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सूबे में नहीं सुधर रही बुनकरों की स्थिति, 150 रुपये रोजाना पर काम करने को हैं विवश

हरनाटांड में हथकरघा की शुरुवात वैसे तो 1989 में ही हो गई थी. लेकिन देश के सबसे प्राचीन कुटीर उद्योग को सरकार ने बढ़ावा नहीं दिया. हालांकि नीतीश सरकार ने वर्ष 2013 में महिलाओं की कार्यकुशलता पर संजीदगी दिखाई और यहां पर एक ट्रायसन भवन का निर्माण हुआ.

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Published : Aug 12, 2019, 10:31 AM IST

Updated : Aug 12, 2019, 11:28 AM IST

हथकरघा केंद्र में बुनकरी करती महिलाऐं

पश्चिम चंपारण: बगहा प्रखंड 2 अंतर्गत थरुहट की राजधानी के नाम से मशहूर हरनाटांड स्थित हथकरघा केंद्र की महिलाएं कुटीर उद्योग के लिए एक मिसाल कायम कर रही हैं. इनकी कारीगरी का नमूना देखते ही बनता है. सरकार ने थरुहट विकास प्राधिकरण के तहत एक भवन बनवाया है, जहां हथकरघा से जुड़ी महिलाएं अपनी कार्यकुशलता और निपुणता से इस क्षेत्र का नाम रौशन कर रही हैं.

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बुनकरी करती महिलाऐं

देश विदेश तक होती है सप्लाई
हरनाटांड में हथकरघा की शुरुआत वैसे तो 1989 में ही हो गई थी. लेकिन देश के सबसे प्राचीन कुटीर उद्योग को सरकार ने बढ़ावा नहीं दिया. हालांकि नीतीश सरकार ने वर्ष 2013 में महिलाओं की कार्यकुशलता पर संजीदगी दिखाई और यहां पर एक ट्रायसन भवन का निर्माण हुआ. जिसमें सरकार ने 28 हैंडलूम मशीनें मुहैया कराई. आज तीन दर्जन से अधिक महिलाएं इस केंद्र पर बुनकरी करती हैं. इनके बनाये गए ऊनी शाल और बेडशीट देश विदेश तक सप्लाई होती है.

सूबे में नहीं सुधर रही बुनकरों की स्थिति

क्या कहती हैं महिला कारीगर
हथकरघा से जुड़ी लखिया देवी का कहना है कि सादा शाल बुनने पर 35 रुपया और डिज़ाइनदार शॉल और बेडशीट का 60 रुपया मिलता है, जो कि बहुत कम है. इस दर पर प्रतिदिन 120 रुपया तक की ही आमदनी हो पाती है. यदि सरकार ध्यान दे और महीने पर तनख्वाह देना शुरू करे तो इस हथकरघा से हम सबकी किस्मत बन सकती है. वहीं, रुकवन्ति देवी का कहना है कि सरकार ने मशीन और सामान मुहैया करा दिया है, लेकिन आज भी हमारी आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हो पाई है.

रोजगार के क्षेत्र में साबित हो सकता है बड़ा अस्त्र
जाहिर तौर पर यह माना जा सकता है कि सरकार ने जिस तरह हथकरघा को बढ़ावा देने के क्रम में हथकरघा केंद्र स्थापित किया है, वह एक बड़ा कदम है. लेकिन बुनकरों पर अगर खास ध्यान दिया जाए तो रोजगार के क्षेत्र में लोगों के लिए यह एक बड़ा अस्त्र साबित हो सकता है.

पश्चिम चंपारण: बगहा प्रखंड 2 अंतर्गत थरुहट की राजधानी के नाम से मशहूर हरनाटांड स्थित हथकरघा केंद्र की महिलाएं कुटीर उद्योग के लिए एक मिसाल कायम कर रही हैं. इनकी कारीगरी का नमूना देखते ही बनता है. सरकार ने थरुहट विकास प्राधिकरण के तहत एक भवन बनवाया है, जहां हथकरघा से जुड़ी महिलाएं अपनी कार्यकुशलता और निपुणता से इस क्षेत्र का नाम रौशन कर रही हैं.

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बुनकरी करती महिलाऐं

देश विदेश तक होती है सप्लाई
हरनाटांड में हथकरघा की शुरुआत वैसे तो 1989 में ही हो गई थी. लेकिन देश के सबसे प्राचीन कुटीर उद्योग को सरकार ने बढ़ावा नहीं दिया. हालांकि नीतीश सरकार ने वर्ष 2013 में महिलाओं की कार्यकुशलता पर संजीदगी दिखाई और यहां पर एक ट्रायसन भवन का निर्माण हुआ. जिसमें सरकार ने 28 हैंडलूम मशीनें मुहैया कराई. आज तीन दर्जन से अधिक महिलाएं इस केंद्र पर बुनकरी करती हैं. इनके बनाये गए ऊनी शाल और बेडशीट देश विदेश तक सप्लाई होती है.

