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बेतिया: 50 साल में भी नहीं बदली स्कूल की सूरत, सुविधाओं का है घोर अभाव

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Published : Jan 26, 2020, 9:23 PM IST

स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं ने बताया कि स्कूल में पीने का पानी, पढ़ने के लिए क्लास रूम और शौचालय की सुविधा नहीं है. इससे काफी परेशानी होती है.

बेतिया
बेतिया

बेतिया: बिहार में शिक्षा और बदहाली एक दूसरे के पूरक हो चुके हैं. आलम यह है कि पूरे राज्य में बदहाल शिक्षा व्यवस्था की कई तस्वीरें आए दिन देखने को मिलती है. इसके बाद भी शिक्षा व्यवस्था की बदहाली को दूर करने के लिए कोई पहल नहीं किया जाता है. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली सरकार बेटियों को शिक्षा देने के लिए मुकम्मल इंतजाम तक नहीं कर पा रही है.

बेतिया
स्कूल में पढ़ती छात्राएं

बात कर रहे हैं शहर के बीचोबीच स्थित केदार पांडे उच्च विद्यालय की. जिसकी स्थापना 1971 ई. में की गई. लेकिन स्थापना के लगभग 50 साल बाद भी इस विद्यालय में बेटियों को पढ़ने के लिए समुचित व्यवस्था सरकार नहीं कर सकी है. आलम यह है कि 3 कमरों में ही 200 लड़कियों को किसी तरह पढ़ाया जाता है. इन 200 छात्राओं के लिए महज एक शौचालय है. जिसके कारण छात्राओं को काफी परेशानी होती है. सबसे हैरत की बात तो यह है कि छात्राओं के लिए पीने का पानी की भी व्यवस्था भी स्कूल में नहीं है.

पेश है रिपोर्ट

'नहीं होती है सुनवाई'
बताया जाता है कि इस विद्यालय की कई दीवार जर्जर हो चुकी है. जो किसी भी बड़े हादसे का कारण बन सकता है. स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं ने बताया कि स्कूल में पीने का पानी, पढ़ने के लिए क्लास रूम और शौचालय की सुविधा नहीं है. इससे काफी परेशानी होती है. इस स्कूल की समस्या को लेकर शिक्षक केदार राम ने कहा कि कई बार विद्यालय की समस्या को लेकर विभाग को चिट्ठी लिखी गई है. लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती है.

बेतिया: बिहार में शिक्षा और बदहाली एक दूसरे के पूरक हो चुके हैं. आलम यह है कि पूरे राज्य में बदहाल शिक्षा व्यवस्था की कई तस्वीरें आए दिन देखने को मिलती है. इसके बाद भी शिक्षा व्यवस्था की बदहाली को दूर करने के लिए कोई पहल नहीं किया जाता है. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली सरकार बेटियों को शिक्षा देने के लिए मुकम्मल इंतजाम तक नहीं कर पा रही है.

बेतिया
स्कूल में पढ़ती छात्राएं

बात कर रहे हैं शहर के बीचोबीच स्थित केदार पांडे उच्च विद्यालय की. जिसकी स्थापना 1971 ई. में की गई. लेकिन स्थापना के लगभग 50 साल बाद भी इस विद्यालय में बेटियों को पढ़ने के लिए समुचित व्यवस्था सरकार नहीं कर सकी है. आलम यह है कि 3 कमरों में ही 200 लड़कियों को किसी तरह पढ़ाया जाता है. इन 200 छात्राओं के लिए महज एक शौचालय है. जिसके कारण छात्राओं को काफी परेशानी होती है. सबसे हैरत की बात तो यह है कि छात्राओं के लिए पीने का पानी की भी व्यवस्था भी स्कूल में नहीं है.

पेश है रिपोर्ट

'नहीं होती है सुनवाई'
बताया जाता है कि इस विद्यालय की कई दीवार जर्जर हो चुकी है. जो किसी भी बड़े हादसे का कारण बन सकता है. स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं ने बताया कि स्कूल में पीने का पानी, पढ़ने के लिए क्लास रूम और शौचालय की सुविधा नहीं है. इससे काफी परेशानी होती है. इस स्कूल की समस्या को लेकर शिक्षक केदार राम ने कहा कि कई बार विद्यालय की समस्या को लेकर विभाग को चिट्ठी लिखी गई है. लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती है.

Intro:एंकर: बिहार में शिक्षा व बदहाली एक दूसरे के पूरक हो चुके हैं, आलम यह है कि पूरे राज्य में बदहाल शिक्षा व्यवस्था की कई तस्वीर आए दिन देखने को मिलती है, बावजूद इसके सरकार का शिक्षा व्यवस्था की बदहाली को दूर करने का कोई इरादा नजर नहीं आता, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली सरकार बेटियों को शिक्षा देने के लिए मुकम्मल इंतजाम तक नहीं कर पा रही है।


Body:यह है शहर के बीचोंबीच स्थित केदार पांडे उच्च विद्यालय जिसकी स्थापना सरकार ने 1971 में की थी लेकिन स्थापना के लगभग 50 साल बाद भी इस विद्यालय में बेटियों को शिक्षित करने की समुचित व्यवस्था सरकार नहीं कर सकी, आलम यह है कि तीन कमरों में 200 लड़कियों को किसी तरह शिक्षित किया जा रहा है, और तो और इन 200 छात्राओं के लिए महज एक शौचालय है जिसके कारण छात्राओं को काफी परेशानी होती है, सबसे हैरत की बात तो यह है कि छात्राओं के लिए पीने की पानी की व्यवस्था भी उस स्कूल में नहीं की गई है, 50 साल पुराने इस विद्यालय पर विभाग की नजर नहीं पड़ती है, जिस कारण यह विद्यालय कभी भी किसी बड़े हादसे का गवाह बन सकता है, क्योंकि इस विद्यालय की छत पर रेलिंग नहीं है जिसके कारण छात्राएं कभी भी गिर सकती है और कोई बड़ा हादसा हो सकता है, छात्राओं की मानें तो विद्यालय का भवन भी जर्जर हो चुका है जो किसी भी वक्त हादसे का सबब बन सकता है ।

बाइट-प्रिया कुमारी, छात्रा
बाइट- शिवानी पांडे,छात्रा

ऐसा नहीं कि इस विद्यालय की समस्या से जिले के पदाधिकारी अवगत नहीं है, विद्यालय के शिक्षक व प्रधानाध्यापक ने कई बार विद्यालय की समस्या से पदाधिकारियों को अवगत करा दिया लेकिन पदाधिकारी है कि कुंभकरण की नींद से जगने को तैयार नहीं है, बार-बार शिक्षकों द्वारा विद्यालय में पढ़ रही बच्चीयों की समस्या को बताने के बाद भी आज तक ना तो छत की रेलिंग ही बनी और ना ही जर्जर भवन की मरम्मत की गई ।

बाइट-केदार राम, शिक्षक


Conclusion:बहरहाल महात्मा गांधी की धरती पर शिक्षा की बदहाली को देखकर यह सवाल उठता है कि बिहार में शिक्षा के नाम पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं लेकिन उन पैसों से कैसी बदहाली दूर की जा रही है यह किसी को पता नहीं चल पा रहा है, लिहाजा जरूरत है कि बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ का नारा देने वाली सरकार बालिका शिक्षा को बढ़ावा दें ताकि बिहार की बेटियां भी शिक्षित होकर देश व राज्य का नाम रोशन कर सकें।

जितेंद्र कुमार गुप्ता
ईटीवी भारत बेतिया
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