पश्चिम चंपारण: बगहा प्रखंड 2 अंतर्गत थरुहट की राजधानी के नाम से मशहूर हरनाटांड स्थित हथकरघा केंद्र की महिलाएं कुटीर उद्योग के लिए एक मिसाल कायम कर रही हैं. इनकी कारीगरी का नमूना देखते ही बनता है. सरकार ने थरुहट विकास प्राधिकरण के तहत एक भवन बनवाया है, जहां हथकरघा से जुड़ी महिलाएं अपनी कार्यकुशलता और निपुणता से इस क्षेत्र का नाम रौशन कर रही हैं.
देश विदेश तक होती है सप्लाई
हरनाटांड में हथकरघा की शुरुआत वैसे तो 1989 में ही हो गई थी. लेकिन देश के सबसे प्राचीन कुटीर उद्योग को सरकार ने बढ़ावा नहीं दिया. हालांकि नीतीश सरकार ने वर्ष 2013 में महिलाओं की कार्यकुशलता पर संजीदगी दिखाई और यहां पर एक ट्रायसन भवन का निर्माण हुआ. जिसमें सरकार ने 28 हैंडलूम मशीनें मुहैया कराई. आज तीन दर्जन से अधिक महिलाएं इस केंद्र पर बुनकरी करती हैं. इनके बनाये गए ऊनी शाल और बेडशीट देश विदेश तक सप्लाई होती है.
क्या कहती हैं महिला कारीगर
हथकरघा से जुड़ी लखिया देवी का कहना है कि सादा शाल बुनने पर 35 रुपया और डिज़ाइनदार शॉल और बेडशीट का 60 रुपया मिलता है, जो कि बहुत कम है. इस दर पर प्रतिदिन 120 रुपया तक की ही आमदनी हो पाती है. यदि सरकार ध्यान दे और महीने पर तनख्वाह देना शुरू करे तो इस हथकरघा से हम सबकी किस्मत बन सकती है. वहीं, रुकवन्ति देवी का कहना है कि सरकार ने मशीन और सामान मुहैया करा दिया है, लेकिन आज भी हमारी आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हो पाई है.
रोजगार के क्षेत्र में साबित हो सकता है बड़ा अस्त्र
जाहिर तौर पर यह माना जा सकता है कि सरकार ने जिस तरह हथकरघा को बढ़ावा देने के क्रम में हथकरघा केंद्र स्थापित किया है, वह एक बड़ा कदम है. लेकिन बुनकरों पर अगर खास ध्यान दिया जाए तो रोजगार के क्षेत्र में लोगों के लिए यह एक बड़ा अस्त्र साबित हो सकता है.