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जमीन की मांग को लेकर विस्थापित किसानों ने दी आंदोलन की चेतावनी

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Published : Jun 25, 2020, 12:20 PM IST

Updated : Jun 25, 2020, 3:32 PM IST

विस्थापित अपना हक मांगते हुए आंदोलन की चेतावनी दे रहे हैं. ऊर्जाधानी भुविस्थापित किसान कल्याण समिति के अध्यक्ष ने SECL कुसमुण्डा के अंतर्गत आने वाली जमीन को किसानों को वापस किए जाने की मांग की है.

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किसान

कोरबा: कोयला कंपनी के खिलाफ ऊर्जाधानी भुविस्थापित किसान कल्याण समिति का आंदोलन जारी है. भू विस्थापित किसान अब 20 साल की मियाद पूरी हो जाने बाद जमीन और मालिकाना हक की मांग रहे हैं. विस्थापितों का आरोप है कि नियम के खिलाफ उनकी जमीन पर प्रशासन और SECL बुलडोजर चला रहा है. समिति के अध्यक्ष सपुरन कुलदीप ने SECL कुसमुंडा के महाप्रबंधक सहित शासन-प्रशासन को पत्र लिखकर SECL कुसमुंडा अंतर्गत वर्ष 1983 में ग्राम खम्हरिया की अर्जित निजी भूमि को किसानों को वापस करने और किसानों को जमीन खाली कराने के लिए बाध्य करने पर रोक लगाने की मांग की है.

किसानों ने दी आंदोलन की चेतावनी

अच्छी खबर: बलरामपुर में तेजी से ठीक हो रहे कोरोना पॉजिटिव मरीज

राज्य की कोयला खदान के विकास के लिए भारत सरकार की अधिसूचना के तहत ग्राम खम्हरिया में किसानों की भूमि का अधिग्रहण किया गया था.उक्त भूमि को मध्यप्रदेश भू-राजस्व सहिंता 1959 के तहत भूमि का अधिग्रहण किया गया था. तब SECL तत्कालिन पश्चिमी कोयला प्रक्षेत्र कुसमुण्डा कालरी के प्रबंधक ने तत्कालीन अतिरिक्त कलेक्टर कोरबा (अविभाजित मध्यप्रदेश) को भूमि के सतह को कोयला उत्खनन के लिए दखल करने के लिए मध्यप्रदेश भू-राजस्व सहिंता 1959 के तहत अनुमति मांगी थी. जिसपर न्यायालय अतिरिक्त कलेक्टर कोरबा को आदेश पारित कर 5 बिन्दुओं की शर्तों के आधार पर दखल करने का अधिकार दिया था.

ये थे नियम

  • अतिरिक्त कलेक्टर कोरबा मध्यप्रदेश के उल्लेखित शर्तों के अनुसार पारित आदेश के बाद 20 वर्षो के बाद उत्खनन हुए क्षेत्र,आवासगृह, रेलवे लाइन, सड़क आदि निर्माण के लिए चाही गई जमीन को 60 वर्षो के बाद भू-स्वामियों को वापस करना होगा.
  • संबंधित व्यक्ति को भूमि के वापसी तक भू-राजस्व शासन के निर्धारित आधार पर अदा करना होगा.
  • विस्थापित परिवारों को आवश्यक सुविधाएं कंपनी से उपलब्ध कराई जाएंगी.
  • राज्य शासन के समय-समय पर बनाए गए नियम और शर्तो के लिए कंपनी बंधनकारी होगा.

ऊर्जाधानी भुविस्थापित किसान कल्याण समिति के अध्यक्ष ने बताया कि वहां पर मूल किसानों का अभी कब्जा है और वो पूर्ववत मकान में निवास कर रहे हैं. किसान कृषि कार्य कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं. गांव में SECL ने कोई भी बुनियादी सुविधाएं नहीं दी है. वर्तमान में नया भू-अधिग्रहण अधिनियम 2013 भी लागू हो चुका है. इसी उम्मीद में ग्रामीणों ने हाईकोर्ट बिलासपुर से स्टे आर्डर लिया है.

कोर्ट के आदेश का कर रहे उल्लंघन

हाईकोर्ट में दायर याचिका के बाद कोर्ट ने प्रबंधन को 3 सप्ताह में जवाब प्रस्तुत करने, विचारधीन अवधि को बनाए रखने और गांव में किसी तरह का हस्तेक्षेप नहीं करने का स्पष्ट आदेश जारी किया था. इसके तीन महीने बीत जाने के बाद भी SECL ने कोर्ट को कोई जवाब नहीं प्रस्तुत किया है और कोर्ट के आदेश का उल्लंघन कर खेतिहर भूमि पर बुलडोजर चलाकर समतलीकरण करने का प्रयास कर रहा है. इसका ग्रामीणों ने विरोध कर रूकवा दिया है.इस स्थान पर वैशालीनगर फेस 2 के तहत पाली, पड़निया जटराज के भुविस्थापितों को बसाहट देने की योजना बनाई गई है.

