सरगुजा : एक समय था जब लोग गर्मियों की छुट्टियों में कॉमिक्स और उपन्यासों में खो जाते थे. हर साल गर्मी की छुट्टियों का इंतजार होता और छुट्टियों से पहले ही बच्चे कॉमिक्स और कहानी की किताबों की सीरीज का जुगाड़ करने लगते. ये कॉमिक्स और किताबें लोग एक दूसरे को पढ़ने के बाद दे दिया करते थे. दुकानदार भी कॉमिक्स की सीरीज को अपने यहां संजों कर रखते और इसकी अलग से लाइब्रेरी बनाकर कमाई भी करते. कॉमिक्स और कहानियों से जुड़े किताबें 25 पैसे से 1 रुपए के बीच मिल जाया करती थी. लेकिन बदलते परिवेश में यह चलन से बाहर हो ( Comics and novels have become a thing of the past) गये. डिजिटल क्रांति में ईबुक का चलन बढ़ा और किस्से कहानियों की जगह चलचित्र ने ले ली.
अब कॉमिक्स के किरदारों की बन रहीं फिल्में : आज के समय में कॉमिक्स और उपन्यास सिर्फ फिल्मों की पटकथा लिखे जाने तक ही सीमित रह गए (Now movies of comic characters are being made)हैं. इन्हीं की कहानियों पर बॉलीवुड और हॉलीवुड की कई सुपरहिट फिल्में बन चुकी हैं. कुछ स्टूडियों ने तो खरबों का बिजनेस कॉमिक्स की पूरी सीरीज पर फिल्म बनाकर किया है. टेलीविजन और डिजिटल माध्यम ने इस बिजनेस को और बढ़ाया. लोग फिल्मों के माध्यम से कहानियां देखने लगें.
कैसे आया बदलाव : इस चलन में समय भी बचने लगा और कहानी जल्दी समझ में आने लगी. जटिल किस्से कहानियों को पढ़ने का पुराना माध्यम जटिल था. शब्द पढ़कर उसे समझना और फिर याद रखना. ये एक लंबी प्रक्रिया होती है. लेकिन उसी कहानी को वीडियो के माध्यम से देखना काफी आसान है. ऑडियो वीडियो के साथ कहानी सीधे बाईपास होकर सुनाई और दिखाई देती है. इस क्रिया में मस्तिष्क को कम मेहनत करनी पड़ती है और कहानी जल्दी समझ मे आती है. वहीं इससे पाठक का समय भी बचता है.
वक्त के साथ लाइब्रेरी का इस्तेमाल कम : जब कहानियां और किताबें फिल्मों में तब्दील हुई तो इसका बड़ा असर पुस्तकालयों पर पड़ा.अंबिकापुर में ऐसे ही उपान्यासों के दीवाने हैं आत्माराम जिनके पास कभी खुद की लाइब्रेरी थी. आत्माराम बताते हैं कि 1990 तक उपन्यास चलन में थे. 25 पैसे 1 रुपये तक किराये में उपन्यास मिलती थी. वही खरीदने पर एक उपन्यास 8 से 10 रुपए में मिलती थी. उपलब्धता भी अधिक थी. लेकिन 1990 के बाद उपन्यास चलन से बाहर होने लगे किताबें महंगी हो गई. आज 80 से 100 रुपये की एक उपन्यास है.आत्माराम लाइब्रेरी चलाते थे लेकिन 90 में बंद कर (Reduced use of library over time) दिया. आत्माराम ने बड़े पाठकों की सभी उपन्यास पढ़ी है. लेकिन अब जब कहीं मिलती है तो पढ़ते हैं.
भौतिक रुप से पढ़ने में फायदा : साहित्यकार विनोद हर्ष बताते हैं कि ''भौतिक रूप से कॉमिक्स और उपन्यास पढ़ना अच्छा था. कहानी को भौतिक रूप से पढ़ने पर उसमें गहरी जानकारी मिलती थी. लेकिन अब वीडियो और डिजिटल माध्यम से लोग पढ़ रहे हैं जिसमे समय बचता है. लेकिन जानकारी सतही तौर पर ही मिलती है. किसी भी कहानी का गहरा अध्ययन किताबों को पढ़ने पर ही होता है. आज के दौर में लोग डिजिटल माध्यम का उपयोग कर अपना समय बचा रहे हैं. क्योंकि उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं चाहिये. वो सतही तौर पर जानकारी लेकर काम चला रहे (advantage of physical reading) हैं.''
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बच्चों के लिए क्या है सही : भौतिक पाठन और डिजिटल रीडिंग के विषय में मनोचिकित्सक डॉ संदीप बताते हैं कि ''जब हम शब्द पढ़ते हैं तो वो लंबी प्रक्रिया एक जरिये हमारे मस्तिष्क तक पहुंचती हैं. आंख से शब्द देखना, फिर वो साउंड में बदलता है फिर दिमाग में जाता है. लेकिन यही प्रक्रिया वीडियो के माध्यम से बड़ी आसानी से हमको समझ आ जाती है. क्योंकि वीडियो इस प्रक्रिया को बाईपास करके सीधे मस्तिष्क को समझाती है. यह अच्छा भी है लेकिन छोटे बच्चों को वीडियो से पढ़ने के बजाय किताबों से पढ़ना चाहिये क्योंकि पढ़ना भी एक प्रकार की कला है . अगर बचपन से कोई पढ़ेगा ही नही तो उसके अंदर पढ़ने की कला विकसित ही नही होगी.''