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शूटिंग के समय शेड में रही पूरी यूनिट, सांप-तेंदुए की आहट के बीच 34 दिन में पूरी हुई 'भूलन द मेज': मनोज वर्मा

भूलन द मेज (Bhulan The Maze) फिल्म के निर्माता-निर्देशक मनोज वर्मा (Producer Director Manoj Verma) के साथ ETV भारत की खास बातचीत.

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निर्माता निर्देशक मनोज वर्मा के साथ बातचीत
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Published : Oct 24, 2021, 9:47 AM IST

Updated : Oct 24, 2021, 11:56 AM IST

रायपुर : 25 अक्टूबर को दिल्ली में होने वाले राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में छत्तीसगढ़ में बनी फिल्म 'भूलन द मेज' (Bhulan The Maze) को भी राष्ट्रीय पुरस्कार दिया जाएगा. इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक मनोज वर्मा को यह पुरस्कार उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू प्रदान करेंगे. पुरस्कार ग्रहण करने दिल्ली रवाना होने से पहले हमने मनोज वर्मा जी से खास बातचीत की.

निर्माता निर्देशक मनोज वर्मा के साथ बातचीत

सवाल- 'भूलन द मेज' पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म है, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है. हम इस फिल्म के निर्देशक मनोज वर्मा जी (Producer Director Manoj Verma) से फिल्म के विषय में तो बात करेंगे ही, पहले जानते हैं कि वे किस तरह फिल्म जगत से जुड़े ?

जवाब- सबसे पहले मेरा स्टूडियो था. शौकिया तौर पर मैंने एक फिल्म बनाकर अपने कैरियर की शुरुआत की थी. बाद में प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ी फिल्मों के निर्देशक सतीश जैन जी की एक फिल्म को एडिट करने का मौका मिला. उस दौरान उन्होंने कहा कि मेरे अंदर डायरेक्टर का सेंस है और मुझे उसी दिशा में काम करना चाहिए. इसके बाद मैंने डायरेक्शन क्षेत्र में काम करना शुरू किया.

सवाल- क्या अब छत्तीसगढ़ी फिल्म जगत के लिए फिर से एक नई शुरुआत आपने कर दी है. राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म बनाकर ?

जवाब- इस बीच में भी कई अच्छी फिल्में आईं, लेकिन जो लोग मसाला फिल्मों से हटकर छत्तीसगढ़ी फिल्म (chhattisgarhi movie) बनाना चाहते हैं, उनके लिए नई दिशा की शुरुआत हो गई है, ऐसा माना जा सकता है. ऐसी फिल्में बनाना भी चुनौतीपूर्ण है.

इस फिल्म का निर्माण साल 2016 में हुआ. इसके बाद कई फिल्म फेस्टिवल में इसे दिखाया गया. अब इसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा जा रहा है. अभी भी कमर्शियल वैल्यू की मूवी ज्यादा चल रही है, लेकिन यह फिल्म लोग पसंद करेंगे; ऐसी उम्मीद है. अब ऐसी फिल्मों का निर्माण और किया जाए या नहीं, यह अप्रैल में सिनेमाघरों में इस फिल्म को दिखाने के बाद दर्शकों से मिले रिस्पांस पर निर्भर करता है. हालांकि मैंने इस फिल्म को जुनूनी तौर पर बनाया है.

समाज में आए भटकाव से मिला 'भूलन कांदा'

सवाल - इस फिल्म की कहानी के विषय में आपने कैसे सोचा ?

जवाब - यह उपन्यास पर आधारित कहानी है. उपन्यास से स्क्रिप्ट लिखने में काफी समय लगा. कोशिश यह भी रही कि उपन्यास की आत्मा भी नहीं मरनी चाहिए और फिल्म उपन्यास भी नहीं लगनी चाहिए. यह बड़ी चुनौती थी. इस फिल्म का कांसेप्ट मुझे यूनिक लगा, जिसके बाद मैंने इस पर काम शुरू किया.

सवाल - शूटिंग के दौरान के अनुभव के बारे में बताइए ?

जवाब - गरियाबंद के पास एक गांव है, जिसे मैंने काफी पहले देखा था. काफी साफ सुथरा था. उपन्यास में गांव का जिक्र आने के बाद मुझे उसी गांव की सबसे पहले याद आई, जिसे ढूंढते हुए हम वहां पहुंचे. ग्रामीणों ने भी काफी सहयोग किया. इस फिल्म में ग्रामीणों ने आर्टिस्ट की तरह काम किया और हमने भी उन्हें आर्टिस्टों की तरह भुगतान भी किया. एक तरह से ग्रामीण और हमारे आर्टिस्ट सभी गांव के ही हिस्से बन गए थे.

