पं. चंपारण(बगहा): एक ओर सरकार जहां गांव से लेकर शहर तक सड़क निर्माण की बात कह विकास का दंभ भर रही है. वहीं बगहा के बिनवलिया बोधसर पंचायत के अदिवासी बहुल गांव मेंआज भी लोगों के लिए आवागमन की सुविधा मयस्सर नहीं है. यहां पर लोगों की जिंदगी आज भी चचरी पुल के सहारे कट रही है.
ग्रमीणों का कहना है कि कई बार जिला प्रशासन से लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों से पुल निर्माण को लेकर गुहार लगाई. लेकिन आश्वासन के सिवा कुछ संभव नहीं हो सका. जिसके बाद हमलोगों ने अर्थदान और श्रमदान से खुद चचरी पुल का निर्माण किया.
'शासन-प्रशासन ने नहीं दिया ध्यान'
ग्रमीण धर्मेंद्र काजी, रामशरण बैठा और धवल पटवारी का कहना है कि यह पुल हम ग्रमीणों के लिए एक लाइफ लाइन है. कई बार जिला प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधियों से पुल निर्माण को लेकर गुहार लगाई. लेकिन जब शासन-प्रशासन ने हमारी बातों को अनसुना कर दिया तो, हमलोगों ने खुद से अपनी परेशानियों को हल निकाला और चचरी पुल का निर्माण किया है.
बरसात के दिनों आवागमन होता है बाधित
स्थानीय लोगों ने बताया कि करमाहा गांव के बगल से होकर झिकरी पहाड़ी नदी गुजरती है. यहां के लोगों को मुख्य सड़क तक पहुंचने के लिए आजतक पक्का पुल नसीब नहीं हुआ है. पुल का पक्कीकरण और सड़क निर्माण को लेकर छले कई वर्षों से विधायक और सासंद से मांग की गई. लेकिन आज तक इस दिशा में कोई सकारात्मक पहल नहीं की गई है.
सुखाड़ के समय में किसी तरह हमलोग आवागमन तो कर लेते हैं. लेकिन बरसात के दिनों में धार में पानी जमा हो जाने से आवागमन बाधित हो जाता है. मुख्य सड़क तक पहुंचने के लिए मजबूरन गांव के लोगों ने चंदा एकत्रित कर बांस का चचरी पुल का बनाकर किसी तरह आवागमन कर रहे हैं. ग्रमीणों ने बताया कि प्रत्येक वर्ष बारिश के समय ग्रामीणों के सहयोग से चचरी पुल बनाया जाता हैं.
सैकड़ों लोग प्रतिदिन करते है आवाजाही
स्थानीय लोगों ने बताया कि पक्की पुल नहीं होने कारण सबसे ज्यादा दिक्कत तब होती है, जब कोई बीमार पड़ जाए और उसे गोद या कंधे पर उठाकर पुलिया पार कराना पड़ता है. यह बांस का पुल हमलोगों की लाइफ लाइन है. इस पुलिया से रोजाना सैकड़ों लोग आवाजाही करते हैं. बता दें कि इस गांव के अधिकतर लोग मजदूरी और खेती करके जीवनयापन करते हैं. पक्का पुल निर्माण नहीं होने के कारण ग्रमीणों में आक्रोश भी है. गांव वाले का कहना है कि हमें पनी चिंता नहीं है. बच्चे जब स्कूल जाते हैं तब डर लगता है. सुबह तो हम लोग उनको पुलिया पार करा देते हैं, लेकिन लौटते वक्त वे अकेले होते हैं. इस पर चलने के दौरान डर लगता है कि जाने कब टूट जाए.