बेतिया: गौनाहा प्रखंड का एक ऐसा गांव है, जहां दो गांव के बीचों-बीच एक नदी बहती है. करीब एक किलोमीटर की लम्बी दूरी तक बसे नदी के दोनों किनारों पर दो वार्ड ( चार टोला ) के दो हजार अधिक की जनसंख्या वाले इस गांव में एक भी पुल नही हैं. जो दोनों गांव को आपस में जोड़ सके.
लोगों को होती है परेशानी
बरसात के दिनों में यह गांव चारों तरफ से पानी से घिर जाने के कारण टापू का रूप ले लेता है. महीनों लग जाते हैं पानी निकलने में. तब तक लोग जो राशन इक्कठा कर के रखते हैं, उसी से काम चलाते हैं. नदी के दक्षिणी किनारे पर बसे बंसपुर के लोग तो दस किलोमीटर की अतिरिक्त दूरी तय कर अपने कार्यों का निष्पादन कर लेते हैं. लेकिन उतरी किनारे पर बसे लोगों की समस्या कड़ी दिनों तक ज्यों का त्यों बनी रहती है.
क्या कहते हैं ग्रामीण
स्थानीय शमशाद आलम, तुफान आलम, नसीम आलम, जिकुरूलाह आलम, इफ्तिखार आलम, जूगुल साह, साहेब राय, उदयभान गुप्ता, अनिरूद्ध मियां, सहीम मियां, मनीर मियां आदि ने बताया कि 2010 में दोनों गांव को जोड़ने के लिए जमूहां भयानक नदी पर एक पुल का निर्माण किया गया था. जो दो वर्षों के बाद पुल के उत्तर हुई कटाव के कारण नदी से अलग हो गया.
चचरी पुल का निर्माण
इसको फिर से जोड़ने के लिए कई बार प्रखंड प्रसाशन से लेकर जिला प्रशासन, विधायक और एमपी को आवेदन दिया गया. सभी जगहों से सिर्फ और सिर्फ आश्वासन ही मिला. जिससे तंग आकर आवागमन के लिए नदी पर एक बांस के चचरी पुल का निर्माण ग्रामीण सहयोग से किया गया. जिससे आज भी लोग पैदल आवागमन करते हैं.
आश्वासन देते हैं विधायक
पुल ध्वस्त होने से के बाद यह तीसरी बार सरकार बनने वाली है. लेकिन किसी ने इतनी बड़ी समस्या पर ध्यान नहीं दिया. इसलिए लोगों ने अबकी बार यह निर्णय लिया है कि अबकी बार किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं दिया जाएगा. सभी मतदाता नोटा का बटन दबा कर यह दिखाना चाहते हैं कि यहां भी समस्या है और समस्या को हल करने वाले उम्मीदवार को ही वोट दिया जाएगा. ना कि सिर्फ आश्वासन देने वालों को.
नोटा का बटन दबाएंगे लोग
लोगों ने कहा कि जमूहां भयानक नदी पर पुल नहीं तो किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं देंगे. इससे साफ जाहिर हो रहा है कि अबकी बार लोग विधानसभा और लोकसभा उप चुनाव में मताधिकार का प्रयोग तो करेंगे. लेकिन नोटा बटन दबाएंगे. ताकि भोले-भाली जनता को बरगलाने वाले प्रत्याशी सतर्क हो जाएं और धरातल पर उतर कर काम करें.
लोगों ने दुख जाहिर करते हुए कहा कि अगर कोई बिमार हो जाता है तो दस किलोमीटर की अतिरिक्त दूरी तय कर हाॅसपिटल पहुंचते हैं. तब तक मरीजों की स्थिति खराब हो जाती है. समय के साथ पैसे की भी बर्बादी होती है.