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बिहार के एकमात्र जनजातीय बालिका विद्यालय की हालत पर हाई कोर्ट ने क्यों जतायी चिंता, जानिये..

बिहार का एकमात्र जनजाति बालिका विद्यालय (Scheduled Tribe Girls School) बगहा के हरनाटांड़ में है. स्कूल की बदहाल स्थिति को उच्च न्यायालय ने गंभीरता से लिया है. हाई कोर्ट ने कल्याण विभाग और शिक्षा विभाग के निदेशक से जवाब तलब करते हुए विद्यालय की स्थिति सुधारने के लिए की गई कार्यवाही का ब्योरा मांगा है. इस विद्यालय की स्थिति का जायजा लेने Etv bharat की टीम मौके पर पहुंची. पढ़िये-ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट...

ग्राउंड रिपोर्ट
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Published : Nov 21, 2022, 9:28 PM IST

बगहा: पश्चिम चम्पारण जिले में संचालित राज्य के एकमात्र अनुसूचित जनजाति बालिका विद्यालय बदहाल स्थिति में (Bagaha Tribal Girls School in bad condition) है. इसे लेकर उच्च न्यायालय काफी गंभीर है. हाई कोर्ट ने मामले में संज्ञान लेते हुए कल्याण विभाग और शिक्षा विभाग के अधिकारियों को तलब किया है. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने विकास कुमार ने बताया कि 29 नवंबर को कोर्ट ने राज्य सरकार के शिक्षा विभाग के निदेशक और समाज कल्याण विभाग के निदेशक को स्थिति स्पष्ट करने के लिए तलब किया है.

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वर्ष 2013 में राजकीय विद्यालय का दर्जाः हरनाटांड में 1981 से जनजाति बालिका विद्यालय संचालित हो रहा है. वर्ष 2013 में राज्य सरकार ने इसको राजकीय विद्यालय में तब्दील करते हुए दसवीं कक्षा तक पठन पाठन का आदेश दिया. उसके ठीक एक वर्ष बाद 2014 में इस विद्यालय को 10+2 का दर्जा दे दिया गया, लेकिन संसाधनों के नाम पर कुछ मुहैया नहीं कराया गया. यह विद्यालय पहले कमिटी और ट्रस्ट द्वारा संचालित होता था. कक्षा 1 से 8 तक पठन पाठन होता था.

छात्राओं की संख्या घटने लगीः इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव में छात्राएं स्कूल छोड़ना शुरू कर दी. अचानक से छात्राओं की संख्या घटने लगी, जिसके बाद बिहार आदिवासी अधिकार फोरम के प्रमोद कुमार सिंह और अशोक कुमार थारू ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की. जनहित याचिका दायर करने के बाद न्यायालय ने इसे गंभीरता से लेते हुए शिक्षा विभाग से जवाब तलब किया. तब विद्यालय में चार शिक्षक डेपुटेशन पर भेजे गए. इसके अलावा पूर्व से कार्यरत शिक्षकों को भी पठन पाठन के कार्य से जोड़ा रखा गया, लेकिन उन्हें अब तक सैलरी नहीं मिली है.

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प्राथमिक क्लास की कक्षाएं बंद हो गयीः विद्यालय के प्रधानाचार्य लक्ष्मीकांत काजी का कहना है कि विद्यालय की स्थापना 1981 में एक कमिटी के माध्यम से की गई. 1995 तक इसको पहली कक्षा से 8 वी कक्षा तक संचालित किया गया. फिर कमिटी ने 1991 में निर्णय लिया की इस स्कूल को सिर्फ बालिकाओं के लिए संचालित करना है. इस वजह से पहली से पांचवीं कक्षा तक के क्लास पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया, नतीजतन प्राथमिक क्लास की कक्षाएं धीरे धीरे बंद हो गईं. बालिकाओं के लिए छठे क्लास से दसवीं तक की पढ़ाई होने लगी. इस दौरान इस विद्यालय के छात्राओं की संख्या प्रत्येक कक्षा में 100 से 200 होती थी. पूरे विद्यालय में 1200 से 1400 छात्राओं की संख्या थी.

