गांधी के ग्राम स्वराज की अवधारणा में नीति निर्माण के दौरान सभी हितधारकों (stakeholders) को शामिल किए जाने की बात है. गांधी की ये संकल्पना समकालीन ग्रामीण भारत में सामाजिक-राजनीतिक बदलाव का माध्यम बनने, और इसके सूत्रपात के प्रति आश्वस्त करती है.
महात्मा गांधी के मुताबिक स्वराज का मतलब स्व-राज (self-rule) और आत्म-संयम (self-restraint) है, ना कि सभी तरह के संयम से आजादी. गांधी जी का दृढ़ मत था कि वास्तविक स्वराज सिर्फ कुछ लोगों के अधिकार हासिल करने से नहीं आएगा.
गांधी का मत था कि स्वराज तभी आ सकता है, जब अधिकारों के दुरुपयोग होने पर इसके विरोध की क्षमता हासिल की जाए. आसान शब्दों में स्वराज हासिल करने के लिए जनसाधारण का सशक्त होना जरूरी है. उन्हें अधिकारियों को नियंत्रित करने की समझ होनी चाहिए.
गांवों में स्वराज का व्यापक अर्थ है, क्योंकि गांधी जी का मानना था कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है. वास्तव में गांधी की सोच के केंद्र में हमेशा गांव ही थे. इसमें भारतीय सामाजिक और राजनीतिक संस्थाएं भी शामिल हैं.
गांधी की कल्पना के ग्राम-स्वराज का शाब्दिक अर्थ गांव का अपना शासन (self-rule) था. इसमें एक गांव का पूरी तरह से गणतंत्र, और अपनी जरूरतों के लिए पड़ोसियों से स्वतंत्र होना शामिल है.
हालांकि, इसके बावजूद, गांधी जहां निर्भरता अनिवार्य हो, ऐसी कई अन्य जरूरतों के लिए गावों का एक-दूसरे पर निर्भर होने के पक्ष में थे.
गांधी जी ने ये महसूस किया था कि राष्ट्रीय स्तर पर स्वराज के लिए ग्राम स्वराज पहली जरूरत है. 1942 में लिखे एक आलेख में गांधी जी लिखते हैं, 'आर्थिक और राजनीतिक ताकतों के एक जगह जमा होने (concentration) से स्वराज के बुनियादी सिद्धांतों के उल्लंघन का खतरा है.
इनकी रक्षा की जा सकती है, जब गांवों को सशक्त कर विकेंद्रीकरण (decentralization) का प्रचार किया जाए. गांव विकेंद्रीकृत सिस्टम की सबसे छोटी इकाई है. इसलिए, राजनीतिक रुप से गांव को इतना छोटा होना चाहिए जहां, महिलाओं समेत सभी लोग फैसला लेने की प्रक्रिया में भाग ले सकें.
महिलाओं को भी मिलें बराबर मौके
गांधी मानते थे कि विकेंद्रीकृत सिस्टम में सभी गांव वालों को बराबर मौके मिलने चाहिए. इसमें गरीब, महिला और हाशिए पर रहने वाले लोग शामिल हों. सभी लोगों को ग्राम पंचायत के प्रस्ताव पर चर्चा का मौका मिले. प्रस्ताव की आलोचना, अनुमोदन और खारिज करने के मौके हों. इसके अलावा ग्राम पंचायत प्रदर्शन के आकलन का भी बराबर मौका मिलना चाहिए.
ऐसा होने पर गांधी का मानना था कि पंचायत बेहतर ढंग से स्थानीय संसाधनों की पहचान कर सकेगी. इससे गांव के आर्थिक विकास के लिए संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग किया जा सकेगा. इस तरह से गांव भागीदारी वाले लोकतंत्र और आर्थिक स्वायत्तता की बुनियादी संस्था बन जाती है.
अंग्रेज शासकों द्वारा प्रचारित औद्योगीकरण से असहमति जताते हुए गांधी ने स्वदेशी और हाथ से बने औद्योगिक उत्पादों को गांवों में बनाने की वकालत की थी. गांधी के शब्दों में 'बड़े पैमाने पर उत्पादन नहीं, जनसाधारण के द्वारा उत्पादन.' “Not mass production, but production by the masses.”
भारत के आर्थिक विकास के नजरिए से ग्राम स्वराज गांधी जी की विचारधारा के केंद्र में था. गांधी का ग्राम स्वराज सिर्फ पुराने गांव का पुनर्निर्माण नहीं था. बुनियादी जरूरतों के लिए आत्मनिर्भरता, ग्रामीण पुनर्निमाण के लिए गांधी की आधारभूत शर्तों में एक थी.
पढ़ें: सुंदर लाल बहुगुणा को आज भी याद हैं गांधी की बातें, सपना था 'स्वावलंबी भारत'
कपड़े, खाना और अन्य बुनियादी जरूरतों का गांव में ही उत्पादन होना चाहिए. इससे गांव में पूर्ण रोजगार जैसे हालात बनेंगे, और बेहतर मौके की तलाश में गांव से शहरों की ओर पलायन भी रुकेगा.
गांधी जी ने लिखा 'सभी गांव आत्मनिर्भर होने चाहिए, जहां जीवन के लिए अनिवार्य- खाना, कपड़ा, साफ पानी, स्वच्छता, रहने का घर, शिक्षा मिले. समाज के लिए उपयोगी अन्य सभी सामुदायिक जरूरतें पूरी होने का प्रावधान हो.'
आदर्श गांव कैसा हो
गांव में विवादों के निपटारे के लिए पंचायत हो. सभी धर्मावलंबियों के लिए पूजा-इबादत की जगहें हों. एक सहकारी गोशाला (dairy), प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल हों, जहां औद्योगिक शिक्षा भी दी जाए. गांव में धर्मशाला भी हो, जहां पथिक/आगंतुक (visitor) बीच यात्रा के दौरान आराम कर सकें. संक्षेप में एक आदर्श गांव वही है जो आत्म-निर्भर होने के साथ-साथ, कई मायनों में एक-दूसरे पर भी निर्भर (inter-dependent) हो.
(लेखक- राजीव राजन)
आलेख में लिखे विचार लेखक के निजी हैं. इससे ईटीवी भारत का कोई संबंध नहीं है.