सवाल - शूटिंग के दौरान किस प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ा ?

जवाब - हमारी यूनिट को एक शेड में रहना पड़ा, जहां के पाइप में आते-जाते सांप आसानी से दिख जाते थे. तेंदुआ के आतंक की भी बात ग्रामीण करते रहते थे.

सवाल - राज्य सरकार ने भी आपको एक करोड़ रुपये देने की घोषणा की है ?

जवाब - जी हां, सरकार ने यह नीति बनाई है कि अगर आपकी फिल्म नेशनल अवार्ड लेती है तो उस फिल्म को एक करोड़ रुपये दिये जाएंगे. सरकार की इस नीति का हम स्वागत करते हैं और धन्यवाद देते हैं.

सवाल - छत्तीसगढ़ी फिल्म उद्योग से जुड़े लोगों को एक बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ता है, वह है छत्तीसगढ़ में सिनेमाघरों की कमी. कई प्रदेशों में स्थानीय फिल्मों को सिनेमाघरों में दिखाने की बाध्यता रहती है, लेकिन हमारे यहां अभी ऐसा नहीं है. इस पर क्या कहना चाहेंगे ?

जवाब - सब्सिडी के साथ और भी सिनेमाघर खोले जाने की मांग हमारी रही है. नई फिल्म नीति में शायद यह सब समाहित होगा. ऐसी उम्मीद है, लेकिन पुराने सिनेमाघरों में कम से कम साल में 100 दिन तक छत्तीसगढ़ी फिल्मों को प्रदर्शित करने की बाध्यता होनी चाहिए. शायद इसे भी फिल्म नीति में समाहित किया जाएगा.

सवाल - प्रदेश में फिल्म सिटी बनाने की भी मांग लंबे समय से की जा रही है, मगर जानकार मानते हैं कि सिर्फ फिल्म सिटी बनाने से फिल्मों का प्रमोशन नहीं हो सकता ?

जवाब - हमारे यहां नेचुरल रिसोर्सेज हैं, मगर नई फिल्म नीति आने के बाद बाहर के लोग भी हमारे यहां आकर फिल्में बनाएंगे. ऐसे में नेचुरल रिसोर्सेज की सीमा रहेगी. बाकी फिल्म सिटी से पूरी होगी, इसलिए फिल्म सिटी बने तो अच्छी बात है.

सवाल - फिल्म छैया भुइयां के सुपरहिट होने के बाद एक बाढ़ सी आ गई थी, छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्माण की. मगर अब अच्छी कहानी और स्क्रिप्ट देखकर फिल्म निर्माण करने की सोचने की जरूरत है क्या ?

जवाब - मैं आपकी बात से इत्तेफाक रखता हूं. लोग सीख कर आए. हमने समय और पैसा दोनों लगाया. नए लोग स्टडी करके आए तो अच्छी फिल्में बनेंगी. दिशा का भ्रम जरूर होता है हमारे यहां, मगर नए मुद्दे और नए विषयों पर फिल्म बनाएं तो कोई दिक्कत नहीं होगी.

सवाल - इस फिल्म उद्योग में नए आने वाले लोगों के लिए कोई संदेश ?

जवाब - जो अभी काम कर रहे हैं वे तो जानते ही हैं कि फिल्म का निर्माण किस तरीके से करना है, मगर जो नए लोग आ रहे हैं उन्हें इस फील्ड के बारे में सीखकर आना चाहिए. लिखने और तकनीक का ज्ञान भी होना चाहिए. सबसे बड़ी बात पेशेंस रखने की है, जो सबसे महत्वपूर्ण है. इस लाइन में अगर ये सभी तैयारी हो तो इससे सफलता जरूर मिलती है.

सवाल - मानिकपुरी जी के साथ काम करने का एक्सपीरियंस कैसा रहा ?

जवाब - किसी ने भी काम में कोई कमी नहीं की. चाहे फिल्म की अभिनेत्री हो या ओमकार दास मानिकपुरी हों चाहे अन्य कलाकार, सभी ने बहुत अच्छा काम किया. यही वजह है कि महज 34 दिन में इस फिल्म की शूटिंग पूरी कर ली गई.

सवाल - आपकी नई फिल्म की कोई तैयारी है ?

जवाब - दिसंबर में कमर्शियल फिल्म बनाने की तैयारी है, जिस पर मैसेज भी होगा. महिलाओं से संबंधित मैसेजेस इस फिल्म के माध्यम से दिये जाएंगे.

सवाल - बॉलीवुड में इन दिनों व्यक्ति विशेष पर आधारित फिल्में बनाने का ट्रेंड चल रहा है. क्या छत्तीसगढ़ में भी ऐसा किया जा सकता है ?

