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बस्तर के पौधे ने बदली हजारों महिलाओं की जिंदगी

बस्तर का एक पौधा यहां रहने वाली आदिवासी महिलाओं की जिंदगी संवार रहा है. आज महिलाएं इस पौधे के जरिए अपना जीवन संवार रही (Bastar plant changed the lives of thousands of women) हैं.

Bastar plant changed the lives of thousands of women
बस्तर के पौधे ने बदली हजारों महिलाओं की जिंदगी
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Published : Jun 20, 2022, 3:07 PM IST

Updated : Jun 21, 2022, 12:50 AM IST

रायपुर : आधुनिकता की ओर तेजी से दौड़ती भागती इस दुनिया में धीरे-धीरे लोग अपनी संस्कृति और सभ्यता को पीछे छोड़ते चले जा रहे हैं. लेकिन आज भी छत्तीसगढ़ के आदिवासी वनवासी अपनी सभ्यता और संस्कृति को बनाए रखे हैं. ईटीवी भारत आज अपने दर्शकों को ऐसी एक महिला "शामली बघेल" के बारे में बताने जा रहा है.जो एक जंगली पौधे "शीसल" के रेशे से गुड्डा-गुड़िया सजावटी सामान बनाकर बाजारों में बेचने का काम कर रहीं (shisal plant of bastar) हैं. शामली बघेल रहने वाली तो बस्तर की है लेकिन प्रदेश भर में होने वाले आयोजनों में जाकर स्टॉल लगाकर जंगली पौधे के रेशों से बने गुड्डे गुड़िया और सजावटी सामानों को बेचती हैं. ईटीवी भारत ने शामली बघेल से खास बातचीत की आइए जानते हैं उन्होंने क्या कहा

बस्तर के पौधे ने बदली हजारों महिलाओं की जिंदगी
कैसी है कला : कलाकार शामली बघेल (Bastar Shamli Baghel) ने बताया कि " छत्तीसगढ़ के बस्तर के जंगलों में वन विभाग ने "शीसल" का पौधा लगाया है. जो दिखने में एलोवेरा के पौधे जैसा लगता है. लेकिन यह पौधा जंगलों में पाया जाता है. वन विभाग इस पौधे की प्रोसेसिंग कर इसके रेशे से रस्सी बनाता है. जिससे स्व सहायता समूह की महिलाओं द्वारा खरीदा जाता है. इसी रेशे का उपयोग कर गुड्डे गुड़िया या सजावटी सामान बनाए जाते हैं. यह रेशा काफी मजबूत होता है और आसानी से टूटता भी नहीं"

शीसल से बनाई जाती है रस्सी : शामली बघेल ने बताया कि " जब पौधा थोड़ा बड़ा हो जाता है उसके बाद इस पौधे को तोड़कर प्रोसेसिंग के लिए लाया जाता है. इस पौधे की प्रोसेसिंग कर सबसे पहले इसमें से कचरा अलग किया जाता है. साफ करने के बाद पौधे से रस्सी बनाने का काम शुरू होता है. सबसे पहले पौधे को छिला जाता है. पौधे को पतला पतला छील कर रेशा निकल जाता है. रेशा निकाले के बाद फिर उसे पानी में धोकर सुखाया जाता है. सूख जाने के बाद रेशे से रस्सी बनाई जाती है.रस्सी बनाने के बाद उसे किलो के हिसाब से बेचा जाता है.''



रेशे से क्या-क्या बनते हैं : कलाकार शामली बघेल ने बताया " स्व सहायता समूह (Bastar Women Self Help Group) की महिलाएं उस रेशे को खरीद कर उसे फिर अलग-अलग कलर में डालकर रस्सी को रंगती है. जिसके बाद उस रस्सी से गुड्डा गुड़िया , सजावटी सामान , बैग , डोर मेट , झूमर सब बनाए जाते हैं. जंगली पौधे के रेशे से बना धागा इतना मजबूत होता है कि हाथ से खींचने पर भी यह धागा नहीं टूटता है. बाजार में हम सामानों को मार्केट के हिसाब से बेचते हैं. छोटे गुड्डा गुड़िया को ₹10 से लेकर ₹100 तक इसके बाद बैक डोर मेट सजावटी सामानों को 200 से लेकर 600 तक हम बेचते हैं."



स्व-सहायता समूह को रोजगार : शामली बघेल ने बताया " पिछले कई सालों से हम इस तरह के से सजावटी सामान बनाते चले आ रहे हैं. कुछ समय पहले बाजारों में इसकी डिमांड काफी घट गई थी. लेकिन अब धीरे-धीरे लोग अपनी संस्कृति और सभ्यता को पसंद कर रहे हैं . इस तरीके से हाथ से बने सामानों की डिमांड अब धीरे-धीरे बाजारों में बढ़ रही है. बस्तर में स्व सहायता समूह की कई महिलाओं और बच्चियों को हम यह बनाना सिखाते हैं ताकि वह अपना रोजगार खुद जनरेट कर सके."