सरकारी योजना का लाभ नहींः वर्ष 2013 में जब सरकार ने विद्यालय को राजकीय किया तो शुरू शुरू में बच्चों के लिए छात्रवृत्ति, पोशाक व मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना का लाभ दिया गया. उस दौरान विद्यालय में नौवीं और दसवीं कक्षा में 400 से 500 छात्राएं थीं. छात्राओं की ज्यादा संख्या के कारण 5 सेक्शन में कक्षा को बांट कर संचालित किया जाता था. जब विभाग ने पोशाक, छात्रवृत्ति और साइकिल योजना का लाभ देना बंद कर दिया और विद्यालय के संसाधनों को बढ़ाने पर ध्यान नहीं दिया तो बच्चों की संख्या घटने लगी. वर्तमान में नौवीं कक्षा में 50 और दसवीं में महज 25 छात्राएं ही नामंकित हैं. वहीं इंटर के तकरीबन 600 छात्राएं नामंकित हैं.

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छात्रावास को बंद करने का आदेशः बता दें कि राजकीय युगल साह जनजाति बालिका विद्यालय के नाम 6 एकड़ से ज्यादा की जमीन है. ऐसे में आदिवासी बहुल इलाके की बालिकाओं को बेहतर शिक्षा मुहैया कराने को लेकर जो प्रयास शुरू हुआ उसको उस समय गहरा झटका लगा जब सरकार ने अधिग्रहण करते ही विद्यालय के छात्रावास को बंद करने का आदेश दिया. इतना हीं नहीं शिक्षा विभाग पश्चिमी चंपारण द्वारा मौखिक तौर पर वर्ग छः से आठ तक की कक्षा भी बंद कर दी गई, जबकि इस विद्यालय में सभी वर्गों के लिए आज भी पर्याप्त शिक्षक मौजूद हैं.


अधिग्रहण के बाद संसाधन नहीं बढ़ेः जनहित याचिका दायर करने वाले प्रमोद कुमार सिंह और अशोक कुमार बताते हैं कि पूरे बिहार में महज एक जनजाति बालिका विद्यालय है. उसकी स्थिति भी काफी दयनीय है. लिहाजा उन्होंने पीआईएल दाखिल कर न्यायलय के ध्यान में यह बात लाई. सरकार द्वारा अधिग्रहण किए जाने के दस वर्षो बाद भी यहां किसी भी संसाधन को बढ़ावा नहीं दिया गया. विद्यालय में आठवीं कक्षा से इंटर तक पढ़ती आ रही शालिनी, रंजना और बबिता कुमारी बताती हैं कि वह जबसे इस विद्यालय में पढ़ रही है तबसे आज तक संसाधनों का अभाव है. यहां तक कि किसी भी बालिका को सरकार और शिक्षा विभाग की तरफ से मिलने वाली किसी भी योजना का लाभ उन्हें नहीं दी जाती है. छात्रवृत्ति, पोशाक व साइकिल योजना नहीं मिलने के कारण छात्राओं ने दूसरे विद्यालयों में नामांकन कराना शुरू कर दिया.


कोर्ट से उम्मीदः आदिवासियों की पूरी जनसंख्या तकरीबन 2 लाख 50 हजार से ज्यादा है. लेकिन जनजाति बालिका विद्यालय महज एक ही है. ऐसे में सरकार की उदासीनता से छात्राओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अब मामला चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ के पास है. जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त कि अनुसूचित जनजाति के छात्रों की इतनी बड़ी संख्या में स्कूल बीच में छोड़ना गंभीर है. कोर्ट ने इस सम्बन्ध में की गई सुधारात्मक कार्रवाई के बारे में पूरा ब्योरा देने का निर्देश देते हुए पश्चिम चम्पारण के हारनाटांड में एकमात्र अनुसूचित जनजाति बालिका विद्यालय की स्थिति सुधारने के लिए की गई कार्रवाई का ब्योरा भी तलब किया है.

