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उपेक्षा की वजह से अपनी पहचान खो रही है संस्कृत! नौकरी नहीं मिलने से छात्र भी बना रहे दूरी

देश की संस्कृति और सभ्यता की पहचान रही संस्कृत भाषा का अस्तित्व खतरे में पड़ता दिख रहा है. सूबे सहित पश्चिम चंपारण जिले में भी संस्कृत विद्यालयों की हालत खस्ताहाल है. भवन काफी पुराने और जर्जर हो चुके हैं. इसके बावजूद सरकार का इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रही है.

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उपेक्षा की वजह से अपनी पहचान खो रही है संस्कृत
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Published : Jan 8, 2020, 10:05 AM IST

Updated : Jan 8, 2020, 11:34 AM IST

पश्चिम चंपारण: देश के प्राचीनतम भाषाओं में से एक संस्कृत अब अपनी पहचान खोने की कगार पर है. सरकारी उदासीनता का आलम ये है कि संस्कृत विद्यालयों के भवन जर्जर स्थिति में पहुंच गए हैं. इसके साथ ही न इस विषय के शिक्षक मिल रहे हैं और नौकरी नहीं मिलने की वजह से छात्र भी इसे पढ़ना नहीं चाह रहे हैं.

खतरे में संस्कृत का अस्तित्व
देश की संस्कृति और सभ्यता की पहचान रही संस्कृत भाषा का अस्तित्व खतरे में पड़ता दिख रहा है. सूबे सहित पश्चिम चंपारण जिले में भी संस्कृत विद्यालयों की हालत खस्ताहाल है. भवन काफी पुराने और जर्जर हो चुके हैं. इसके बावजूद सरकार इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रही है.

उपेक्षा की वजह से संस्कृत खो रहा अपनी पहचान

छात्र बना रहे दूरी
राज्य संस्कृत बोर्ड द्वारा संचालित हो रहे जिले के अधिकांश संस्कृत विद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी है. संस्कृत विद्यालय के प्रधानाचार्य ने बताया कि इस विषय से पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं के लिए रोजगार के अवसर नहीं है. इस वजह से वर्तमान समय में 8वीं और 10वीं क्लास के बाद कोई छात्र ये विषय पढ़ना नहीं चाहता है.

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संस्कृत विद्यालय की जर्जर हालत

हो रही उपेक्षा
राज्य सरकार द्वारा इन विद्यालयों में मिड डे मील, छात्रवृति और किताबों के अलावा कोई सुविधा नहीं दी जाती है. यहां तक कि इनको भवन तक नहीं दिया जाता है. सरकार की उपेक्षा की वजह से राज्य में संस्कृत अपनी पहचान खोता जा रहा है.

पश्चिम चंपारण: देश के प्राचीनतम भाषाओं में से एक संस्कृत अब अपनी पहचान खोने की कगार पर है. सरकारी उदासीनता का आलम ये है कि संस्कृत विद्यालयों के भवन जर्जर स्थिति में पहुंच गए हैं. इसके साथ ही न इस विषय के शिक्षक मिल रहे हैं और नौकरी नहीं मिलने की वजह से छात्र भी इसे पढ़ना नहीं चाह रहे हैं.

खतरे में संस्कृत का अस्तित्व
देश की संस्कृति और सभ्यता की पहचान रही संस्कृत भाषा का अस्तित्व खतरे में पड़ता दिख रहा है. सूबे सहित पश्चिम चंपारण जिले में भी संस्कृत विद्यालयों की हालत खस्ताहाल है. भवन काफी पुराने और जर्जर हो चुके हैं. इसके बावजूद सरकार इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रही है.

उपेक्षा की वजह से संस्कृत खो रहा अपनी पहचान

छात्र बना रहे दूरी
राज्य संस्कृत बोर्ड द्वारा संचालित हो रहे जिले के अधिकांश संस्कृत विद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी है. संस्कृत विद्यालय के प्रधानाचार्य ने बताया कि इस विषय से पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं के लिए रोजगार के अवसर नहीं है. इस वजह से वर्तमान समय में 8वीं और 10वीं क्लास के बाद कोई छात्र ये विषय पढ़ना नहीं चाहता है.

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संस्कृत विद्यालय की जर्जर हालत

हो रही उपेक्षा
राज्य सरकार द्वारा इन विद्यालयों में मिड डे मील, छात्रवृति और किताबों के अलावा कोई सुविधा नहीं दी जाती है. यहां तक कि इनको भवन तक नहीं दिया जाता है. सरकार की उपेक्षा की वजह से राज्य में संस्कृत अपनी पहचान खोता जा रहा है.

Intro:देश के प्राचीनतम भाषाओं में से एक संस्कृत अब अपनी पहचान खोने के कगार पर है। सरकारी उदासीनता का आलम यह है कि संस्कृत विद्यालयों के भवन जर्जर स्थिति में पहुंच गए हैं साथ ही साथ ना तो इस विषय के अब कोई शिक्षक मिल रहे और ना हीं कोई विद्यार्थी ही अब शिक्षा ग्रहण करना चाह रहा।


Body:सभी भाषाओं की जननी संस्कृत का अस्तित्व खतरे में।
हमारे देश के संस्कृति व सभ्यता की पहचान रही संस्कृत विषय का अस्तित्व खतरे में पड़ता दिख रहा है। सूबे सहित पश्चिम चंपारण जिले में भी संस्कृत विद्यालयों की हालत खस्ताहाल है। भवन काफी पुराने और जर्जर हो चुके हैं बावजूद इसके सरकार का इसपर कोई ध्यान नही है। जबकि हमारे ग्रंथ और उपनिषद संस्कृत भाषा मे ही रचित है।
संस्कृत विषय से छात्र बना रहे दूरी।
राज्य संस्कृत बोर्ड द्वारा संचालित हो रहे जिले के अधिकांश संस्कृत विद्यालयों में संस्कृत के शिक्षकों की भी भारी कमी है। संस्कृत विद्यालय के प्रधानाचार्य का कहना है कि संस्कृत विषय से पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को रोजगार का अवसर ही मुहैया नही हो पाता जिस वजह से वर्तमान समय मे 8 और 10 वी कक्षा के बाद कोई छात्र संस्कृत विषय पढ़ना ही नही चाहता है।


Conclusion:सरकार द्वारा भी हो रही उपेक्षा
राज्य सरकार द्वारा इन विद्यालयों में मिड डे मील, छात्रवृति और किताबों के अलावा कुछ नही दिया जाता। यहां तक कि संस्कृत विद्यालयों के भवन के जीर्णोद्धार हेतु भी सरकार कोई कदम नही उठा रही है। यही वजह है कि जिला सहित पूरे सूबे में संस्कृत अपनी पहचान खोता जा रहा है और भारतीय संस्कृति में गिरावट देखने को मिल रही।
Last Updated : Jan 8, 2020, 11:34 AM IST
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