जवाब - बिल्कुल यहां भी किया जा सकता है. तीजन बाई पर बॉलीवुड वालों ने फिल्म बना ली और हम पीछे रह गए. इसी तरह फूलबासन जी की भी स्टोरी में बहुत स्ट्रगल है और आगे ऐसी फिल्में भी हम बनाएंगे.

रायपुर : 25 अक्टूबर को दिल्ली में होने वाले राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में छत्तीसगढ़ में बनी फिल्म 'भूलन द मेज' (Bhulan The Maze) को भी राष्ट्रीय पुरस्कार दिया जाएगा. इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक मनोज वर्मा को यह पुरस्कार उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू प्रदान करेंगे. पुरस्कार ग्रहण करने दिल्ली रवाना होने से पहले हमने मनोज वर्मा जी से खास बातचीत की.

निर्माता निर्देशक मनोज वर्मा के साथ बातचीत

सवाल- 'भूलन द मेज' पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म है, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है. हम इस फिल्म के निर्देशक मनोज वर्मा जी (Producer Director Manoj Verma) से फिल्म के विषय में तो बात करेंगे ही, पहले जानते हैं कि वे किस तरह फिल्म जगत से जुड़े ?

जवाब- सबसे पहले मेरा स्टूडियो था. शौकिया तौर पर मैंने एक फिल्म बनाकर अपने कैरियर की शुरुआत की थी. बाद में प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ी फिल्मों के निर्देशक सतीश जैन जी की एक फिल्म को एडिट करने का मौका मिला. उस दौरान उन्होंने कहा कि मेरे अंदर डायरेक्टर का सेंस है और मुझे उसी दिशा में काम करना चाहिए. इसके बाद मैंने डायरेक्शन क्षेत्र में काम करना शुरू किया.

सवाल- क्या अब छत्तीसगढ़ी फिल्म जगत के लिए फिर से एक नई शुरुआत आपने कर दी है. राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म बनाकर ?

जवाब- इस बीच में भी कई अच्छी फिल्में आईं, लेकिन जो लोग मसाला फिल्मों से हटकर छत्तीसगढ़ी फिल्म (chhattisgarhi movie) बनाना चाहते हैं, उनके लिए नई दिशा की शुरुआत हो गई है, ऐसा माना जा सकता है. ऐसी फिल्में बनाना भी चुनौतीपूर्ण है.

इस फिल्म का निर्माण साल 2016 में हुआ. इसके बाद कई फिल्म फेस्टिवल में इसे दिखाया गया. अब इसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा जा रहा है. अभी भी कमर्शियल वैल्यू की मूवी ज्यादा चल रही है, लेकिन यह फिल्म लोग पसंद करेंगे; ऐसी उम्मीद है. अब ऐसी फिल्मों का निर्माण और किया जाए या नहीं, यह अप्रैल में सिनेमाघरों में इस फिल्म को दिखाने के बाद दर्शकों से मिले रिस्पांस पर निर्भर करता है. हालांकि मैंने इस फिल्म को जुनूनी तौर पर बनाया है.

समाज में आए भटकाव से मिला 'भूलन कांदा'

सवाल - इस फिल्म की कहानी के विषय में आपने कैसे सोचा ?

जवाब - यह उपन्यास पर आधारित कहानी है. उपन्यास से स्क्रिप्ट लिखने में काफी समय लगा. कोशिश यह भी रही कि उपन्यास की आत्मा भी नहीं मरनी चाहिए और फिल्म उपन्यास भी नहीं लगनी चाहिए. यह बड़ी चुनौती थी. इस फिल्म का कांसेप्ट मुझे यूनिक लगा, जिसके बाद मैंने इस पर काम शुरू किया.

सवाल - शूटिंग के दौरान के अनुभव के बारे में बताइए ?

जवाब - गरियाबंद के पास एक गांव है, जिसे मैंने काफी पहले देखा था. काफी साफ सुथरा था. उपन्यास में गांव का जिक्र आने के बाद मुझे उसी गांव की सबसे पहले याद आई, जिसे ढूंढते हुए हम वहां पहुंचे. ग्रामीणों ने भी काफी सहयोग किया. इस फिल्म में ग्रामीणों ने आर्टिस्ट की तरह काम किया और हमने भी उन्हें आर्टिस्टों की तरह भुगतान भी किया. एक तरह से ग्रामीण और हमारे आर्टिस्ट सभी गांव के ही हिस्से बन गए थे.

सवाल - शूटिंग के दौरान किस प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ा ?

जवाब - हमारी यूनिट को एक शेड में रहना पड़ा, जहां के पाइप में आते-जाते सांप आसानी से दिख जाते थे. तेंदुआ के आतंक की भी बात ग्रामीण करते रहते थे.

सवाल - राज्य सरकार ने भी आपको एक करोड़ रुपये देने की घोषणा की है ?