सूबे में नहीं सुधर रही बुनकरों की स्थिति

क्या कहती हैं महिला कारीगर
हथकरघा से जुड़ी लखिया देवी का कहना है कि सादा शाल बुनने पर 35 रुपया और डिज़ाइनदार शॉल और बेडशीट का 60 रुपया मिलता है, जो कि बहुत कम है. इस दर पर प्रतिदिन 120 रुपया तक की ही आमदनी हो पाती है. यदि सरकार ध्यान दे और महीने पर तनख्वाह देना शुरू करे तो इस हथकरघा से हम सबकी किस्मत बन सकती है. वहीं, रुकवन्ति देवी का कहना है कि सरकार ने मशीन और सामान मुहैया करा दिया है, लेकिन आज भी हमारी आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हो पाई है.

रोजगार के क्षेत्र में साबित हो सकता है बड़ा अस्त्र
जाहिर तौर पर यह माना जा सकता है कि सरकार ने जिस तरह हथकरघा को बढ़ावा देने के क्रम में हथकरघा केंद्र स्थापित किया है, वह एक बड़ा कदम है. लेकिन बुनकरों पर अगर खास ध्यान दिया जाए तो रोजगार के क्षेत्र में लोगों के लिए यह एक बड़ा अस्त्र साबित हो सकता है.

Intro:बगहा प्रखंड 2 अंतर्गत थरुहट की राजधानी के नाम से मशहूर हरनाटांड स्थित हथकरघा केंद्र की महिलाएं कुटीर उद्योग के लिए एक मिसाल कायम कर रही है। इनके कारीगरी का नमूना देखते ही बनता है। सरकार ने थरुहट विकास प्राधिकरण के तहत एक भवन बनवाया है जहाँ हतकरघा से जुड़ी महिलाएं अपने कार्यकुशलता और निपुणता से इस क्षेत्र का नाम रौशन कर रहीं।


Body:7 अगस्त 1905 को स्वदेशी आंदोलन की शुरुवात हुई थी इसी के याद में वर्ष 2015 में मोदी सरकार ने हथकरघा दिवस मनाने का निर्णय लिया और सबसे पहले चेन्नई से इसका आगाज किया गया। आज चौथा हतकरघा दिवस मनाया जा रहा है। हथकरघा दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य देश को सामाजिक व आर्थिक रूप से सशक्त करना था जिसको थरुहट की महिलाएं आज बखूबी निभा रही हैं।
हरनाटांड में हथकरघा की शुरुवात वैसे तो 1989 में ही हो गई थी। लेकिन देश के सबसे प्राचीन कुटिर उद्योग को सरकार द्वारा बढ़ावा नही दिया गया। हालांकि नीतीश सरकार ने वर्ष 2013 में महिलाओं की कार्यकुशलता पर संजीदगी दिखाई और यहां पर एक ट्रायसन भवन का निर्माण हुआ जिसमें सरकार द्वारा 28 हैंडलूम मशीनें मुहैया कराई गई। आज तीन दर्जन से अधिक महिलाएं इस केंद्र पर बुनकरी करती हैं और इनके द्वारा बनाये गए ऊनी शाल व बेडशीट देश विदेश तक सप्लाई होती है। हथकरघा से जुड़े लखिया देवी का कहना है कि पिछले हथकरघा दिवस पर पटना बुलाया गया था लेकिन इस बार कोई बुकव नही आया है साथ ही उनका यह भी कहना है कि सादा शाल बुनने पर 35 रुपया और डिज़ाइनदार शॉल या बेडशीट का 60 रुपया मिलता है जो कि बहुत कम है। इस दर पर प्रतिदिन 120 रुपया तक कि ही आमदनी हो पाती है यदि सरकार ध्यान दे और महीना पर तनख्वाह देना शुरू करे तो इस हथकरघा से हम सबकी किस्मत बन सकती है। वही रुकवन्ति देवी का कहना है कि सरकार ने मशीन और समान मुहैया करा दिया है लेकिन आज भी हमारी आर्थिक स्थिति में सुधार नही हो पाया है।


Conclusion:जाहिर तौर पर यह माना जा सकता है कि सरकार द्वारा हतकर्घ को बढ़ावा देने के क्रम में हथकरघा केंद्र स्थापित करना एक बड़ा कदम है लेकिन बुनकरों पर अगर खास ध्यान दिया जाए तो रोजगार के क्षेत्र में लोगों के लिए एक बड़ा अस्त्र साबित हो सकता है।
Last Updated : Aug 12, 2019, 11:28 AM IST
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