रायपुर : आधुनिकता की ओर तेजी से दौड़ती भागती इस दुनिया में धीरे-धीरे लोग अपनी संस्कृति और सभ्यता को पीछे छोड़ते चले जा रहे हैं. लेकिन आज भी छत्तीसगढ़ के आदिवासी वनवासी अपनी सभ्यता और संस्कृति को बनाए रखे हैं. ईटीवी भारत आज अपने दर्शकों को ऐसी एक महिला "शामली बघेल" के बारे में बताने जा रहा है.जो एक जंगली पौधे "शीसल" के रेशे से गुड्डा-गुड़िया सजावटी सामान बनाकर बाजारों में बेचने का काम कर रहीं (shisal plant of bastar) हैं. शामली बघेल रहने वाली तो बस्तर की है लेकिन प्रदेश भर में होने वाले आयोजनों में जाकर स्टॉल लगाकर जंगली पौधे के रेशों से बने गुड्डे गुड़िया और सजावटी सामानों को बेचती हैं. ईटीवी भारत ने शामली बघेल से खास बातचीत की आइए जानते हैं उन्होंने क्या कहा

बस्तर के पौधे ने बदली हजारों महिलाओं की जिंदगी
कैसी है कला : कलाकार शामली बघेल (Bastar Shamli Baghel) ने बताया कि " छत्तीसगढ़ के बस्तर के जंगलों में वन विभाग ने "शीसल" का पौधा लगाया है. जो दिखने में एलोवेरा के पौधे जैसा लगता है. लेकिन यह पौधा जंगलों में पाया जाता है. वन विभाग इस पौधे की प्रोसेसिंग कर इसके रेशे से रस्सी बनाता है. जिससे स्व सहायता समूह की महिलाओं द्वारा खरीदा जाता है. इसी रेशे का उपयोग कर गुड्डे गुड़िया या सजावटी सामान बनाए जाते हैं. यह रेशा काफी मजबूत होता है और आसानी से टूटता भी नहीं"

शीसल से बनाई जाती है रस्सी : शामली बघेल ने बताया कि " जब पौधा थोड़ा बड़ा हो जाता है उसके बाद इस पौधे को तोड़कर प्रोसेसिंग के लिए लाया जाता है. इस पौधे की प्रोसेसिंग कर सबसे पहले इसमें से कचरा अलग किया जाता है. साफ करने के बाद पौधे से रस्सी बनाने का काम शुरू होता है. सबसे पहले पौधे को छिला जाता है. पौधे को पतला पतला छील कर रेशा निकल जाता है. रेशा निकाले के बाद फिर उसे पानी में धोकर सुखाया जाता है. सूख जाने के बाद रेशे से रस्सी बनाई जाती है.रस्सी बनाने के बाद उसे किलो के हिसाब से बेचा जाता है.''



रेशे से क्या-क्या बनते हैं : कलाकार शामली बघेल ने बताया " स्व सहायता समूह (Bastar Women Self Help Group) की महिलाएं उस रेशे को खरीद कर उसे फिर अलग-अलग कलर में डालकर रस्सी को रंगती है. जिसके बाद उस रस्सी से गुड्डा गुड़िया , सजावटी सामान , बैग , डोर मेट , झूमर सब बनाए जाते हैं. जंगली पौधे के रेशे से बना धागा इतना मजबूत होता है कि हाथ से खींचने पर भी यह धागा नहीं टूटता है. बाजार में हम सामानों को मार्केट के हिसाब से बेचते हैं. छोटे गुड्डा गुड़िया को ₹10 से लेकर ₹100 तक इसके बाद बैक डोर मेट सजावटी सामानों को 200 से लेकर 600 तक हम बेचते हैं."



स्व-सहायता समूह को रोजगार : शामली बघेल ने बताया " पिछले कई सालों से हम इस तरह के से सजावटी सामान बनाते चले आ रहे हैं. कुछ समय पहले बाजारों में इसकी डिमांड काफी घट गई थी. लेकिन अब धीरे-धीरे लोग अपनी संस्कृति और सभ्यता को पसंद कर रहे हैं . इस तरीके से हाथ से बने सामानों की डिमांड अब धीरे-धीरे बाजारों में बढ़ रही है. बस्तर में स्व सहायता समूह की कई महिलाओं और बच्चियों को हम यह बनाना सिखाते हैं ताकि वह अपना रोजगार खुद जनरेट कर सके."

Last Updated : Jun 21, 2022, 12:50 AM IST
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