जवाब - जी हां, सरकार ने यह नीति बनाई है कि अगर आपकी फिल्म नेशनल अवार्ड लेती है तो उस फिल्म को एक करोड़ रुपये दिये जाएंगे. सरकार की इस नीति का हम स्वागत करते हैं और धन्यवाद देते हैं.

सवाल - छत्तीसगढ़ी फिल्म उद्योग से जुड़े लोगों को एक बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ता है, वह है छत्तीसगढ़ में सिनेमाघरों की कमी. कई प्रदेशों में स्थानीय फिल्मों को सिनेमाघरों में दिखाने की बाध्यता रहती है, लेकिन हमारे यहां अभी ऐसा नहीं है. इस पर क्या कहना चाहेंगे ?

जवाब - सब्सिडी के साथ और भी सिनेमाघर खोले जाने की मांग हमारी रही है. नई फिल्म नीति में शायद यह सब समाहित होगा. ऐसी उम्मीद है, लेकिन पुराने सिनेमाघरों में कम से कम साल में 100 दिन तक छत्तीसगढ़ी फिल्मों को प्रदर्शित करने की बाध्यता होनी चाहिए. शायद इसे भी फिल्म नीति में समाहित किया जाएगा.

सवाल - प्रदेश में फिल्म सिटी बनाने की भी मांग लंबे समय से की जा रही है, मगर जानकार मानते हैं कि सिर्फ फिल्म सिटी बनाने से फिल्मों का प्रमोशन नहीं हो सकता ?

जवाब - हमारे यहां नेचुरल रिसोर्सेज हैं, मगर नई फिल्म नीति आने के बाद बाहर के लोग भी हमारे यहां आकर फिल्में बनाएंगे. ऐसे में नेचुरल रिसोर्सेज की सीमा रहेगी. बाकी फिल्म सिटी से पूरी होगी, इसलिए फिल्म सिटी बने तो अच्छी बात है.

सवाल - फिल्म छैया भुइयां के सुपरहिट होने के बाद एक बाढ़ सी आ गई थी, छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्माण की. मगर अब अच्छी कहानी और स्क्रिप्ट देखकर फिल्म निर्माण करने की सोचने की जरूरत है क्या ?

जवाब - मैं आपकी बात से इत्तेफाक रखता हूं. लोग सीख कर आए. हमने समय और पैसा दोनों लगाया. नए लोग स्टडी करके आए तो अच्छी फिल्में बनेंगी. दिशा का भ्रम जरूर होता है हमारे यहां, मगर नए मुद्दे और नए विषयों पर फिल्म बनाएं तो कोई दिक्कत नहीं होगी.

सवाल - इस फिल्म उद्योग में नए आने वाले लोगों के लिए कोई संदेश ?

जवाब - जो अभी काम कर रहे हैं वे तो जानते ही हैं कि फिल्म का निर्माण किस तरीके से करना है, मगर जो नए लोग आ रहे हैं उन्हें इस फील्ड के बारे में सीखकर आना चाहिए. लिखने और तकनीक का ज्ञान भी होना चाहिए. सबसे बड़ी बात पेशेंस रखने की है, जो सबसे महत्वपूर्ण है. इस लाइन में अगर ये सभी तैयारी हो तो इससे सफलता जरूर मिलती है.

सवाल - मानिकपुरी जी के साथ काम करने का एक्सपीरियंस कैसा रहा ?

जवाब - किसी ने भी काम में कोई कमी नहीं की. चाहे फिल्म की अभिनेत्री हो या ओमकार दास मानिकपुरी हों चाहे अन्य कलाकार, सभी ने बहुत अच्छा काम किया. यही वजह है कि महज 34 दिन में इस फिल्म की शूटिंग पूरी कर ली गई.

सवाल - आपकी नई फिल्म की कोई तैयारी है ?

जवाब - दिसंबर में कमर्शियल फिल्म बनाने की तैयारी है, जिस पर मैसेज भी होगा. महिलाओं से संबंधित मैसेजेस इस फिल्म के माध्यम से दिये जाएंगे.

सवाल - बॉलीवुड में इन दिनों व्यक्ति विशेष पर आधारित फिल्में बनाने का ट्रेंड चल रहा है. क्या छत्तीसगढ़ में भी ऐसा किया जा सकता है ?

जवाब - बिल्कुल यहां भी किया जा सकता है. तीजन बाई पर बॉलीवुड वालों ने फिल्म बना ली और हम पीछे रह गए. इसी तरह फूलबासन जी की भी स्टोरी में बहुत स्ट्रगल है और आगे ऐसी फिल्में भी हम बनाएंगे.

Last Updated : Oct 24, 2021, 11:56 AM IST
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