जांजगीर-चांपा: छत्तीसगढ़ को भगवान राम का ननिहाल कहा जाता है. जांजगीर चांपा जिले के शिवरीनारायण में माता शबरी ने श्रद्धा से भरे बेर भगवान श्रीराम को चखकर खिलाए थे. जूठे बेरों को भगवान श्रीराम को अर्पण किया. शबरी के झूठे बेरों के साथ ही शिवरीनारायण एक ऐसे वृक्ष के लिए भी मशहूर है जिसके बारे में कहा जाता है कि ऐसा वृक्ष और कहीं नहीं है. इस वृक्ष को माता शबरी और प्रभु श्रीराम के मिलन का सूचक भी माना जाता हैं. (Unique banyan tree in Shivrinarayan of Janjgir Champa )
शिवरीनारायण में अनोखा वृक्ष : शिवरीनारायण मठ मंदिर प्रवेश द्वार के सामने बरगद का विशाल पेड़ है. इस बरगद के पेड़ के प्रति यहां आने वाले श्रृद्धालुओं का विशेष लगाव है. इस पेड़ के पत्ते लोगों को आश्चर्यचकित कर देते हैं. इसका हर एक पत्ता दोने के आकार में मुड़ा (Banyan tree with bowl leaves in Shivrinarayan) हुआ है. आमतौर पर बरगद के पत्ते मोटे और समतल होते हैं, लेकिन इस वट वृक्ष में ऐसा नहीं है. मान्यता है कि माता शबरी ने इसी पेड़ के पत्ते को दोना बनाकर अपने जूठे बेर इसमें रखकर प्रभु श्रीराम को खिलाए थे.
पुराणों में है वट वृक्ष का जिक्र : शिवरीनारायण में रामयुग के कई प्रमाण आज भी मौजूद हैं. शबरी और नारायण के मिलने के कारण ही इसका नाम शिवरीनारायण पड़ा. वट वृक्ष मंदिर में कब से है, ये कोई नहीं जानता. मंदिर के पुजारी का कहना है कि वटवृक्ष को हर युग में स्थान मिला है. त्रेतायुग में जलप्रलय के समय प्रभु ने वट वृक्ष की पत्तियों पर विश्राम किया था.
पेड़ के कलम से नहीं निकली दूसरी पत्तियां : हैरत की बात यह भी है कि इस पेड़ के कलम से दूसरे पौधे तैयार किए गए लेकिन इस स्थान के बाहर किसी भी वृक्ष में दोने के आकार की पत्तियां नहीं निकली. इस कारण से इस पेड़ के प्रति लोगों की आस्था और भी ज्यादा गहरी हो गई है. लोग पेड़ की पत्तियों को अपने घर ले जाकर पूजते भी हैं.
छत्तीसगढ़ का जगन्नाथपुरी: महानदी, शिवनाथ और जोंक नदी के संगम पर बसा शिवरीनारायण धार्मिक, ऐतिहासिक और पौराणिक नगरी के रूप में प्रसिद्ध है. इस स्थान की महत्ता इस बात से पता चलती है कि देश के चार प्रमुख धाम बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथपुरी और रामेश्वरम के बाद इसे पांचवे धाम की संज्ञा दी गई है. यह स्थान भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान है. इसलिए छत्तीसगढ़ के जगन्नाथपुरी के रूप में प्रसिद्ध है. यहां प्रभु राम का नारायणी रूप गुप्त रूप से विराजमान है. इसलिए यह गुप्त तीर्थधाम या गुप्त प्रयागराज के नाम से भी जाना जाता है.