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स्वतंत्रता सेनानी स्मारक बदहाल, कोई नहीं सुन रहा पुकार

जिले में एक तरफ पूरा प्रशासन गणतंत्र दिवस समारोह को बेहतर ढंग से मनाने की तैयारी में जुटा हुआ है. वहीं दूसरी तरफ अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की लापरवाही से स्वतंत्रता सैनानी गुलाब चंद्र गुप्त उर्फ गुलाली बाबू की नगर में बनी एक मात्र प्रतिमा धूल में सनी है.

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Published : Jan 25, 2021, 11:09 PM IST

बदहाल स्वतंत्रता सेनानी गुलाब चंद्र गुप्त की प्रतिमा
बदहाल स्वतंत्रता सेनानी गुलाब चंद्र गुप्त की प्रतिमा

पश्चिमी चंपारणः जिले में एक तरफ पूरा प्रशासनिक अमला 26 जनवरी की तैयारियों में लगा हुआ है. वहीं दूसरी तरफ जिले के चनपटिया स्थित स्वतंत्रता सेनानी रहे गुलाब चंद्र गुप्त उर्फ गुलाली बाबू की शहर में बनी एकमात्र प्रतिमा बदहाल है. अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को इन महापुरुषों की याद किसी विशेष दिन पर ही आती है. जब इन महापुरुषों की जयंती और पुण्य तिथी के दिन प्रतिमास्थल पर लोग एकत्र होते हैं, तब प्रतिमा की उपेक्षा पर ध्यान जाता है. उस समय थोड़ा शोर शराबा होता है फिर लोग इस मुद्दे को भूल जाते हैं

क्या राजनीतिक स्वार्थ के लिए लगाई जाती है प्रतिमा?

उपेक्षित गुलाब चन्द्र की प्रतिमा को देखकर तरस आता है. मन में प्रश्न उठता है कि जब हम प्रतिमाओं को सम्मान पूर्वक सुरक्षित नहीं रख सकते, तो फिर उन्हें स्थापित क्यों करते हैं ? क्या महज राजनीतिक स्वार्थ पूर्ति के लिए ? प्रतिमा स्थापित करने के पीछे मंशा यही होती है कि लोग संबंधित महापुरुषों के आदर्शों से प्रेरणा लें और साथ ही आजादी के लिए दिए गए उनके बलिदान को याद रखें.

गुलाब बाबू को अंग्रेजी हुकूमत ने कालापानी की सजा सुनाई थी

स्वतंत्रता सेनानी गुलाबचंद्र गुप्त का जन्म पश्चिम चम्पारण के चनपटिया में 17 अप्रैल 1904 को बेहद ही साधारण परिवार में हुआ था. इन्होंने आजादी की लड़ाई में महती भूमिका निभाई थी. स्वतंत्रता के आंदोलन के दौरान अंग्रेजी हुकूमत ने इन्हें कालापानी की सजा सुनाई थी. गुलाली बाबू ने देश के लिए कालापानी की कठोर सजा भी काटी. इनकी मृत्यु 18 दिसंबर 1982 को हो गई. आज भी इनका परिवार एक साधारण जीवन व्यातीत करता है.

पश्चिमी चंपारणः जिले में एक तरफ पूरा प्रशासनिक अमला 26 जनवरी की तैयारियों में लगा हुआ है. वहीं दूसरी तरफ जिले के चनपटिया स्थित स्वतंत्रता सेनानी रहे गुलाब चंद्र गुप्त उर्फ गुलाली बाबू की शहर में बनी एकमात्र प्रतिमा बदहाल है. अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को इन महापुरुषों की याद किसी विशेष दिन पर ही आती है. जब इन महापुरुषों की जयंती और पुण्य तिथी के दिन प्रतिमास्थल पर लोग एकत्र होते हैं, तब प्रतिमा की उपेक्षा पर ध्यान जाता है. उस समय थोड़ा शोर शराबा होता है फिर लोग इस मुद्दे को भूल जाते हैं

क्या राजनीतिक स्वार्थ के लिए लगाई जाती है प्रतिमा?

उपेक्षित गुलाब चन्द्र की प्रतिमा को देखकर तरस आता है. मन में प्रश्न उठता है कि जब हम प्रतिमाओं को सम्मान पूर्वक सुरक्षित नहीं रख सकते, तो फिर उन्हें स्थापित क्यों करते हैं ? क्या महज राजनीतिक स्वार्थ पूर्ति के लिए ? प्रतिमा स्थापित करने के पीछे मंशा यही होती है कि लोग संबंधित महापुरुषों के आदर्शों से प्रेरणा लें और साथ ही आजादी के लिए दिए गए उनके बलिदान को याद रखें.

गुलाब बाबू को अंग्रेजी हुकूमत ने कालापानी की सजा सुनाई थी

स्वतंत्रता सेनानी गुलाबचंद्र गुप्त का जन्म पश्चिम चम्पारण के चनपटिया में 17 अप्रैल 1904 को बेहद ही साधारण परिवार में हुआ था. इन्होंने आजादी की लड़ाई में महती भूमिका निभाई थी. स्वतंत्रता के आंदोलन के दौरान अंग्रेजी हुकूमत ने इन्हें कालापानी की सजा सुनाई थी. गुलाली बाबू ने देश के लिए कालापानी की कठोर सजा भी काटी. इनकी मृत्यु 18 दिसंबर 1982 को हो गई. आज भी इनका परिवार एक साधारण जीवन व्यातीत करता है.

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