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बगहा में आदिवासी महिलाएं बना रही मछली का अचार, देश के कई राज्यों में है भारी डिमांड

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Dec 8, 2023, 6:01 AM IST

Updated : Dec 8, 2023, 8:29 PM IST

Fish pickle Manufacturing : बगहा में कोरोना काल में मछलियां नहीं बिकी तो वहां की आदिवासी महिलाओं ने मछली का अचार बनाना शुरू कर दिया. अब इसकी देश के कई राज्यों में भारी डिमांड हो रही है. पढ़ें पूरी खबर..

मछली का अचार
मछली का अचार
देखें रिपोर्ट.

बगहा : बिहार के बगहा के आदिवासी बहुल गांव की दर्जनों महिलाएं मछली का अचार बनाकर आत्मिनिर्भरता की मिशाल पेश कर रहीं हैं. कोरोना काल में जब मछलियों की बिक्री कम होने लगी थी. तब जीविका समूह की महिलाओं के लिए यही मछलियां वरदान साबित हुईं और आज इनके बनाए मछली के अचार की भारी डिमांड है. बिहार का एक ऐसा आदिवासी बहुल गांव जहां की नारी शक्ति आपदा में अवसर की तलाश कर स्वावलंबी बनने की राह पर चल पड़ी हैं.

मझौआ गांव की आदिवासी महिलाएं बनाती हैं अचार : दरअसल, जीविका से जुड़ी दर्जनों महिलाएं विभिन्न प्रजाति की मछलियों का अचार बनाकर अपना व्यवसाय कर रही हैं और इससे उनको अच्छी खासी आमदनी हो रही है. बगहा अनुमंडल क्षेत्र के एक छोटे से गांव मझौआ में महिलाएं बिना किसी प्लांट के हैंड मेड 'फिश पिकल' बना रहीं हैं. बता दें कि मझौआ गांव के रामजी सिंह महतो ने कोरोना महामारी के पूर्व उत्तराखंड के पंत नगर से मछली का अचार बनाने का प्रशिक्षण लिया था.

मछली के अचार की पैकिंग करती महिला
मछली के अचार की पैकिंग करती महिला

उत्तराखंड से प्रशिक्षण लेकर महिलाओं को सिखाया अचार बनाना : 21 दिनों तक प्रशिक्षण लेने के बाद उन्होंने अपने गांव का रुख कर लिया. इसी बीच वैश्विक महामारी कोरोना ने अपना विनाशकारी रूप ले लिया. जब पूरा विश्व कोरोना संकट से जूझ रहा था. तब मछलियों की बिक्री काफी कम हो गई. लिहाजा राम सिंह महतो ने आपदा में अवसर तलाश लिया और अपने घर के अगल बगल की दर्जनों महिलाओं को प्रशिक्षित कर वे मछली का अचार बनाने लगे.

गंडक नदी साबित हो रही है वरदान : गंडक नदी भी इनके लिए वरदान साबित हुई. क्योंकि गंडक नदी में कई प्रजाति की मछलियां मिलती हैं. इन मछलियों का अचार काफी ऊंची कीमत पर बिकता है. बता दें कि, कोरोना संकट के बाद जब सब कुछ सामान्य होने लगा तो इन महिलाओं ने अपने बनाए अचार का मेला या अन्य फेयर में स्टॉल लगाना शुरू किया. आज इनका स्थाई स्टॉल थरुहट के हरनाटांड़ में है. इसके अलावा जीविका की ओर से लगाए जाने वाली प्रदर्शनी में भी इनका स्टॉल लगता है. साथ ही दिल्ली जैसे शहरों में भी विशेष मौकों पर ये अपना स्टॉल लगाते हैं.

बर्तन में रखा मछली का अचार
बर्तन में रखा मछली का अचार

विशेष तकनीक से बनाया जाता है मछली का अचार : राम सिंह की पत्नी और बेटी कृति समेत दर्जनों महिलाएं, मिट्टी के चूल्हे पर विशेष तकनीक से अचार बनाती हैं, जो लंबे समय तक टिकाऊ होता है. इस कारोबार से जुड़ी कृति महतो बताती हैं कि उनका तीन निजी पोखरा है. उस पोखरा के अलावा गंडक नदी से मछुआरों द्वारा लाए गए मछली को भी वे खरीदती हैं.

"सावन, नवरात्रि, पितृपक्ष जैसे पर्व पड़ते हैं तो मछलियों की बिक्री कम हो जाती है और खरीदार नहीं मिलते हैं. समय हमलोग मछलियां खरीदती हैं और प्रतिवर्ष 6 से 7 क्विंटल मछली का अचार बनाते हैं."- कृति महतो, अचार बनाने वाली महिला

1200 से 1000 रुपये किलो बिकता है अचार : वहीं रामसिंह महतो का कहना है कि रोहू, कतला, चेपुआ, गरई और अन्य किस्म की मछलियों का अचार बनाया जाता है. इसमें रोहू और चेपुआ के अचार की कीमत क्रमश 1200 और 1000 रुपए प्रति किलो है. जबकि कुछ मछलियों के अचार की कीमत 500 से 900 रुपए प्रतिकिलो तक है. मछलियों के इस अचार की बिक्री स्टॉल लगाकर तो की ही जाती है. कई राज्यों खासकर यूपी और उत्तराखंड से ऑर्डर भी मिलते हैं. लिहाजा इसकी बिक्री और डिमांड मार्केट में काफी ज्यादा है.

