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मोतिहारी: बाढ़ में अपना सब कुछ गवां चुके लोग दाने-दाने को मोहताज, सरकारी मदद नकाफी - मोतिहारी बाढ़ समाचार

बाढ़ पीड़ित किसी तरह अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं. विपदा की इस घड़ी में उन्हें काम भी नहीं मिल रहा है. जिससे वह मजदूरी कर के पेट भरने लायक पैसों का इंतजाम कर सकें.

दाने-दाने को मोहताज बाढ़ पीड़ित
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Published : Aug 14, 2019, 4:42 AM IST

Updated : Aug 14, 2019, 8:24 AM IST

मोतिहारी: बिहार के एक बड़े हिस्से ने इस साल भी बाढ़ की त्रासदी झेली है. ऐसे में कई गांवों का वजूद तक खत्म हो गया था. इलाके से पानी निकल गया है, लेकिन बाढ़ प्रभावित गांवों में तबाही का मंजर साफ तौर पर देखा जा सकता है. लेकिन अब लोगों की जिंदगी धीरे-धीरे सामान्य हो रही है, हालांकि बाढ़ पीड़ितों के लिए किये गये राहत और बचाव पर्याप्त नहीं दिख रहे हैं. बाढ़ में अपना सब कुछ गवां चुके लोग अब दाने-दाने को मोहताज हैं.

आसपास के लोगों से मांगकर खाना बनाते है लोग
आसपास के लोगों से मांगकर खाना बनाते है लोग

गांवों की हालत बदतर
बाढ़ का पानी उतरने के बाद भी समस्याएं जस की तस हैं. बाढ़ से घिरे गांव के लोग अब जिंदगी की जद्दोजहद के साथ संघर्ष कर रहे हैं. गांव या आसपास के बाजारों से संपर्क टूट चूका है. कई जगह बाढ़ की तेज धारा में सड़कें क्षतिगस्त हो है. यहां लोगों के घरों में आने-जाने का रास्ता एक पोल के सहारे है.

घरों में आने-जाने का रास्ता एक पोल के सहारे
घरों में आने-जाने का रास्ता एक पोल के सहारे

तीन दिन ही मिली थी सरकारी खिचड़ी
दरअसल मामला जिले के ढ़ाका प्रखंड के गुड़हेनवा दलित टोला का है. जहां बाढ़ में अपना सबकुछ गवां चुके लोगों के घरों में अभी भी पानी की नमी बनी हुई है. घर में रखा अनाज बाढ़ के पानी में बर्बाद हो गया है, खाने को कुछ नहीं है. बाढ़ आने के शुरुआती दिनों में तीन दिन सरकारी खिचड़ी खाने को मिला, उसके बाद कोई हुक्मरान हाल तक पूछने नहीं आया.

टूटी हुई झोपड़ी
टूटी हुई झोपड़ी

स्थानीय लोगों का कहना है कि वह अपने रिश्तेदारों के यहां से मदद मांगकर और आसपास के लोगों से खाद्य सामग्री मांगकर लाते हैं और उसी से किसी तरह अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं. विपदा की इस घड़ी में उन्हें काम भी नहीं मिल रहा है. जिससे वह मजदूरी कर के पेट भरने लायक पैसों का इंतजाम कर सकें.

दाने-दाने को मोहताज बाढ़ पीड़ित

प्रशासन ने अनुग्रह अनुदान राशी देना का किया वादा
वहीं, इस मामले पर जिला प्रशासन ने दावा किया है कि सभी बाढ़ पीड़ितों को अनुग्रह अनुदान राशी मिल चुकी है.

मोतिहारी: बिहार के एक बड़े हिस्से ने इस साल भी बाढ़ की त्रासदी झेली है. ऐसे में कई गांवों का वजूद तक खत्म हो गया था. इलाके से पानी निकल गया है, लेकिन बाढ़ प्रभावित गांवों में तबाही का मंजर साफ तौर पर देखा जा सकता है. लेकिन अब लोगों की जिंदगी धीरे-धीरे सामान्य हो रही है, हालांकि बाढ़ पीड़ितों के लिए किये गये राहत और बचाव पर्याप्त नहीं दिख रहे हैं. बाढ़ में अपना सब कुछ गवां चुके लोग अब दाने-दाने को मोहताज हैं.

आसपास के लोगों से मांगकर खाना बनाते है लोग
आसपास के लोगों से मांगकर खाना बनाते है लोग

गांवों की हालत बदतर
बाढ़ का पानी उतरने के बाद भी समस्याएं जस की तस हैं. बाढ़ से घिरे गांव के लोग अब जिंदगी की जद्दोजहद के साथ संघर्ष कर रहे हैं. गांव या आसपास के बाजारों से संपर्क टूट चूका है. कई जगह बाढ़ की तेज धारा में सड़कें क्षतिगस्त हो है. यहां लोगों के घरों में आने-जाने का रास्ता एक पोल के सहारे है.

