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स्कूल की बिल्डिंग देख कोई भी खा जाए धोखा, छात्राओं ने सुनाई इसके भीतर की असली कहानी

विद्यालय की छात्राओं का आरोप है कि छात्रावास में मेनू बस दिखावे के लिए है. रोजाना नाश्ते में उन्हें लावा और भूंजा ही परोसा जाता है. जब वह शिकायत करती हैं तो कुछ दिनों तक सब ठीक रहता है फिर वही हाल हो जाता है.

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Published : Aug 18, 2019, 11:56 PM IST

बेतिया: 'नाम बड़े और दर्शन छोटे' वाली कहावत बगहा के कदमहवा में बने अनुसूचित जनजाति बालिका उच्च विद्यालय के लिए बिल्कुल सटीक बैठती है. बाहर से देखने पर यह विद्यालय सभी सुविधाओं और संसाधनों से लैस जान पड़ता है. लेकिन, भीतरी असलियत ठीक इसके विपरीत है. यह सरकारी स्कूल इंफ्रास्ट्रक्टर के मामले में निजी स्कूलों को भी पीछे छोड़ सकता है. लेकिन, यहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है.

betiah
पड़े-पड़े खराब हो रहे फर्नीचर

बाहरी लुक देखकर हर कोई यही कहेगा कि यह सरकारी विद्यालय नहीं बल्कि किसी मेट्रोपोलिटन सिटी का विद्यालय है. बावजूद इसके विद्यालय में शिक्षकों और कर्मियों की घोर कमी है. इसके अलावे यहां के छात्रावास में रह रहीं छात्राओं को रोज एक ही खाना दिया जाता है. केवल दिखावे के लिए हॉस्टल मेस में मेनू लटका दिया गया है.

betiah
छात्राओं ने सुनाई आपबीती

सुविधाओं का नहीं मिल रहा लाभ
बगहा प्रखंड अंतर्गत थरुहट बहुल क्षेत्र कदमहवा में स्थापित अनुसूचित जनजाति बालिका उच्च विद्यालय में तकरीबन 380 छात्राएं पढ़ती हैं. इन छात्राओं के रहने के लिए विद्यालय कैम्पस में ही एक छात्रावास भी बना है. जहां इनके लिए तमाम बेहतर सुविधाएं भी मौजूद हैं. यह विद्यालय सीसीटीवी कैमरों, स्पोर्ट्स के सामानों, लैब के उपकरणों से लैस है. लेकिन, बच्चियों को आजतक इसकी झलक भी नहीं मिली है.

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बेबस छात्राएं

चपरासी की जगह शिक्षक बजाते हैं घंटी
380 छात्राओं के लिए यहां मात्र 4 शिक्षक मौजूद हैं. जबकि यहां 16 शिक्षकों के पद प्रस्तावित हैं. स्कूल में एक चपरासी तक नहीं है. जिस कारण शिक्षक खुद स्कूल का गेट खोलते हैं. इतना ही नहीं यहां की बदहाली इस कदर है कि शिक्षक पीरियड खत्म होने पर खुद ही जाकर घंटी भी बजाते हैं. यहां रहने वाली छात्राओं के लिए स्वास्थ्य के पुख्ता इंतजाम भी नहीं है. जब कोई बच्ची बीमार पड़ती है तो उसे पड़ोस के झोलाझाप डॉक्टरों का मुंह देखना पड़ता है.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

रोजाना परोसा जा रहा एक ही खाना
विद्यालय की छात्राओं का आरोप है कि छात्रावास में मेनू बस दिखावे के लिए है. रोजाना नाश्ते में उन्हें लावा और भूंजा ही परोसा जाता है. जब वह शिकायत करती हैं तो कुछ दिनों तक सब ठीक रहता है फिर वही हाल हो जाता है. प्रधानाचार्य की हिदायत के बावजूद मेस संचालित करने वाली एनजीओ संस्था अपनी मनमानी करती है.

बेतिया: 'नाम बड़े और दर्शन छोटे' वाली कहावत बगहा के कदमहवा में बने अनुसूचित जनजाति बालिका उच्च विद्यालय के लिए बिल्कुल सटीक बैठती है. बाहर से देखने पर यह विद्यालय सभी सुविधाओं और संसाधनों से लैस जान पड़ता है. लेकिन, भीतरी असलियत ठीक इसके विपरीत है. यह सरकारी स्कूल इंफ्रास्ट्रक्टर के मामले में निजी स्कूलों को भी पीछे छोड़ सकता है. लेकिन, यहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है.

betiah
पड़े-पड़े खराब हो रहे फर्नीचर

बाहरी लुक देखकर हर कोई यही कहेगा कि यह सरकारी विद्यालय नहीं बल्कि किसी मेट्रोपोलिटन सिटी का विद्यालय है. बावजूद इसके विद्यालय में शिक्षकों और कर्मियों की घोर कमी है. इसके अलावे यहां के छात्रावास में रह रहीं छात्राओं को रोज एक ही खाना दिया जाता है. केवल दिखावे के लिए हॉस्टल मेस में मेनू लटका दिया गया है.

