पश्चिम चंपारण: महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि और गांधी की कर्मभूमि पर चुनावी शंखनाद हो गया है. प्रयोग की घरती चंपारण पर इस बार चिलचस्प मुकाबला है. वाल्मीकि नगर सीट पर एक तरफ महागठबंधन से शाश्वत केदार जैसे युवा धार हैं तो दूसरी ओर एनडीए से राजनीति के माहिर खिलाड़ी वैद्यनाथ महतो हैं.
नेपाल की सीमा से सटा है वाल्मीकि नगर
वैसे तो 2019 लोकसभा चुनाव के लिहाज से बिहार की हर सीट अहम है. लेकिन वाल्मीकि नगर संसदीय क्षेत्र का विशेष महत्व है. यह लोकसभा क्षेत्र नेपाल की सीमा से सटा है. सीमा पर स्थित होने के कारण ये इलाका सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से नेपाल से काफी नजदीकी से जुड़ा हुआ है. 2002 के परिसीमन के बाद साल 2008 में पहली बार ये लोकसभा सीट अस्तित्व में आया. इससे पहले ये सीट बगहा के नाम से जानी जाती थी.
विधानसभा सीटों का समीकरण
वाल्मीकि नगर सीट के तहत 6 विधानसभा सीटें आती हैं- वाल्मीकि नगर, रामनगर, नरकटियागंज, बगहा, लौरिया और सिकटा. 2015 के विधानसभा चुनाव में 6 में से 3 सीटें बीजेपी के पक्ष में गई थी. जबकि 1 सीट जेडीयू और 2 में 1 पर कांग्रेस और 1 पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी.
2014 लोकसभा चुनाव जनादेश
बात 2014 लोकसभा चुनाव की करें तो यहां भी मोदी लहर में बीजेपी के सतीश चंद्र दुबे ने जीत हासिल की थी. उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार पूर्णमासी राम को हराया था जबकि वैद्यनाथ प्रसाद महतो तीसरे नंबर पर रहे थे. सतीश चंद्र दुबे को 3 लाख 64 हजार 13 वोट हासिल करते हुए पूर्णमासी राम को 1 लाख 18 हजार वोटों से हराया था. हालांकि इस बार एनडीए में जेडीयू के शामिल होने की वजह से बैद्य नाथ माहतो के लिए रास्ता आसान दिख रहा है.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
बीजेपी के सतीश चंद्र दुबे 2014 में चुनाव जीतकर यहां से 16वीं लोकसभा में पहुंचे. इस दौरान उन्होंने अपने सांसद निधि का 89 फीसदी हिस्सा खर्च किया. संसदीय कार्यवाही में इनकी अच्छी हिस्सेदारी रही. उन्होंने 30 बहसों में हिस्सा लिया और 5 साल में 196 सवाल पूछे.
पहली बार चुनाव लड़ रहे शाश्वत केदार
इस बार एनडीए की तरफ से वाल्मीकि नगर सीट पर जेडीयू ने पूर्व सांसद वैद्यनाथ प्रसाद महतो को उम्मीदवार बनाया है तो वहीं, महागठबंधन की तरफ से कांग्रेस ने शाश्वत केदार को चुनावी मैदान में उतारा है. कांग्रेस ने इस चुनाव में पूर्णमासी राम को टिकट न देकर शाश्वत केदार को मौका दिया है. शाश्वत पूर्व मुख्यमंत्री केदार पांडेय के पौत्र और पूर्व सांसद मनोज पांडेय के बेटे हैं. इन दोनों के अलावा कई निर्दलीय भी वाल्मीकि नगर सीट पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
पार्टी और विरासत के बीच जंग
2008 में हुए परिसीमन के बाद वाल्मीकिनगर लोकसभा सीट अस्तित्व में आया. राजनीति के गलियारों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि यहां उम्मीदवार नहीं, बल्कि पार्टी और विरासत के बीच जंग है. एनडीए से जदयू के टिकट पर लड़ रहे वैद्यनाथ महतो को जहां अपनी पार्टी से उम्मीद है, वहीं पहली बार चुनावी मैदान में उतरे कांग्रेस के शाश्वत केदार को अपने राजनीतिक विरासत को जिंदा कर पाने की उम्मीद है.
ये हैं जनता के मुद्दे
हर साल बाढ़ से तबाही का स्थायी निदान, शिक्षा और रोजगार के लिए बड़े शहरों में युवाओं का पलायन, कृषि आधारित उद्योग की स्थापना, तकनीकी शिक्षण संस्थान की मांग आदि मुद्दे तो यहां महत्वपूर्ण हैं. इन बुनियादी सवालों के बीच जनता की उम्मीदों कौन खरा उतर पाता है ये तो 23 मई को ही पता लग पाएगा.