रायपुर: बस्तर के कई इलाकों से निकलकर डिलिस्टिंग का मुद्दा रायपुर में पहुंच चुका है. रविवार को जनजातीय सुरक्षा मंच ने डिलिस्टिंग को लेकर महारैली की. इस विरोध प्रदर्शन रैली की अगुवाई जनजातीय सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत ने की. बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोग और नेता इस महारैली में शामिल हुए. सबने एक सुर में डिलिस्टिंग लागू करने की मांग की है. बीजेपी नेता रामविचार नेताम भी इस रैली में शामिल हुए. इस रैली का मुख्य मकसद डिलिस्टिंग को लागू कराकर ऐसे लोगों को आरक्षण का लाभ लेने से रोका जाए. जो धर्म परिवर्तन कर आदिवासी संस्कृति छोड़ चुके हैं. उसके अलावा इस रैली में धर्मांतरण का मुद्दा भी उठा.
जनजातीय सुरक्षा मंच का क्या है तर्क: इस रैली की अगुवाई कर रहे जनजातीय सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत ने मंच की मांग को बुलंद किया है. उन्होंने मांग की है कि" जो आदिवासी धर्म परिवर्तन कर दूसरे धर्म को अपना चुके हैं. वह आदिवासी मान्यताओं और परंपराओं को नहीं मान रहे हैं. फिर भी ये लोग आदिवासी बनकर आरक्षण का लाभ ले रहे हैं. ऐसे लोगों को आदिवासी की श्रेणी से डिलिस्ट किया जाए. यही डिलिस्टिंग है."
"धर्मांतरण करने वाले आदिवासी, आदिवासी नहीं": गणेश राम भगत का मानना है कि" धर्मांतरित होने वाले आदिवासी आदिवासी नहीं है.ऐसे धर्मांतरित लोगों का आरक्षण खत्म कर देना चाहिए. ये लोग आदिवासी का आरक्षण और अल्पसंख्यक दोनों का आरक्षण ले रहे हैं. ये दोहरा लाभ ले रहे हैं. इसलिए हमारी मांग पूरे देश में डिलिस्टिंग को लागू करने की है"
चुनाव और राजनीति से इसे जोड़कर न देखें: गणेश राम भगत ने कहा कि "इसे चुनाव और राजनीति से जोड़कर नहीं देखना चाहिए. सरकार धर्मांतरित लोगों को अल्पसंख्यक वाले आरक्षण का लाभ दे. लेकिन आदिवासियों के लिए जो आरक्षण जारी है. उसमें ऐसे लोगों को आरक्षण नहीं मिलना चाहिए. ये आदिवासियों के हक की लड़ाई है. धर्मांतरित लोगों को अगर लाभ लेना है तो एक लाभ लें. दोहरा लाभ ऐसे लोगों को न दिया जाए. हम इसका पुरजोर विरोध करते हैं."
डिलिस्टिंग के आंदोलन पर सीएम का बयान: बीजेपी नेता रामविचार नेताम ने राज्य सरकार पर आरोप लगाए थे कि" छत्तीसगढ़ के बस्तर के बाद अब मैदानी इलाकों में भी धर्मांतरण हो रहा है. बघेल सरकार इससे रोकने के लिए कुछ नहीं कर रही है." इस पूरे मसले और डिलिस्टिंग के आंदोलन पर सीएम बघेल ने प्रतिक्रिया दी है. सीएम ने कहा कि यह रैली बीजेपी की तरफ से समर्थन प्राप्त एक राजनीतिक शो था. भाजपा नेताओं को इसे हटाने की मांग को लेकर राज्य के अपने नौ लोकसभा सांसदों का "घेराव" करना चाहिए. उन्होंने, इस मुद्दे को तब नहीं उठाया. जब उनकी पार्टी रमन सिंह के नेतृत्व में सत्ता में थी. सूची से हटाना केंद्र का मामला है और राज्य सरकार की इसमें कोई भूमिका नहीं है. भाजपा लोगों को गुमराह कर रही है. पुलवामा अटैक पर सत्यपाल मलिक की खबरों को कहीं जगह नहीं मिली. इसे दबा दिया गया है. जो बोलने वाले हैं उसकी जुबान बंद कर दी जाती है. बीजेपी शासित राज्यों में भ्रष्टाचार पर केंद्र सरकार कोई काम नहीं कर रही है. एमपी के व्यापम कांड में कुछ नहीं हुआ. अडानी मामले में अब तक कुछ नहीं हुआ है. अडानी के खिलाफ बोलने वालों को दबा दिया जाता है"