कोरबा: कोयला कंपनी के खिलाफ ऊर्जाधानी भुविस्थापित किसान कल्याण समिति का आंदोलन जारी है. भू विस्थापित किसान अब 20 साल की मियाद पूरी हो जाने बाद जमीन और मालिकाना हक की मांग रहे हैं. विस्थापितों का आरोप है कि नियम के खिलाफ उनकी जमीन पर प्रशासन और SECL बुलडोजर चला रहा है. समिति के अध्यक्ष सपुरन कुलदीप ने SECL कुसमुंडा के महाप्रबंधक सहित शासन-प्रशासन को पत्र लिखकर SECL कुसमुंडा अंतर्गत वर्ष 1983 में ग्राम खम्हरिया की अर्जित निजी भूमि को किसानों को वापस करने और किसानों को जमीन खाली कराने के लिए बाध्य करने पर रोक लगाने की मांग की है.

किसानों ने दी आंदोलन की चेतावनी

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राज्य की कोयला खदान के विकास के लिए भारत सरकार की अधिसूचना के तहत ग्राम खम्हरिया में किसानों की भूमि का अधिग्रहण किया गया था.उक्त भूमि को मध्यप्रदेश भू-राजस्व सहिंता 1959 के तहत भूमि का अधिग्रहण किया गया था. तब SECL तत्कालिन पश्चिमी कोयला प्रक्षेत्र कुसमुण्डा कालरी के प्रबंधक ने तत्कालीन अतिरिक्त कलेक्टर कोरबा (अविभाजित मध्यप्रदेश) को भूमि के सतह को कोयला उत्खनन के लिए दखल करने के लिए मध्यप्रदेश भू-राजस्व सहिंता 1959 के तहत अनुमति मांगी थी. जिसपर न्यायालय अतिरिक्त कलेक्टर कोरबा को आदेश पारित कर 5 बिन्दुओं की शर्तों के आधार पर दखल करने का अधिकार दिया था.

ये थे नियम

  • अतिरिक्त कलेक्टर कोरबा मध्यप्रदेश के उल्लेखित शर्तों के अनुसार पारित आदेश के बाद 20 वर्षो के बाद उत्खनन हुए क्षेत्र,आवासगृह, रेलवे लाइन, सड़क आदि निर्माण के लिए चाही गई जमीन को 60 वर्षो के बाद भू-स्वामियों को वापस करना होगा.
  • संबंधित व्यक्ति को भूमि के वापसी तक भू-राजस्व शासन के निर्धारित आधार पर अदा करना होगा.
  • विस्थापित परिवारों को आवश्यक सुविधाएं कंपनी से उपलब्ध कराई जाएंगी.
  • राज्य शासन के समय-समय पर बनाए गए नियम और शर्तो के लिए कंपनी बंधनकारी होगा.

ऊर्जाधानी भुविस्थापित किसान कल्याण समिति के अध्यक्ष ने बताया कि वहां पर मूल किसानों का अभी कब्जा है और वो पूर्ववत मकान में निवास कर रहे हैं. किसान कृषि कार्य कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं. गांव में SECL ने कोई भी बुनियादी सुविधाएं नहीं दी है. वर्तमान में नया भू-अधिग्रहण अधिनियम 2013 भी लागू हो चुका है. इसी उम्मीद में ग्रामीणों ने हाईकोर्ट बिलासपुर से स्टे आर्डर लिया है.

कोर्ट के आदेश का कर रहे उल्लंघन

हाईकोर्ट में दायर याचिका के बाद कोर्ट ने प्रबंधन को 3 सप्ताह में जवाब प्रस्तुत करने, विचारधीन अवधि को बनाए रखने और गांव में किसी तरह का हस्तेक्षेप नहीं करने का स्पष्ट आदेश जारी किया था. इसके तीन महीने बीत जाने के बाद भी SECL ने कोर्ट को कोई जवाब नहीं प्रस्तुत किया है और कोर्ट के आदेश का उल्लंघन कर खेतिहर भूमि पर बुलडोजर चलाकर समतलीकरण करने का प्रयास कर रहा है. इसका ग्रामीणों ने विरोध कर रूकवा दिया है.इस स्थान पर वैशालीनगर फेस 2 के तहत पाली, पड़निया जटराज के भुविस्थापितों को बसाहट देने की योजना बनाई गई है.

Last Updated : Jun 25, 2020, 3:32 PM IST
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