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बेतिया: भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक सामा-चकेवा पर्व का समापन - समा चकेवा समाप्त

समा चकेवा त्योहार बहनें भाई की सलामती और खुशहाली के लिए मनाती हैं. 7 दिनों तक बहनें गीत गाती हैं और चकवा चकाई का खेल खेलती है.

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Published : Nov 30, 2020, 1:25 PM IST

बेतिया: भाई-बहन के अटूट अटूट प्रेम का प्रतीक त्योहार समा चकेवा आज समाप्त हो गया. इस पर्व के शुरुआत से लेकर अंत तक काफी उत्साह देखा गया. अंतिम दिन चकवा-चकाई को टोकरी में सजा-धजाकर नदी और तालाबों में विसर्जन किया गया.

गोवर्धन पूजा के बाद शुरू होता है त्योहार
समा चकेवा पर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है. यह त्योहार गोवर्धन पूजा के समाप्ति के बाद अगले 7 दिनों के बाद कार्तिक पूर्णमासी की सुबह चकवा-चकवी आकृति को नदी में विसर्जित करने के बाद समाप्त होता है. त्योहार में लड़कियों ने चकवा-चकई की आकृति बनाकर पारंपरिक गीत के साथ पूजा अर्चना की.

देखें वीडियो

ये भी पढ़ेंः सीएम नीतीश ने किया बिहार की सबसे बड़ी एलिवेटेड रोड का उद्घाटन

7 दिनों तक चलता है त्योहार
जिले के प्रसिद्ध लोकपर्व समा चकवा-चकवी की दीपावली के दो दिन बाद से शुरुआत हुई और कार्तिक पूर्णमासी की सुबह नदी में विर्सजित की गई. आखिरी दिन कार्तिक पूर्णिमा को चकवा-चकाई को टोकरी में सजा-धजा कर बहनें नदी तालाबों के घाटों तक पहुंचती हैं और पारंपरिक गीतों के साथ चकेवा का विसर्जन हो जाता है. भाई की सलामती और खुशहाली के लिए यह त्योहार बहनें मनाती हैं. 7 दिनों तक बहनें गीत गाती हैं और चकवा चकाई का खेल खेलती है.

बेतिया: भाई-बहन के अटूट अटूट प्रेम का प्रतीक त्योहार समा चकेवा आज समाप्त हो गया. इस पर्व के शुरुआत से लेकर अंत तक काफी उत्साह देखा गया. अंतिम दिन चकवा-चकाई को टोकरी में सजा-धजाकर नदी और तालाबों में विसर्जन किया गया.

गोवर्धन पूजा के बाद शुरू होता है त्योहार
समा चकेवा पर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है. यह त्योहार गोवर्धन पूजा के समाप्ति के बाद अगले 7 दिनों के बाद कार्तिक पूर्णमासी की सुबह चकवा-चकवी आकृति को नदी में विसर्जित करने के बाद समाप्त होता है. त्योहार में लड़कियों ने चकवा-चकई की आकृति बनाकर पारंपरिक गीत के साथ पूजा अर्चना की.

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7 दिनों तक चलता है त्योहार
जिले के प्रसिद्ध लोकपर्व समा चकवा-चकवी की दीपावली के दो दिन बाद से शुरुआत हुई और कार्तिक पूर्णमासी की सुबह नदी में विर्सजित की गई. आखिरी दिन कार्तिक पूर्णिमा को चकवा-चकाई को टोकरी में सजा-धजा कर बहनें नदी तालाबों के घाटों तक पहुंचती हैं और पारंपरिक गीतों के साथ चकेवा का विसर्जन हो जाता है. भाई की सलामती और खुशहाली के लिए यह त्योहार बहनें मनाती हैं. 7 दिनों तक बहनें गीत गाती हैं और चकवा चकाई का खेल खेलती है.

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