ये भी पढ़ें : भागलपुर में झींगा मछली उत्पादन का बन रहा केन्द्र, 25 लाख तक हो रही आमदनी

देखें रिपोर्ट.

बगहा : बिहार के बगहा के आदिवासी बहुल गांव की दर्जनों महिलाएं मछली का अचार बनाकर आत्मिनिर्भरता की मिशाल पेश कर रहीं हैं. कोरोना काल में जब मछलियों की बिक्री कम होने लगी थी. तब जीविका समूह की महिलाओं के लिए यही मछलियां वरदान साबित हुईं और आज इनके बनाए मछली के अचार की भारी डिमांड है. बिहार का एक ऐसा आदिवासी बहुल गांव जहां की नारी शक्ति आपदा में अवसर की तलाश कर स्वावलंबी बनने की राह पर चल पड़ी हैं.

मझौआ गांव की आदिवासी महिलाएं बनाती हैं अचार : दरअसल, जीविका से जुड़ी दर्जनों महिलाएं विभिन्न प्रजाति की मछलियों का अचार बनाकर अपना व्यवसाय कर रही हैं और इससे उनको अच्छी खासी आमदनी हो रही है. बगहा अनुमंडल क्षेत्र के एक छोटे से गांव मझौआ में महिलाएं बिना किसी प्लांट के हैंड मेड 'फिश पिकल' बना रहीं हैं. बता दें कि मझौआ गांव के रामजी सिंह महतो ने कोरोना महामारी के पूर्व उत्तराखंड के पंत नगर से मछली का अचार बनाने का प्रशिक्षण लिया था.

मछली के अचार की पैकिंग करती महिला
मछली के अचार की पैकिंग करती महिला

उत्तराखंड से प्रशिक्षण लेकर महिलाओं को सिखाया अचार बनाना : 21 दिनों तक प्रशिक्षण लेने के बाद उन्होंने अपने गांव का रुख कर लिया. इसी बीच वैश्विक महामारी कोरोना ने अपना विनाशकारी रूप ले लिया. जब पूरा विश्व कोरोना संकट से जूझ रहा था. तब मछलियों की बिक्री काफी कम हो गई. लिहाजा राम सिंह महतो ने आपदा में अवसर तलाश लिया और अपने घर के अगल बगल की दर्जनों महिलाओं को प्रशिक्षित कर वे मछली का अचार बनाने लगे.

गंडक नदी साबित हो रही है वरदान : गंडक नदी भी इनके लिए वरदान साबित हुई. क्योंकि गंडक नदी में कई प्रजाति की मछलियां मिलती हैं. इन मछलियों का अचार काफी ऊंची कीमत पर बिकता है. बता दें कि, कोरोना संकट के बाद जब सब कुछ सामान्य होने लगा तो इन महिलाओं ने अपने बनाए अचार का मेला या अन्य फेयर में स्टॉल लगाना शुरू किया. आज इनका स्थाई स्टॉल थरुहट के हरनाटांड़ में है. इसके अलावा जीविका की ओर से लगाए जाने वाली प्रदर्शनी में भी इनका स्टॉल लगता है. साथ ही दिल्ली जैसे शहरों में भी विशेष मौकों पर ये अपना स्टॉल लगाते हैं.

बर्तन में रखा मछली का अचार
बर्तन में रखा मछली का अचार

विशेष तकनीक से बनाया जाता है मछली का अचार : राम सिंह की पत्नी और बेटी कृति समेत दर्जनों महिलाएं, मिट्टी के चूल्हे पर विशेष तकनीक से अचार बनाती हैं, जो लंबे समय तक टिकाऊ होता है. इस कारोबार से जुड़ी कृति महतो बताती हैं कि उनका तीन निजी पोखरा है. उस पोखरा के अलावा गंडक नदी से मछुआरों द्वारा लाए गए मछली को भी वे खरीदती हैं.

"सावन, नवरात्रि, पितृपक्ष जैसे पर्व पड़ते हैं तो मछलियों की बिक्री कम हो जाती है और खरीदार नहीं मिलते हैं. समय हमलोग मछलियां खरीदती हैं और प्रतिवर्ष 6 से 7 क्विंटल मछली का अचार बनाते हैं."- कृति महतो, अचार बनाने वाली महिला

1200 से 1000 रुपये किलो बिकता है अचार : वहीं रामसिंह महतो का कहना है कि रोहू, कतला, चेपुआ, गरई और अन्य किस्म की मछलियों का अचार बनाया जाता है. इसमें रोहू और चेपुआ के अचार की कीमत क्रमश 1200 और 1000 रुपए प्रति किलो है. जबकि कुछ मछलियों के अचार की कीमत 500 से 900 रुपए प्रतिकिलो तक है. मछलियों के इस अचार की बिक्री स्टॉल लगाकर तो की ही जाती है. कई राज्यों खासकर यूपी और उत्तराखंड से ऑर्डर भी मिलते हैं. लिहाजा इसकी बिक्री और डिमांड मार्केट में काफी ज्यादा है.

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Last Updated : Dec 8, 2023, 8:29 PM IST
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