'पूरे बिहार में महज एक जनजाति बालिका विद्यालय है. उसकी स्थिति भी काफी दयनीय है. लिहाजा उन्होंने पीआईएल दाखिल कर न्यायलय के ध्यान में यह बात लाई. सरकार द्वारा अधिग्रहण किए जाने के दस वर्षो बाद भी यहां किसी भी संसाधन को बढ़ावा नहीं दिया गया'-अशोक कुमार, याचिकाकर्ता

बगहा: पश्चिम चम्पारण जिले में संचालित राज्य के एकमात्र अनुसूचित जनजाति बालिका विद्यालय बदहाल स्थिति में (Bagaha Tribal Girls School in bad condition) है. इसे लेकर उच्च न्यायालय काफी गंभीर है. हाई कोर्ट ने मामले में संज्ञान लेते हुए कल्याण विभाग और शिक्षा विभाग के अधिकारियों को तलब किया है. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने विकास कुमार ने बताया कि 29 नवंबर को कोर्ट ने राज्य सरकार के शिक्षा विभाग के निदेशक और समाज कल्याण विभाग के निदेशक को स्थिति स्पष्ट करने के लिए तलब किया है.

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वर्ष 2013 में राजकीय विद्यालय का दर्जाः हरनाटांड में 1981 से जनजाति बालिका विद्यालय संचालित हो रहा है. वर्ष 2013 में राज्य सरकार ने इसको राजकीय विद्यालय में तब्दील करते हुए दसवीं कक्षा तक पठन पाठन का आदेश दिया. उसके ठीक एक वर्ष बाद 2014 में इस विद्यालय को 10+2 का दर्जा दे दिया गया, लेकिन संसाधनों के नाम पर कुछ मुहैया नहीं कराया गया. यह विद्यालय पहले कमिटी और ट्रस्ट द्वारा संचालित होता था. कक्षा 1 से 8 तक पठन पाठन होता था.

छात्राओं की संख्या घटने लगीः इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव में छात्राएं स्कूल छोड़ना शुरू कर दी. अचानक से छात्राओं की संख्या घटने लगी, जिसके बाद बिहार आदिवासी अधिकार फोरम के प्रमोद कुमार सिंह और अशोक कुमार थारू ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की. जनहित याचिका दायर करने के बाद न्यायालय ने इसे गंभीरता से लेते हुए शिक्षा विभाग से जवाब तलब किया. तब विद्यालय में चार शिक्षक डेपुटेशन पर भेजे गए. इसके अलावा पूर्व से कार्यरत शिक्षकों को भी पठन पाठन के कार्य से जोड़ा रखा गया, लेकिन उन्हें अब तक सैलरी नहीं मिली है.

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प्राथमिक क्लास की कक्षाएं बंद हो गयीः विद्यालय के प्रधानाचार्य लक्ष्मीकांत काजी का कहना है कि विद्यालय की स्थापना 1981 में एक कमिटी के माध्यम से की गई. 1995 तक इसको पहली कक्षा से 8 वी कक्षा तक संचालित किया गया. फिर कमिटी ने 1991 में निर्णय लिया की इस स्कूल को सिर्फ बालिकाओं के लिए संचालित करना है. इस वजह से पहली से पांचवीं कक्षा तक के क्लास पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया, नतीजतन प्राथमिक क्लास की कक्षाएं धीरे धीरे बंद हो गईं. बालिकाओं के लिए छठे क्लास से दसवीं तक की पढ़ाई होने लगी. इस दौरान इस विद्यालय के छात्राओं की संख्या प्रत्येक कक्षा में 100 से 200 होती थी. पूरे विद्यालय में 1200 से 1400 छात्राओं की संख्या थी.

