हैदराबाद : पोलियो या पोलियोमेलाइटिस इंसान को विकलांग कर देने वाली एक संक्रामक बीमारी है. एक समय था जब यह बीमारी दुनिया के सामने एक चुनौती थी. लेकिन इस बीमारी का टीका आने के बाद इस बीमारी से छुटकारा मिला. हालांकि दुनिया के कुछ हिस्सों में अभी भी इस बीमारी के कुछ केस सामने आते रहते हैं. विश्व में लोगों को पोलियो के प्रति जागरूक करने के लिए हर साल 24 अक्टूबर को 'विश्व पोलियो दिवस' मनाया जाता है. इस मौके पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation - WHO) की पहल पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.
क्या है पोलियो
पोलियो या पोलियोमेलाइटिस एक बेहद गंभीर बीमारी है, जो इंसान को विकलांग बना देती है. व्यक्ति से व्यक्ति में फैलने वाले इस संक्रमण का सबसे गंभीर लक्षण है पक्षाघात (Paralysis), जिसमें संक्रमित के मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी पर असर पड़ने से वह स्थायी विकलांग हो सकता. और यदि यह वायरस संक्रमित व्यक्ति की उन मांसपेशियों को प्रभावित कर दें जो इंसान को सांस लेने में मदद करती हैं तो इस स्थिति में मरीज की मृत्यु भी हो सकती है.
यहीं नहीं बल्कि वह लोग जो बचपन में पोलियो का शिकार रह चुके होते है उन्हें भी वयस्क की उम्र में पोस्ट-पोलियो सिंड्रोम का सामना करना पड़ता है. जिसमें मांसपेशियों में दर्द, कमजोरी या पक्षाघात जैसी शारीरिक बीमारियां शामिल हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की पहल पर विभिन्न देशों की सरकारों ने वृहद स्तर (Macro Level) पर टीकाकरण अभियान का आयोजन कर दुनिया को पोलियो से बचाया. भारत को भी पिछले 7-8 वर्षों से पोलियो मुक्त घोषित किया जा चुका है. हालांकि दुनिया के कुछ हिस्सों में अभी भी इस बीमारी के कुछ केस सामने आते रहते हैं.
हालांकि पोलियो का कोई इलाज नहीं है, लेकिन पोलियो का टीका लोगों को इस संक्रमण से लड़ने के लिए एक रक्षा कवच प्रदान करता है. पोलियो के खिलाफ टीकाकरण 1950 के दशक में शुरू हुआ था और यह बीमारी को खत्म करने में सबसे प्रभावी उपकरण रहा है.
पोलियो दिवस का इतिहास
हर साल 24 अक्तूबर को अमेरिकी वायरोलॉजिस्ट जोनास साल्क के जन्मदिन के अवसर पर 'विश्व पोलियो दिवस' मनाया जाता है. जिन्होंने दुनिया का पहला सुरक्षित और प्रभावी पोलियो वैक्सीन बनाने में मदद की थी. डॉक्टर जोनास साल्क ने साल 1955 में 12 अप्रैल को ही पोलियो से बचाव की दवा को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया था. उस दौरान यह बीमारी सारी दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या बनी हुई थी. इसके उपरांत साल 1988 में ग्लोबल पोलियो उन्मूलन पहल (GPEI) की स्थापना की गई. यह पहल विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) तथा रोटरी इंटरनेशनल सहित पोलियो उन्मूलन के लिए प्रयासरत विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा की गई थी.
पोलियो मुक्त भारत
वर्ष 1985 में, देश के सभी जिलों को पोलियो मुक्त करने के लिए यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम शुरू किया गया था. तमिलनाडु वेलफेयर पल्स स्ट्रैटेजी के जरिए 100 प्रतिशत पोलियो मुक्त होने वाला भारत का पहला राज्य था. भारत ने 2 अक्टूबर 1994 को पल्स पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया, जब देश में वैश्विक पोलियो मामलों का लगभग 60% हिस्सा था. दो दशकों के भीतर, भारत को 27 मार्च 2014 को विश्व स्वास्थ्य संगठन से 'पोलियो-मुक्त प्रमाणीकरण' प्राप्त हुआ, जिसमें आखिरी पोलियो का मामला 13 जनवरी 2011 को पश्चिम बंगाल के हावड़ा में दर्ज किया गया था. यह एक मील का पत्थर साबित हुआ क्योंकि इस देश में पोलियो को रोकना कभी सबसे कठिन माना जाता था. यह पोलियो को रोकने के लिए, मजबूत निगरानी प्रणाली, गहन टीकाकरण अभियान और लक्षित सामाजिक लामबंदी प्रयासों के महत्व को प्रदर्शित करता है.
COVID-19 ने पोलियो के प्रयासों को कैसे प्रभावित किया है
दो साल पहले दुनिया ने पोलियो को खत्म करने में महत्वपूर्ण प्रगति पर जश्न मनाया था. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया था कि तीन में से दो वाइल्ड पोलियो वायरस स्ट्रेन को मिटा दिया गया है. दुर्भाग्य से, COVID-19 ने इनमें से कई प्रगति को अचानक रोक दिया.
लगभग पिछले 18 महीनों में बचपन के टीकाकरण में महत्वपूर्ण गिरावट देखी गई है, जैसा कि यूनिसेफ (UNICEF) के हालिया आंकड़ों से पता चलता है. 2020 में लगभग 2 करोड़ 30 लाख (23 मिलियन) बच्चे अपने नियमित टीकाकरण से चूक गए.
सबसे अधिक चिंताजनक यह है कि इनमें से अधिकांश बच्चों को टीकाकरण की एक भी खुराक नहीं मिली है, और इनमें से बहुत से कम सेवा वाले समुदायों (under-served communities), संघर्ष के क्षेत्रों और दूरदराज के क्षेत्रों से आते हैं जहां स्वास्थ्य संबंधित सीमित साधन है.
भारत और पाकिस्तान दो ऐसे देश हैं, जहां बड़ी संख्या में बच्चे टीकाकरण से महरूम रह गए. इनकी संख्या चार मिलियन तक बताई जाती है.
इस वृद्धि का एक प्रमुख कारण COVID-19 पर एक मजबूत फोकस के कारण संसाधनों का डायवर्जन रहा है. खराब जागरूकता और टीके की हिचकिचाहट ने पोलियो के खात्मे की प्रगति को दो शेष देशों, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में जंगली पोलियोवायरस मामलों की रिपोर्ट के साथ बाधित किया है. इन समुदायों को COVID-19 से बचाने के लिए टीकाकरण पर रोक लगाने के बाद दोनों देशों ने 2020 के दौरान मामलों में वृद्धि देखी है.
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पोलियो के खत्में के लिए प्रयास
पोलियो को खत्म करने के प्रयासों के चलते 1988 के बाद से दुनिया को स्वास्थ्य लागत में 27 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की बचत हुई है. एक निरंतर पोलियो मुक्त दुनिया 2050 तक बचत में 14 बिलियन अमेरिकी डॉलर की बचत करेगी, जबकि लागत देशों को अनिश्चित काल तक वायरस को नियंत्रित करने के लिए खर्च करना होगा.