बेतिया(नरकटियागंज): प्रदूषण की बढ़ती समस्या के दौर में जिले के इंजीनियर चंदन कुमार पांडे की कवायद काबिल-ए-तारीफ है. उन्होंने वाहनों से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए बायोगैस उत्पादन की दिशा में सफलता हासिल की है. 6 साल की लगातार कोशिश और कड़ी मेहनत के बल पर उन्होंने बायोगैस फ्यूल डेवलप किया है.
नरकटियागंज के बढ़निहार गांव के रहने वाले इंजीनियर चंदन कुमार पांडे दिल्ली से नौकरी छोड़ अपने गांव पहुंचे हैं. उन्होंने देश के अन्नदाताओं की परेशानी को देखते हुए बायोगैस बनाने का एक प्लांट तैयार किया है. ताकि खेती के दौरान किसानों को आने वाले पेट्रोल-डीजल के खर्च को कम किया जा सके.
पर्यावरण को नहीं होगा नुकसान
चंदन कुमार की मानें तो जो भी कार सीएनजी, पेट्रोल या डीजल से चलती है वह इस टेक्नोलॉजी से भी चल सकती है. उनका दावा है कि आम गाड़ियों से जो प्रदूषण होता है, वह इस गाड़ी से नहीं होगा. यह गाड़ी पूरी तरह से प्रदूषण रहित होगी. साथ ही उन्होंने बताया कि कि आजकल जिस तरह शार्ट सर्किट के कारण गाड़ियों में आग लग जाती है, ऐसे में बायोगैस चलित वाहनों के प्रयोग से यह खतरा भी कम होगा.
आईआईटी दिल्ली से सीखा गुर
इंजीनियर चंदन पांडे ने बताया कि 2011 में आईआईटी दिल्ली में सीबीजी के तहत एक ट्रेनिंग प्रोग्राम किया गया था. इस दौरान वहां पर देखा गया कि प्रदूषण रहित गाड़ी बनाने में काफी खर्च लगता है. जिसके बाद उन्होंने गांव आकर कम पैसों में प्रदूषण रहित गाड़ी कैसे बने इस पर शोध करना शुरू किया. जिसके बाद गोबर से बायोगैस तैयार कर एक पुरानी गाड़ी में इस किट को लगाया. काम में उन्हें सफलता मिली और आज वे इसका सफल उत्पादन कर रहे हैं.
नहीं हो रहा कमर्शियल यूज
बता दें कि चंदन ने इस बायोगैस प्लांट को कमर्शियल यूजज के लिए नहीं खोला है. उन्होंने इसे पूरी तरह से किसानों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया है. ताकि किसानों को इसका पूरा फायदा मिल सके और किसान आसानी से कम खर्च में खेती कर सके. इसके लिए वे किसानों को स्पेशल ट्रेनिंग भी दे रहे हैं.
आएं और सीखें इसका इस्तेमाल
चंदन का कहना है कि इच्छुक किसान उनके पास आकर ट्रेनिंग ले सकते हैं. वे उन्हें बताएंगे कि आखिर किस तरह से बायोगैस तैयार कर खेती कर सकते हैं. किसानों को इससे काफी फायदा होगा. उन्होंने बताया कि 1 किलो गैस में लगभग 25 किलोमीटर गाड़ी चल सकती है. किसानों को खेती में डीजल की ज्यादा खपत होती है. ऐसे में अगर किसान इस बायोगैस से खेती करेंगे तो कम लागत में उन्हें वह ज्यादा खेती कर पाएंगे.