District Hospital and Sims Medical College) में कई मौतें हुई हैं, जिसके स्वास्थ्य अधिकारी कई कारण बता रहे हैं. इसको लेकर सीएमएचओ डॉ प्रमोद महाजन ने बताया कि एक महीने के भीतर जिले के अस्पतालों में 14 गर्भवती और जच्चा महिलाओं की मौत हुई है. जबकि एक महीने से चार महीने तक के 42 बच्चों की भी मौत हुई है. इसमें सिम्स मेडिकल कॉलेज के मौतों के आंकड़े शामिल नहीं है.

कोरबा : मामला बिगड़ने के बाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल किया जाता है रेफर

कोरबा का यह मेडिकल कॉलेज अस्पताल पूर्व में जिला अस्पताल की तरह ही संचालित होता रहा है. यहां आने वाले मरीज आमतौर पर बेहद निचले तबके के होते हैं. जब इलाज के दौरान मामले बिगड़ते हैं, तब उन्हें मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ही रेफर किया जाता है. इस लिहाज से मेडिकल कॉलेज अस्पताल में औसतन 5 से 10 नवजातों को एसएनसीयू वार्ड में प्रतिदिन भर्ती किया जाता है. यहां प्रसूतियों की स्थिति भी ऐसी ही है. कई बार तो 24 घंटे के भीतर 12 से 15 डिलीवरी भी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हुए हैं. लेकिन गंभीर अवस्था में होने या इंफेक्शन फैलने पर ही प्रसव के बाद नवजात को एसएनसीयू वार्ड में भर्ती किया जाता है.

सरगुजा में एक वार्डेनर पर तीन-तीन बच्चों की देख-रेख का लोड

सरगुजा में मेडिकल कॉलेज अस्पताल के एसएससीयू के रियालिटी चेक में सामने आया कि यहां एक ही वार्डेनर पर तीन-तीन बच्चों की देख-रेख का जिम्मा है. इस कारण बच्चों में सक्रमण के खतरे का अंदेशा बना रहता है. ये बात मरीज ही नहीं बल्कि अस्पताल के डॉक्टर भी स्वीकर करते हैं कि वार्डेनर पर काफी लोड है. हालांकि यहां लोग इलाज को लेकर संतुष्ट दिखे.

रायपुर : प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य व्यवस्था बेपटरी हो चुकी है. इसी का नतीजा रहा कि अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज (Ambikapur Medical College) के एसएनसीयू में बीते शनिवार को हुई 7 बच्चों की मौत हो गई. इसके बाद आनन-फानन में स्वास्थ्य मंत्रालय (Ministry of Health) की ओर से प्रदेश के सभी अस्पतालों में अलर्ट जारी कर दिया गया. सूबे में जारी विभागीय अलर्ट के बावजूद प्रदेश के अलग-अलग जिलों के अस्पतालों में स्वास्थ्य व्यवस्था की आखिर हकीकत क्या है, आइये डालते हैं एक नजर ईटीवी भारत की टीम के हॉस्पिटल रियालिटी चेक पर....

रायपुर में हो रही बच्चों की मौत, चिंता का विषय

राजधानी रायपुर में बच्चों की मौत (Children Died in Raipur) एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है. ताजा आंकड़ों के अनुसार बात करें तो हर महीने रायपुर के जिला अस्पताल में भर्ती होने वाले बच्चों में 26 प्रतिशत बच्चों की मौत (26 Percent of Children Die Every Month in Raipur District Hospital) होती है. ताजा आंकड़ों पर गौर करें तो जिला अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचने वाले 100 बच्चों में कम से कम 26 बच्चों की मौत हो रही है. वहीं विभाग प्रभारी का कहना है क्रिटिकल हालत में बच्चों को रेफर करने की वजह से इतनी ज्यादा मोटिलिटी रेट (Motility Rate) देखने को मिल रही है.

गंभीर स्थिति में लाए जाते हैं बच्चे, इसलिए उन्हें बचाना मुश्किल : ओंकार

इधर, शिशु रोग विभाग के प्रभारी डॉक्टर ओंकार खंडेलवाल ने बताया कि ग्लोबल स्टैंडर्ड और इंटरनेशनल स्टैंडर्ड (Global Standard and International Standard) की बात की जाए तो हमारे यहां बच्चों की मौत ज्यादा होती है. लेकिन दूसरे मेडिकल कॉलेजेज की तुलना की जाए तो हमारे यहां बच्चों की मौत कम होती है. जब हमने यह विभाग शुरू किया था तो हर महीने 50 प्रतिशत बच्चों की मौत होती थी, लेकिन नई तकनीकों को अपनाकर और विभाग में इंप्रूवमेंट कर हमने मोटिलिटी रेट को हर साल कम किया है. अभी मौजूदा स्थिति में 26 प्रतिशत बच्चों की मौत हर महीने होती है.

