बेतियाः 21वीं सदी में जब लोग चांद और मंगल पर जाने की बात कर रहे हैं. उस समय जिले के लोग चचरी पुल के भरोसे जीने को मजबूर हैं. इलाके के लोग रोजाना जान जोखिम में डालकर आने-जाने को मजबूर हैं.
बाइक भी चलती है इस पर
यह चचरी पुल मझौलिया प्रखंड और सिकटा प्रखंड को जोड़ता है. दोनों तरफ के दर्जनों गांव के लोग इसके सहारे आना-जाना करते हैं. स्कूली बच्चों से लेकर महिला, बुजुर्ग, साइकिल और बाइक सवार भी इसी के भरोसे आते-जाते हैं.
निर्माण में 75 हजार आती है लागत
स्थानीय लोग बताते हैं कि यह चचरी पुल ही उनका एक मात्र सहारा है और यह भी बाढ़ के दिनों में बह जाता है. स्थानीय लोग आपसी सहयोग से इसका निर्माण कराते हैं. जिसमें करीब 75 हजार रुपए लागत आती है.
जनप्रतिनिधि और अधिकारी नहीं लेते हैं सुध
लोगों ने बताया कि बरतास के दिनों में पुल ध्वस्त हो जाने से 4 से 5 महीने आवाजाही में परेशानी होती है. बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं. ग्रामीण कई बार अधिकारी और जनप्रतिनिधि से गुहार लगा चुके हैं. लेकिन कोई सुध लेने नहीं आता है. नेता केवल चुनाव के वक्त ही आते हैं.
बारिश में टूट जाता है संपर्क
बारिश के दिनों में पुल ध्वस्थ हो जाने से मझौलिया प्रखंड और सिकटा प्रखंड का संपर्क टूट जाता है. इससे दोनों ही प्रखंडों को दर्जनों पंयायतों के लोग प्रभावित होते हैं. तब आवाजाही का एक मात्र साधन नाव ही होता है, वो भी सरकार की ओर से उपलब्ध नहीं कराए जाते.
खोखले साबित हो रहे सरकारी दावे
सीएम नीतीश कुमार ने प्रदेश के किसी भी कोने से सड़क मार्ग से 5 घंटे में राजधानी पहुंचने का लक्ष्य रखा है. लेकिन यदि इस तरह दो प्रखंडों का संपर्क इनता चुनौतीपूर्ण होगा तो उस लक्ष्य को कैसे पूरा किया जाएगा, यह अपने आप में बड़ा सवाल है.