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तौकते चक्रवात के बाद फिर आधा झुकाया गया द्वारकाधीश मंदिर का ध्वज, पढ़ें पूरी खबर

तौकते तूफान के बाद एक बार फिर से द्वारकाधीश मंदिर के ध्वज को आधा झुका दिया गया है. द्वारकाधीश मंदिर पर 52 गज का ध्वज फहराया जाता है. इस बार बिपरजॉय चक्रवात के कारण ध्वज को आधा झुकाया गया है.

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Published : Jun 11, 2023, 7:34 PM IST

द्वारका: गुजरात के द्वारका में तीर्थयात्रा द्वारकाधीश के जगत मंदिर के शीर्ष पर ध्वज का अपना महत्व है. भगवान के भक्त बड़ी धूमधाम से ध्वजारोहण करने पहुंचते हैं. आज बिपरजॉय तूफान की संभावना को देखते हुए द्वारकाधीश मंदिर के व्यवस्थापक ने सुझाव दिया है कि मंदिर के शीर्ष पर ध्वज फहराने के बजाए ध्वज को आधे पर फहराया जाए. गौरतलब है कि तूफान को लेकर जिला प्रशासन द्वारा सभी सावधानियां बरती जा रही हैं. द्वारका में जगत मंदिर पर फहराया जाने वाला ध्वज शिखर पर फहराने के बजाए आधी काठी पर फहराया गया है.

द्वारका मंदिर में वर्षों से चली आ रही परंपरा है कि मंदिर में रोजाना पांच बार ध्वज लगाया जाता है. अधिकांश मंदिरों में ध्वज तक जाने के लिए सीढ़ियां होती हैं लेकिन द्वारका मंदिर में सीढ़ियां नहीं है. द्वारका मंदिर में आज भी परंपरा के अनुसार अबोटी ब्राह्मण ही ध्वज लगाते हैं. इसके लिए 5 से 6 परिवार हैं, जो बारी-बारी से मंदिर में रोजाना 5 ध्वज चढ़ाते हैं.

अबोटी ब्राह्मण जो मंदिर पर ध्वज फहराने का कार्य करते हैं, उनकी विशेषता यह है कि वे स्वयं ही ध्वज को मंदिर पर चढ़कर फहराते हैं. यह एक तरह का बड़ा साहसिक कार्य है. जगत मंदिर की 150 फीट ऊंची चोटी पर चढ़ना और ध्वज अर्पित करना किसी जोखिम और रोमांच से कम नहीं है. मंदिर की खड़ी चोटी पर एक कठिन चढ़ाई पार करनी पड़ती है, फिर भी कोई भी मौसम हो, कितनी भी सर्दी, गर्मी या बरसात हो, यह प्रथा कभी नहीं टूटती. इस कार्य को सेवा समझकर अबोटी ब्राह्मण एक दिन में पांच ध्वज अर्पित करते हैं.

खासकर मानसून और तेज़ हवाओं के दौरान यह काम बहुत जोखिम भरा होता है. हालाँकि, ऐसे समय में भी प्रथा बंद नहीं होती है. अबोटी ब्राह्मणों की कृष्ण भक्ति इतनी अनूठी है कि वे किसी भी विपत्ति में भी ध्वज चढ़ाने से नहीं चूकते.

2001 के भूकंप और पिछले साल तौकते चक्रवात के दौरान भी मंदिर पर ध्वज लगाइ गई थी. गौरतलब है कि एक साल पहले तौकते चक्रवात के दौरान द्वारकाधीश मंदिर पर आधे पर ध्वज लगाई गई थी. आज एक बार फिर द्वारकाधीश मंदिर पर ध्वज को आधि काठी पर लगाई गई है.

द्वारकाधीश मंदिर पर 52 गज का ध्वज फहराया जाता है. कई मान्यताएं हैं जिसके पीछे द्वारकानगरी पर 56 प्रकार के यादवों का शासन था, जिनमें से प्रत्येक के अपने महल थे और प्रत्येक के अपने अलग झंडे थे. अन्य 52 प्रकार के यादवों के प्रतीक के रूप में भगवान द्वारकाधीश के मंदिर पर 52 गज का ध्वज फहराया जाता है. इसके अलावा 12 राशियां, 27 नक्षत्र, 10 दिशा, सूर्य, चंद्र और श्री द्वारकाधीश मिलाकर 52 होते हैं. इस प्रकार अनेक मान्यताएँ प्रचलित हैं.

द्वारकाधीश की मंगला आरती सुबह 7.30 बजे, श्रृंगार 10.30 बजे, उसके बाद 11.30 बजे और शाम की आरती 7.45 बजे और शयन आरती सुबह 8.30 बजे होती है. इस दौरान ध्वज चढ़ाई जाती है. मंदिर पूजा आरती गुगली ब्राह्मणों द्वारा की जाती है. ध्वज अबोटी ब्राह्मण द्वारा ही फहराया जाता है. यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि नए ध्वज को फहराने के बाद पुराने ध्वज पर केवल ब्राह्मण ही अभय के अधिकारी होते हैं और उन्हीं ध्वज से भगवान के वस्त्र तैयार किए जाते हैं.