सरकारी योजना का लाभ नहींः वर्ष 2013 में जब सरकार ने विद्यालय को राजकीय किया तो शुरू शुरू में बच्चों के लिए छात्रवृत्ति, पोशाक व मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना का लाभ दिया गया. उस दौरान विद्यालय में नौवीं और दसवीं कक्षा में 400 से 500 छात्राएं थीं. छात्राओं की ज्यादा संख्या के कारण 5 सेक्शन में कक्षा को बांट कर संचालित किया जाता था. जब विभाग ने पोशाक, छात्रवृत्ति और साइकिल योजना का लाभ देना बंद कर दिया और विद्यालय के संसाधनों को बढ़ाने पर ध्यान नहीं दिया तो बच्चों की संख्या घटने लगी. वर्तमान में नौवीं कक्षा में 50 और दसवीं में महज 25 छात्राएं ही नामंकित हैं. वहीं इंटर के तकरीबन 600 छात्राएं नामंकित हैं.

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छात्रावास को बंद करने का आदेशः बता दें कि राजकीय युगल साह जनजाति बालिका विद्यालय के नाम 6 एकड़ से ज्यादा की जमीन है. ऐसे में आदिवासी बहुल इलाके की बालिकाओं को बेहतर शिक्षा मुहैया कराने को लेकर जो प्रयास शुरू हुआ उसको उस समय गहरा झटका लगा जब सरकार ने अधिग्रहण करते ही विद्यालय के छात्रावास को बंद करने का आदेश दिया. इतना हीं नहीं शिक्षा विभाग पश्चिमी चंपारण द्वारा मौखिक तौर पर वर्ग छः से आठ तक की कक्षा भी बंद कर दी गई, जबकि इस विद्यालय में सभी वर्गों के लिए आज भी पर्याप्त शिक्षक मौजूद हैं.


अधिग्रहण के बाद संसाधन नहीं बढ़ेः जनहित याचिका दायर करने वाले प्रमोद कुमार सिंह और अशोक कुमार बताते हैं कि पूरे बिहार में महज एक जनजाति बालिका विद्यालय है. उसकी स्थिति भी काफी दयनीय है. लिहाजा उन्होंने पीआईएल दाखिल कर न्यायलय के ध्यान में यह बात लाई. सरकार द्वारा अधिग्रहण किए जाने के दस वर्षो बाद भी यहां किसी भी संसाधन को बढ़ावा नहीं दिया गया. विद्यालय में आठवीं कक्षा से इंटर तक पढ़ती आ रही शालिनी, रंजना और बबिता कुमारी बताती हैं कि वह जबसे इस विद्यालय में पढ़ रही है तबसे आज तक संसाधनों का अभाव है. यहां तक कि किसी भी बालिका को सरकार और शिक्षा विभाग की तरफ से मिलने वाली किसी भी योजना का लाभ उन्हें नहीं दी जाती है. छात्रवृत्ति, पोशाक व साइकिल योजना नहीं मिलने के कारण छात्राओं ने दूसरे विद्यालयों में नामांकन कराना शुरू कर दिया.


कोर्ट से उम्मीदः आदिवासियों की पूरी जनसंख्या तकरीबन 2 लाख 50 हजार से ज्यादा है. लेकिन जनजाति बालिका विद्यालय महज एक ही है. ऐसे में सरकार की उदासीनता से छात्राओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अब मामला चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ के पास है. जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त कि अनुसूचित जनजाति के छात्रों की इतनी बड़ी संख्या में स्कूल बीच में छोड़ना गंभीर है. कोर्ट ने इस सम्बन्ध में की गई सुधारात्मक कार्रवाई के बारे में पूरा ब्योरा देने का निर्देश देते हुए पश्चिम चम्पारण के हारनाटांड में एकमात्र अनुसूचित जनजाति बालिका विद्यालय की स्थिति सुधारने के लिए की गई कार्रवाई का ब्योरा भी तलब किया है.

'पूरे बिहार में महज एक जनजाति बालिका विद्यालय है. उसकी स्थिति भी काफी दयनीय है. लिहाजा उन्होंने पीआईएल दाखिल कर न्यायलय के ध्यान में यह बात लाई. सरकार द्वारा अधिग्रहण किए जाने के दस वर्षो बाद भी यहां किसी भी संसाधन को बढ़ावा नहीं दिया गया'-अशोक कुमार, याचिकाकर्ता

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