रायपुर: छत्तीसगढ़ में अलसी की खेती सैकड़ों सालों से की जा रही है. छत्तीसगढ़ में किसान पहले 1 से सवा लाख हेक्टर में इस फसल को उगाते थे. लेकिन आज धीरे धीरे इसकी खेती कम होने लगी और आज 45 से 50 हेक्टेयर में छत्तीसगढ़ में इसकी खेती की जाती है. रायपुर के कृषि विश्वविद्यालय में अलसी के पौधे के तने से रेशा बनाया जा रहा है. जिससे मजबूत और क्वॉलिटी लीलन के थ्रेड से ज्यादा अच्छी है. अलसी के पौधे से बनाए जा रहे थ्रेड से अब कपड़े भी बनाए जा रहे हैं. जिसकी क्वॉलिटी भी दूसरे थ्रेड के कपड़ो के मुकाबले काफी अच्छी रहती है. प्रदेश के बेमेतरा और जांजगीर चांपा में बुनकरों के माध्यम से थ्रेड के माध्यम से कपड़े भी बनाए जा रहे है. (Cloth being made from linseed plant)
अलसी के पौधा से रेशे निकल कपड़ा बनाने से किसानों को दोगुना फायदा: कृषि वैज्ञानिक एमपी ठाकुर ने कहा "अलसी का पौधा एक ऑयल सीड फसल है. अलसी का पौधा 90 से 100 दिन में पक्का तैयार हो जाती है. अलसी की फसल रबी की फसल होती है और इसकी पत्तियां छोटी होती है. छत्तीसगढ़ में किसान पहले 1 से सवा लाख हेक्टेयर में इस फसल को उगाते थे. लेकिन आज धीरे धीरे इसकी खेती कम होने लगी. आज 45 से 50 हेक्टेयर में छत्तीसगढ़ में इसकी खेती की जाती है. अलसी के खेती से जहां किसानों को एक हेक्टेयर में 15 हजार का फायदा होता है. अगर किसान अलसी के बीज के साथ-साथ इसके रेशे से कपड़े भी बनाता है तो एक हेक्टेयर में किसानों का फायदा दुगना हो जाएगा यानी 30 हजार तक हो जाएगा".
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अलसी के बीजों में पाया जाता है ओमेगा: एमपी ठाकुर ने बताया कि "अलसी आज के डेट में बहुत महत्वपूर्ण फसल है. अलसी के बीज की कीमत बाजार में ₹7000 प्रति क्विंटल है. अलसी में ओमेगा नाम का एक फैटी एसिड पाया जाता है. जिसका इसका महत्व काफी बढ़ गया है. पहले अलसी के तेल का इंपॉर्टेंस बहुत सारे लोगों को नहीं पता था. इस वजह से इसका इस्तेमाल कम होता था. लेकिन अब अलसी से चॉकलेट बनाए जा रहे हैं. अलसी का इस्तेमाल माउथ फ्रेशनर, अलसी के लड्डू और चटनी बनाने में किया जाता है. ऐसे ही अनेक तरह के इस्तेमाल अलसी के बीज के हो रहे हैं".
अलसी के तने से बनाया जाता है रेशा: "अलसी में हमारे वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसे किस्मों को आईडेंटिफाई किया. जिनकी लंबाई अलसी के दूसरे पौधों के मुकाबले थोड़ी ज्यादा होती है. इसका तना 80 से 90 सेंटीमीटर तक लंबा होता है. छत्तीसगढ़ राज्य में अलसी की फसल मुख्य रूप से अलसी के बीज के लिए ही उगाई जाती है. वही देश के अन्य राज्यों में अलसी की फसल रेशा के लिए उगाई जाती है.
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बेमेतरा और जांजगीर चांपा में बनाया जा रहा अलसी के रेशे से कपड़ा: छत्तीसगढ़ में दो चीजों के लिए अलसी की खेती की जाती है. पहला अलसी के बीज के लिए दूसरा इसका जो तना होता है उससे रेशे निकालने के लिए. अलसी के पौधे से 80 से 90 सेंटीमीटर का जो तना होता है. उससे प्रोसेस कर रेशे तैयार किए जाते हैं. हमारे "कृषि वैज्ञानिक के पी वर्मा" ने यह आविष्कार किया है। के पी वर्मा ने यह सोचा कि अलसी के बीज निकालने के बाद अलसी का पौधा का कोई इस्तेमाल नहीं होता तो क्यों ना इसके पौधे से रिश्ते तैयार कर उस रेशे से कपड़े बनाया जाए। भारत में इस तरीके का उपयोग बहुत बार हुआ है लेकिन यह लार्ज स्केल पर कभी सक्सेस नहीं हो पाया है। लेकिन कृषि वैज्ञानिक के.पी वर्मा ने बुनकरों के माध्यम से इसे लार्ज स्केल पर शुरू किया है और यह काफी सक्सेस भी है। बेमेतरा और जांजगीर-चांपा जैसे जिलों में आज अलसी के पौधे के रेशे निकालकर उसका थ्रेड बनाकर कपड़े बनाए जा रहे हैं।
:- अलसी के पौधे से थ्रेड और कपड़े बनाने का तरीका
• अलसी की फसल रबी की फसल होती है जो 90 से 100 दिन में तैयार हो जाती है।
• अलसी के पौधे से बीज और तने को अलग करना।
• अलसी के बीच का 80 से 90 सेंटिमेंटर का तना रेशे के लिए सबसे अच्छा होता है।
• अलसी के तने को साफ करके उसका बंडल बनाकर उसे कैमिकल में दाल कर सड़ाया जाता है।
• 4 से 5 दिन तने के सड़ जाने के बाद उसे धूप में सुखाया जाता है।
• उसके बाद मशीन के माध्यम से तने को गूथ कर रस्सी बनाई जाती है और फिर उस रस्सी से कपड़े बनाए जाते है।
• अलसी के पौधे से बनी रस्सी काफी मजबूत होती है।
• अलसी के पौधे से बनी रस्सी बाजार में मिलने वाले लीलन के कपड़े की कीमत से ज्यादा महंगी और शुद्ध होती है।
• अलसी के पौधे से बनी थ्रेड का कपड़ा गर्मी के समय भी शरीर को ज्यादा गर्मी नहीं महसूस होने देता है।