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हसदेव जंगल को बचाने निकली पर्यावरण कार्यकर्ता लिसिप्रिया

हसदेव जंगल को बचाने अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ता लिसिप्रिया बिलासपुर पहुंचीं. लिसिप्रिया ने कहा कि हसदेव के जंगल को बचाने यहां आई है. जंगल कई लोगों का घर होता है. जानवर वहां रहते हैं. जंगल से दवाइया मिलती है. अगर जंगल काट दिए जाएंगे तो वो कहां रहेंगे. फैक्टरियों में जिंदगी नहीं बनती. जिंदगी पर्यावरण में, प्रकृति में है. वहीं लिसिप्रिया ने हसदेव के जंगलों को बचाने के लिए रैली के माध्यम से लोगों से समर्थन की अपील की.

पर्यावरण कार्यकर्ता लिसिप्रिया
पर्यावरण कार्यकर्ता लिसिप्रिया
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Published : Oct 15, 2022, 10:03 PM IST

बिलासपुर: अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण कार्यकर्ता लिसिप्रिया शनिवार को बिलासपुर पहुंची. उन्होंने हसदेव अरण्य को बचाने चल रहे आंदोलन में भाग लिया. लिसिप्रिया ने सरकारों के झूठा आश्वासन को अब बर्दास्त नहीं करने की बात कही. उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार को अपने वादे पूरे करने की मांग रखी है. वहीं लिसिप्रिया ने हसदेव के जंगलों को बचाने के लिए रैली के माध्यम से लोगों से समर्थन की अपील की.

हसदेव जंगल को बचाने निकली पर्यावरण कार्यकर्ता लिसिप्रिया

हसदेव को बचाने निकली लिसिप्रिया: 11 साल की अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ता लिसिप्रिया कंगुजम बिलासपुर में रैली में शामिल हुई. रैली के माध्यम से वह जंगल और उसके फायदों की जानकारी लोगों तक पहुंचाई. यहां उन्होंने कोनहेर गार्डन से रैली निकालकर सरकार और अडानी के खिलाफ नारा लगाया. वे पर्यावरण को लेकर कहा कि "यदि जंगल को काट दिया जाएगा तो जीवन कैसे बचेगा. जंगलों से हमे ऑक्सीजन, पानी और जीवन जीने के लिए वो सब कुछ मिलता है, जिससे जिंदगी चलती है. जंगलों को काट कर पूरी धरती को खत्म किया जा रहा है. हसदेव अरण्य को बचाने की यह लड़ाई किसी एक के लिए नहीं है. वो किसी सरकार या किसी व्यक्ति कर खिलाफ नही बल्कि पर्यावरण को बर्बाद करने वालों के खिलाफ है. वो उनसे लड़ाई कर रही है जो पर्यावरण और प्रकृति का संतुलन बिगाड़ रहे है. उनकी वजह से पूरे प्रदेश, देश और दुनिया खतरे में आ गई है."

यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ में पहली बार जेल लोक अदालत, हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति ने किया शुभारंभ

क्या कहती हैं लिसिप्रिया: अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ता लिसिप्रिया ने कहा कि "वो हसदेव के जंगल को बचाने यहां आई है. जंगल कई लोगों का घर होता है. जानवर वहां रहते हैं. जंगल से दवाइया मिलती है. अगर जंगल काट दिए जाएंगे तो वो कहां रहेंगे. फैक्टरियों में जिंदगी नहीं बनती. जिंदगी पर्यावरण में, प्रकृति में है. सरकारों के झूठे आश्वासन अब नहीं चलेंगे. सरकारों ने जो वादा किया है उसे उन्हें निभाना पड़ेगा. हसदेव के जंगल को बचाने के लिए उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर बात रखने की भी बात कही है."

लिसिप्रिया के बारे में जाने: 11 वर्षीय लिसिप्रिया कंगुजम मणिपुर के एक छोटे से गांव की हैं. 2015 में नेपाल में आए भूंकप की खबरें देखकर लिसिप्रिया परिवार के साथ इंफाल से काठमांडू तक सहायता पहुंचाई. इसके बाद 2016 में दिल्ली की प्रदूषण को देखकर पर्यावरण सुरक्षा के लिए मुहिम में जुट गईं. ओडिशा में आए टिटी और फेनी तूफान के बाद उन्होंने जलवायु परिवर्तन के परिणाम को जानकर जल जंगल और जमीन बचाने के लिए अभियान छेड़ी. 2018 में लिसिप्रिया को मंगोलिया में हुए संयुक्त राष्ट्र आपदा सम्मेलन में हिस्सा लेने का मौका मिला. वह भारत वापस आकर पृथ्वी को बचाने के लिए विश्व के नेताओं तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए द चाइल्ड मूवमेंट नाम से संस्था की शुरुआत की. बाद में 2019 में लिसीप्रिया ने स्पेन में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में विश्व के नेताओं को संबोधित भी किया. राइजिंग स्टॉर अवॉर्ड, ग्लोबल चाइल्ड प्रोडिजी अवॉर्ड सहित कई नेशनल और इंटरनेशनल अवॉर्ड हासिल कर अब वह अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ता के रूप में पहचान बना ली हैं.