घरों में आने-जाने का रास्ता एक पोल के सहारे
घरों में आने-जाने का रास्ता एक पोल के सहारे

तीन दिन ही मिली थी सरकारी खिचड़ी
दरअसल मामला जिले के ढ़ाका प्रखंड के गुड़हेनवा दलित टोला का है. जहां बाढ़ में अपना सबकुछ गवां चुके लोगों के घरों में अभी भी पानी की नमी बनी हुई है. घर में रखा अनाज बाढ़ के पानी में बर्बाद हो गया है, खाने को कुछ नहीं है. बाढ़ आने के शुरुआती दिनों में तीन दिन सरकारी खिचड़ी खाने को मिला, उसके बाद कोई हुक्मरान हाल तक पूछने नहीं आया.

टूटी हुई झोपड़ी
टूटी हुई झोपड़ी

स्थानीय लोगों का कहना है कि वह अपने रिश्तेदारों के यहां से मदद मांगकर और आसपास के लोगों से खाद्य सामग्री मांगकर लाते हैं और उसी से किसी तरह अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं. विपदा की इस घड़ी में उन्हें काम भी नहीं मिल रहा है. जिससे वह मजदूरी कर के पेट भरने लायक पैसों का इंतजाम कर सकें.

दाने-दाने को मोहताज बाढ़ पीड़ित

प्रशासन ने अनुग्रह अनुदान राशी देना का किया वादा
वहीं, इस मामले पर जिला प्रशासन ने दावा किया है कि सभी बाढ़ पीड़ितों को अनुग्रह अनुदान राशी मिल चुकी है.

Intro:मोतिहारी।पूर्वी चंपारण जिले में बाढ़ आए एक महीना हो गया।जिले के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से बाढ़ का पानी उतर चुका है।लेकिन बाढ़ में अपन सबकुछ गवां चुके लोग अब दाने-दाने को मोहताज हैं।घर में खाने को नहीं है और आने जाने का रास्ता एक पोल के सहारे शुरु हो सका है।चुल्हे में आग जल रही है और उसपर खाना भी चढ़ा हुआ है।लेकिन वह खाना परिवार के सभी लोगों का पेट भरने लायक भी नहीं है।बावजूद इसके सरकारी मदद के हाथ इन दलित परिवार के लोगों तक नहीं पहुंच सकी है।


Body:जिले में आई बाढ़ का तांडव से ढ़ाका प्रखंड भी अछूता नहीं था।ढ़ाका प्रखंड के कई पंचायत बाढ़ के चपेट में थे।प्रखंड का गुड़हेनवा दलित टोला के लोग जिले में आई बाढ़ में अपना सबकुछ गवां चुके हैं।घर में अभी भी पानी का नमी बना हुआ है और घर में रखा अनाज बाढ़ के पानी में बर्बाद हो गया।लिहाजा,घर में खाने को कुछ नहीं है।बाढ़ आने के शुरुआती दिनों में केवल तीन दिन सरकारी खिचड़ी उन्हे खाने के लिए मिली।उसके बाद वह किस हाल में हैं।कोई पूछने तक नहीं आया।अपने रिश्तेदारों के यहां से मदद मांगने के अलावा आसपास के लोगों से मांगकर लाते हैं और उसी से किसी तरह अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं।विपदा के इस घड़ी में उन्हे काम भी नहीं मिल रहा है।ताकि मजदूरी करके पेट भरने लायक पैसा भी कमा सके।


Conclusion:सड़क क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण टोले से निकलना भी खतरे से खाली नहीं है।बाढ़ के पानी ने रास्ते को काट दिया है।जिसपर टेलीफोन का पोल रखकर किसी तरह लोग आ-जा रहे हैं।बच्चे स्कूल नहीं जा पाने के कारण चिंतित हैं।एक तो रास्ते की समस्या है।दूसरा घर में खाने की समस्या भी बनी हुई है।बहरहाल,एक शाम खाने के बाद दुसरे शाम के भोजन के लिए चिंतित बाढ़ पीड़ितों की सुनने वाला कोई नहीं दिखाई दे रहा है। सभी बाढ़ पीड़ितों तक राहत अनुग्रह अनुदान पहुंचाने का दावा जिला प्रशासन कर रही है।लेकिन गुड़हेनवा दलित टोला के लोग प्रशासनिक दावों की पोल खोलते नजर आ रहे हैं।भूखे पेट प्रशासनिक मदद का राह ताकते दलित टोला के बाढ़ पीड़ित थक चुके हैं।
Last Updated : Aug 14, 2019, 8:24 AM IST
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