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छात्राओं ने सुनाई आपबीती

सुविधाओं का नहीं मिल रहा लाभ
बगहा प्रखंड अंतर्गत थरुहट बहुल क्षेत्र कदमहवा में स्थापित अनुसूचित जनजाति बालिका उच्च विद्यालय में तकरीबन 380 छात्राएं पढ़ती हैं. इन छात्राओं के रहने के लिए विद्यालय कैम्पस में ही एक छात्रावास भी बना है. जहां इनके लिए तमाम बेहतर सुविधाएं भी मौजूद हैं. यह विद्यालय सीसीटीवी कैमरों, स्पोर्ट्स के सामानों, लैब के उपकरणों से लैस है. लेकिन, बच्चियों को आजतक इसकी झलक भी नहीं मिली है.

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बेबस छात्राएं

चपरासी की जगह शिक्षक बजाते हैं घंटी
380 छात्राओं के लिए यहां मात्र 4 शिक्षक मौजूद हैं. जबकि यहां 16 शिक्षकों के पद प्रस्तावित हैं. स्कूल में एक चपरासी तक नहीं है. जिस कारण शिक्षक खुद स्कूल का गेट खोलते हैं. इतना ही नहीं यहां की बदहाली इस कदर है कि शिक्षक पीरियड खत्म होने पर खुद ही जाकर घंटी भी बजाते हैं. यहां रहने वाली छात्राओं के लिए स्वास्थ्य के पुख्ता इंतजाम भी नहीं है. जब कोई बच्ची बीमार पड़ती है तो उसे पड़ोस के झोलाझाप डॉक्टरों का मुंह देखना पड़ता है.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

रोजाना परोसा जा रहा एक ही खाना
विद्यालय की छात्राओं का आरोप है कि छात्रावास में मेनू बस दिखावे के लिए है. रोजाना नाश्ते में उन्हें लावा और भूंजा ही परोसा जाता है. जब वह शिकायत करती हैं तो कुछ दिनों तक सब ठीक रहता है फिर वही हाल हो जाता है. प्रधानाचार्य की हिदायत के बावजूद मेस संचालित करने वाली एनजीओ संस्था अपनी मनमानी करती है.

Intro:पश्चिम चंपारण के बगहा में एक ऐसा सरकारी विद्यालय भी है जिसमे सारी व्यवस्थाएं निजी विद्यालयों जैसी हैं । विद्यालय को देख कोई भी यही कहेगा कि यह किसी मेट्रोपोलिटन सिटी का विद्यालय है। बावजूद इसके विद्यालय में शिक्षकों व कर्मियों का घोर अभाव है। साथ ही साथ छात्रावास में रह रहीं छात्राओं को मेनू के हिसाब से खाना नही दिया जाता और नास्ते में प्रतिदिन भूंजा में हल्का दालमोट मिला कर परोसा जाता है।


Body:बगहा 2 प्रखंड अंतर्गत थरुहट बहुल क्षेत्र कदमहवा में स्थापित अनुसूचित जनजाति बालिका उच्च विद्यालय में 380 छात्राएं पढ़ती हैं। छात्राओं को रहने के लिए विद्यालय कैम्पस में ही छात्रावास भी बना है। इनके लिए तमाम बेहतर सुविधाएं भी मौजूद हैं। विद्यालय में मौजूद सीसी टीवी कैमरा, स्पोर्ट्स की व्यवस्था, साफ सुथरा शांत वातारण, व तमाम बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर इसके खूबसूरती को बढ़ा देते हैं। विद्यालय को देख कत्तई आभास नही होता कि यह एक सरकारी आवासीय विद्यालय है। बावजूद इसके इस विद्यालय में कर्मियों और शिक्षकों का टोटा यहां के तमाम इंफ्रास्ट्रक्चर को मुँह चिढ़ाने के लिए काफी है। विद्यालय के वरीय शिक्षक लालबहादुर यादव का कहना है कि 17 की जगह सिर्फ 3 शिक्षक हैं और चपरासी तो है ही नही। जिस वजह से शिक्षकों को स्वयं घण्टी बजानी पड़ती है। यहाँ तक कि इस बालिका विद्यालय के छात्रावास में रह रहे छात्राओं के समुचित इलाज के लिए मेडिकल की भी व्यवस्था नही है। यदि कोई छात्रा बीमार पड़ जाए तो झोला छाप चिकित्सक का रुख करना पड़ता है।
वहीं इस विद्यालय के छात्रा दिव्या कुमारी और नेहा उराँव की शिकायत है कि छात्रवास के लड़कियों को मेनू के हिसाब से खाना नही दिया जाता और शाम के नास्ते में एक दिन के बजाए प्रतिदिन भूँजा परोसा जाता है। छात्राओं का कहना है कि प्रधानाचार्य के हिदायत के बावजूद मेस संचालित करने वाली एनजीओ संस्था अपनी मनमानी करती है। वही इस विद्यालय में शिक्षकों की भारी कमी के वजह से न तो कई विषयों की पढ़ाई होती है और ना ही आज तक प्रयोगशाला होते हुए प्रयोगशाला का उपयोग किया गया।
बाइट- लालबहादुर यादव, वरीय शिक्षक।
बाइट- दिव्या, नेहा छात्राएं।


Conclusion:विद्यालय का इंफ्रास्ट्रक्चर देख यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नही कि यदि सरकार चाहे तो सरकारी विद्यालयों का भी सूरतेहाल बेहतर हो सकता है। लेकिन सरकारी उदासीनता व प्रशासनिक लापरवाही इस विद्यालय को चार चांद लगाने वाले व्यवस्थाओं को फीका कर दे रहा।
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