जगदलपुर में बेपरवाह है जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग

बस्तर जिले के शहीद महेंद्र कर्मा डिमरापाल मेडिकल कॉलेज (Shaheed Mahendra Karma Dimrapal Medical College) की स्थिति काफी चिंताजनक है. डिमरापाल मेडिकल कॉलेज में औसतन हर माह 50 से 60 बच्चों की मौत होती है. बीते सितंबर माह में आंकड़े और भी भयानक थे, जिसमें 79 नवजात ने इलाज के अभाव और अन्य कारणों से दम तोड़ दिया. यहां के शिशु विशेषज्ञ डीएम मंडावी ने बताया कि डिमरापाल मेडिकल कॉलेज में हर महीने लगातार नवजात शिशुओं की मौत के आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं. खासकर तीन कारणों से नवजात बच्चों की मौत हो रही है, जिसमें पहली वजह इंफेक्शन है. बड़ी संख्या में नवजात इंफेक्शन का शिकार हो रहे हैं. समय से पहले प्रसव होने की वजह से भी कई बच्चों की मौत हो रही है. जबकि तीसरी वजह डिलीवरी के दौरान सही समय पर अस्पताल नहीं पहुंचने की वजह से बच्चों की मौत होती है.

बिलासपुर में अस्पतालों में एक माह में 14 गर्भवती, 42 बच्चों की मौत

बिलासपुर में स्वास्थ्य व्यवस्था दयनीय हो गई है. अस्पतालों में कहीं डॉक्टर नहीं हैं तो कहीं सभी सुविधाएं होने के बावजूद जच्चा-बच्चा को बचा पाने में स्वास्थ्य विभाग नाकाम है. जिला अस्पताल और सिम्स मेडिकल कॉलेज (District Hospital and Sims Medical College) में कई मौतें हुई हैं, जिसके स्वास्थ्य अधिकारी कई कारण बता रहे हैं. इसको लेकर सीएमएचओ डॉ प्रमोद महाजन ने बताया कि एक महीने के भीतर जिले के अस्पतालों में 14 गर्भवती और जच्चा महिलाओं की मौत हुई है. जबकि एक महीने से चार महीने तक के 42 बच्चों की भी मौत हुई है. इसमें सिम्स मेडिकल कॉलेज के मौतों के आंकड़े शामिल नहीं है.

कोरबा : मामला बिगड़ने के बाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल किया जाता है रेफर

कोरबा का यह मेडिकल कॉलेज अस्पताल पूर्व में जिला अस्पताल की तरह ही संचालित होता रहा है. यहां आने वाले मरीज आमतौर पर बेहद निचले तबके के होते हैं. जब इलाज के दौरान मामले बिगड़ते हैं, तब उन्हें मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ही रेफर किया जाता है. इस लिहाज से मेडिकल कॉलेज अस्पताल में औसतन 5 से 10 नवजातों को एसएनसीयू वार्ड में प्रतिदिन भर्ती किया जाता है. यहां प्रसूतियों की स्थिति भी ऐसी ही है. कई बार तो 24 घंटे के भीतर 12 से 15 डिलीवरी भी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हुए हैं. लेकिन गंभीर अवस्था में होने या इंफेक्शन फैलने पर ही प्रसव के बाद नवजात को एसएनसीयू वार्ड में भर्ती किया जाता है.

सरगुजा में एक वार्डेनर पर तीन-तीन बच्चों की देख-रेख का लोड

सरगुजा में मेडिकल कॉलेज अस्पताल के एसएससीयू के रियालिटी चेक में सामने आया कि यहां एक ही वार्डेनर पर तीन-तीन बच्चों की देख-रेख का जिम्मा है. इस कारण बच्चों में सक्रमण के खतरे का अंदेशा बना रहता है. ये बात मरीज ही नहीं बल्कि अस्पताल के डॉक्टर भी स्वीकर करते हैं कि वार्डेनर पर काफी लोड है. हालांकि यहां लोग इलाज को लेकर संतुष्ट दिखे.

Last Updated : Oct 18, 2021, 10:40 PM IST
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