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द्वारका: गुजरात के द्वारका में तीर्थयात्रा द्वारकाधीश के जगत मंदिर के शीर्ष पर ध्वज का अपना महत्व है. भगवान के भक्त बड़ी धूमधाम से ध्वजारोहण करने पहुंचते हैं. आज बिपरजॉय तूफान की संभावना को देखते हुए द्वारकाधीश मंदिर के व्यवस्थापक ने सुझाव दिया है कि मंदिर के शीर्ष पर ध्वज फहराने के बजाए ध्वज को आधे पर फहराया जाए. गौरतलब है कि तूफान को लेकर जिला प्रशासन द्वारा सभी सावधानियां बरती जा रही हैं. द्वारका में जगत मंदिर पर फहराया जाने वाला ध्वज शिखर पर फहराने के बजाए आधी काठी पर फहराया गया है.

द्वारका मंदिर में वर्षों से चली आ रही परंपरा है कि मंदिर में रोजाना पांच बार ध्वज लगाया जाता है. अधिकांश मंदिरों में ध्वज तक जाने के लिए सीढ़ियां होती हैं लेकिन द्वारका मंदिर में सीढ़ियां नहीं है. द्वारका मंदिर में आज भी परंपरा के अनुसार अबोटी ब्राह्मण ही ध्वज लगाते हैं. इसके लिए 5 से 6 परिवार हैं, जो बारी-बारी से मंदिर में रोजाना 5 ध्वज चढ़ाते हैं.

अबोटी ब्राह्मण जो मंदिर पर ध्वज फहराने का कार्य करते हैं, उनकी विशेषता यह है कि वे स्वयं ही ध्वज को मंदिर पर चढ़कर फहराते हैं. यह एक तरह का बड़ा साहसिक कार्य है. जगत मंदिर की 150 फीट ऊंची चोटी पर चढ़ना और ध्वज अर्पित करना किसी जोखिम और रोमांच से कम नहीं है. मंदिर की खड़ी चोटी पर एक कठिन चढ़ाई पार करनी पड़ती है, फिर भी कोई भी मौसम हो, कितनी भी सर्दी, गर्मी या बरसात हो, यह प्रथा कभी नहीं टूटती. इस कार्य को सेवा समझकर अबोटी ब्राह्मण एक दिन में पांच ध्वज अर्पित करते हैं.

खासकर मानसून और तेज़ हवाओं के दौरान यह काम बहुत जोखिम भरा होता है. हालाँकि, ऐसे समय में भी प्रथा बंद नहीं होती है. अबोटी ब्राह्मणों की कृष्ण भक्ति इतनी अनूठी है कि वे किसी भी विपत्ति में भी ध्वज चढ़ाने से नहीं चूकते.

2001 के भूकंप और पिछले साल तौकते चक्रवात के दौरान भी मंदिर पर ध्वज लगाइ गई थी. गौरतलब है कि एक साल पहले तौकते चक्रवात के दौरान द्वारकाधीश मंदिर पर आधे पर ध्वज लगाई गई थी. आज एक बार फिर द्वारकाधीश मंदिर पर ध्वज को आधि काठी पर लगाई गई है.

द्वारकाधीश मंदिर पर 52 गज का ध्वज फहराया जाता है. कई मान्यताएं हैं जिसके पीछे द्वारकानगरी पर 56 प्रकार के यादवों का शासन था, जिनमें से प्रत्येक के अपने महल थे और प्रत्येक के अपने अलग झंडे थे. अन्य 52 प्रकार के यादवों के प्रतीक के रूप में भगवान द्वारकाधीश के मंदिर पर 52 गज का ध्वज फहराया जाता है. इसके अलावा 12 राशियां, 27 नक्षत्र, 10 दिशा, सूर्य, चंद्र और श्री द्वारकाधीश मिलाकर 52 होते हैं. इस प्रकार अनेक मान्यताएँ प्रचलित हैं.

द्वारकाधीश की मंगला आरती सुबह 7.30 बजे, श्रृंगार 10.30 बजे, उसके बाद 11.30 बजे और शाम की आरती 7.45 बजे और शयन आरती सुबह 8.30 बजे होती है. इस दौरान ध्वज चढ़ाई जाती है. मंदिर पूजा आरती गुगली ब्राह्मणों द्वारा की जाती है. ध्वज अबोटी ब्राह्मण द्वारा ही फहराया जाता है. यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि नए ध्वज को फहराने के बाद पुराने ध्वज पर केवल ब्राह्मण ही अभय के अधिकारी होते हैं और उन्हीं ध्वज से भगवान के वस्त्र तैयार किए जाते हैं.

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