बिलासपुर: अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण कार्यकर्ता लिसिप्रिया शनिवार को बिलासपुर पहुंची. उन्होंने हसदेव अरण्य को बचाने चल रहे आंदोलन में भाग लिया. लिसिप्रिया ने सरकारों के झूठा आश्वासन को अब बर्दास्त नहीं करने की बात कही. उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार को अपने वादे पूरे करने की मांग रखी है. वहीं लिसिप्रिया ने हसदेव के जंगलों को बचाने के लिए रैली के माध्यम से लोगों से समर्थन की अपील की.

हसदेव जंगल को बचाने निकली पर्यावरण कार्यकर्ता लिसिप्रिया

हसदेव को बचाने निकली लिसिप्रिया: 11 साल की अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ता लिसिप्रिया कंगुजम बिलासपुर में रैली में शामिल हुई. रैली के माध्यम से वह जंगल और उसके फायदों की जानकारी लोगों तक पहुंचाई. यहां उन्होंने कोनहेर गार्डन से रैली निकालकर सरकार और अडानी के खिलाफ नारा लगाया. वे पर्यावरण को लेकर कहा कि "यदि जंगल को काट दिया जाएगा तो जीवन कैसे बचेगा. जंगलों से हमे ऑक्सीजन, पानी और जीवन जीने के लिए वो सब कुछ मिलता है, जिससे जिंदगी चलती है. जंगलों को काट कर पूरी धरती को खत्म किया जा रहा है. हसदेव अरण्य को बचाने की यह लड़ाई किसी एक के लिए नहीं है. वो किसी सरकार या किसी व्यक्ति कर खिलाफ नही बल्कि पर्यावरण को बर्बाद करने वालों के खिलाफ है. वो उनसे लड़ाई कर रही है जो पर्यावरण और प्रकृति का संतुलन बिगाड़ रहे है. उनकी वजह से पूरे प्रदेश, देश और दुनिया खतरे में आ गई है."

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क्या कहती हैं लिसिप्रिया: अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ता लिसिप्रिया ने कहा कि "वो हसदेव के जंगल को बचाने यहां आई है. जंगल कई लोगों का घर होता है. जानवर वहां रहते हैं. जंगल से दवाइया मिलती है. अगर जंगल काट दिए जाएंगे तो वो कहां रहेंगे. फैक्टरियों में जिंदगी नहीं बनती. जिंदगी पर्यावरण में, प्रकृति में है. सरकारों के झूठे आश्वासन अब नहीं चलेंगे. सरकारों ने जो वादा किया है उसे उन्हें निभाना पड़ेगा. हसदेव के जंगल को बचाने के लिए उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर बात रखने की भी बात कही है."

लिसिप्रिया के बारे में जाने: 11 वर्षीय लिसिप्रिया कंगुजम मणिपुर के एक छोटे से गांव की हैं. 2015 में नेपाल में आए भूंकप की खबरें देखकर लिसिप्रिया परिवार के साथ इंफाल से काठमांडू तक सहायता पहुंचाई. इसके बाद 2016 में दिल्ली की प्रदूषण को देखकर पर्यावरण सुरक्षा के लिए मुहिम में जुट गईं. ओडिशा में आए टिटी और फेनी तूफान के बाद उन्होंने जलवायु परिवर्तन के परिणाम को जानकर जल जंगल और जमीन बचाने के लिए अभियान छेड़ी. 2018 में लिसिप्रिया को मंगोलिया में हुए संयुक्त राष्ट्र आपदा सम्मेलन में हिस्सा लेने का मौका मिला. वह भारत वापस आकर पृथ्वी को बचाने के लिए विश्व के नेताओं तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए द चाइल्ड मूवमेंट नाम से संस्था की शुरुआत की. बाद में 2019 में लिसीप्रिया ने स्पेन में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में विश्व के नेताओं को संबोधित भी किया. राइजिंग स्टॉर अवॉर्ड, ग्लोबल चाइल्ड प्रोडिजी अवॉर्ड सहित कई नेशनल और इंटरनेशनल अवॉर्ड हासिल कर अब वह अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ता के रूप में पहचान बना ली हैं.

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