सरगुजा: लोक कलाओं और अपनी अलग परंपराओं के लिये पहचान रखने वाले सरगुजा में करमा उत्सव शुरू (importance of worshiping Karam Dev) हो चुका है. भादो मास की एकादशी के दिन व्रत और रात में करम देव की पूजा के साथ यह उत्सव शुरू हो चुका है, सरगुजा के गांव मोहल्लों में महिला और पुरुषों का समूह करमा गीत और मांदर की थाप पर करमा नृत्य कर यह उत्सव मनाते हैं.
कर्म की पूजा का पर्व: सरगुजा के इस पारंपरिक पर्व को करीब से समझने के लिए ETV भारत ने स्थानीय परम्पराओं के जानकार रंजीत सारथी से बातचीत की. रंजीत सारथी बताते हैं "सरगुजा मुख्य रूप से कृषि पर आधारित क्षेत्र है. इसलिए यहां लोग खेती करने के बाद अपने कर्म की पूजा करते हैं. यह भी प्रकृति पूजा जैसा ही है करम की डाल को घर लाकर उसकी पूजा करते हैं. भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हमने अपना कर्म कर दिया, अब फल देना आपके हाथ में है."
भाई की लंबी उम्र का व्रत: रंजीत सारथी बताते हैं "इस दिन महिलाएं भाई की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं. दिन भर निर्जला व्रत रखकर रात में करम डाल की पूजा करने के बाद महिलाएं व्रत का पारण करती हैं. फलाहार खाने के बाद महिलाएं और पुरुष गावं में एक स्थान पर एकत्र होते हैं और रात भर कर्मा गीत की धुन पर कर्मा नृत्य करती हैं."
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गांव के मुखिया के घर होती है पूजा: करमा पर्व लोग अपने कर्म को पूजने के लिए मनाते हैं. गावं के मुखिया के घर मे यह पूजा आयोजित की जाती है. बड़े से आंगन में गांव की सभी व्रती महिला और पुरुष सब एक स्थान पर जुटते हैं और इसी आंगन में करमा की पूजा की जाती है. पूजा समाप्त होने के बाद व्रती अपने अपने घर जाकर फलाहार ग्रहण कर व्रत का पारण करती हैं.
कर्मा नृत्य की धूम: सरगुजा के गांव के फलाहार भी थोड़ा अलग है. चावल के आटे का फरा, सेवई की मिठाई और फल यहां मुख्यरूप से व्रत के बाद खाने का चलन है. गांव के एक व्यक्ति ने करमा पूजा कराता है. करमा व्रत क्यों किया जाता है, कब यह शुरू हुआ, इसकी कहानी महिलाओं को सुनाई जाती है. पूजा के समापन और फलाहार के बाद देर रात उत्सव शुरू होता है. जिसमें मांदर, झांझ लेकर ग्रामीण लोक कला के रंग में रंग जाते हैं. फिर करमा नृत्य करते हुये उत्सव मनाते हैं.
स्थानीय अवकाश घोषित: कर्मा सरगुजा का बड़ा लोकपर्व है, स्थानीय लोगों की इस पर्व में आस्था के कारण जिला प्रशासन ने कर्मा पर स्थानीय अवकाश घोषित कर दिया है. अवकाश होने की वजह से भी शासकीय सेवा वाले लोगों को राहत मिली है. वो पर्व की व्यस्तता में अपने घर और गावं में लोगों के साथ समय व्यतीत कर पा रहे हैं. इससे लोक संस्कृति को जीवित रखने में भी मदद मिल रही है.